World's First Islamic Blog, in Hindi विश्व का प्रथम इस्लामिक ब्लॉग, हिन्दी मेंدنیا کا سبسے پہلا اسلامک بلاگ ،ہندی مے ਦੁਨਿਆ ਨੂ ਪਹਲਾ ਇਸਲਾਮਿਕ ਬਲੋਗ, ਹਿੰਦੀ ਬਾਸ਼ਾ ਵਿਚ
आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन
Home » , » किसने बताया वायरस और बैक्टीरिया के बारे में?

किसने बताया वायरस और बैक्टीरिया के बारे में?

Written By zeashan haider zaidi on सोमवार, 6 सितंबर 2010 | सोमवार, सितंबर 06, 2010

इस दुनिया में तरह तरह के जानवर व पेड़ पौधे मौजूद हैं। इनमें से कुछ हाथी व व्हेल जैसे विशाल हैं तो दूसरी तरफ मच्छर व भुनगे जैसे महीन कीड़े भी मिलते हैं। आज की साइंस हमें बताती है कि दुनिया में ऐसे बारीक कीड़े या मखलूक़ात भी मौजूद हैं जिन्हें नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता। बहुत सी बीमारियां जैसे कि चेचक, हैज़ा, खसरा, टी.बी. वगैरह बहुत ही बारीक कीड़ों के ज़रिये होती हैं जिन्हें आँखों से नहीं देखा जा सकता। इन कीड़ों को बैक्टीरिया और वायरस कहा जाता है। 

ये कीड़े नुकसानदायक भी होते हैं और फायदेमन्द भी। मिसाल के तौर पर दही का जमना एक बैक्टीरिया के ज़रिये होता है। इसी तरह चीज़ों को सड़ा गला कर खाद की शक्ल देना भी बैक्टीरिया के जरिये होता है। अब तक कई तरह के महीन कीड़े दरियाफ्त किये जा चुके हैं, जैसे कि आटे में खमीर पैदा करने वाला यीस्ट या पेचिश पैदा करने वाला कीड़ा अमीबा। चूंकि इस तरह का कोई भी कीड़ा इतना महीन होता है कि बिना माइक्रोस्कोप के देखा नहीं जा सकता इसलिये एक अर्से तक दुनिया इनके बारे में अंजान रही। यहाँ तक कि किसी के ख्याल में भी नहीं आया कि इतने महीन कीड़े इस धरती पर पाये जाते हैं। 

फिर सत्रहवीं सदी में एक डच साइंसदाँ हुआ एण्टोनी लीवेनहोक जिसने माइक्रोस्कोप का अविष्कार किया। और उसकी मदद से पहली बार उसने इन सूक्ष्म कीड़ों का दर्शन किया। बाद में इंग्लिश साइंसदाँ राबर्ट हुक ने माइक्रोस्कोप में सुधार करके इन कीड़ों की और ज्यादा स्टडी की और पहली बार जिंदगी की यूनिट यानि सेल को देखने में कामयाबी हासिल की।

यह तो वह इतिहास है जो हमें अपने स्कूल की किताबें पढ़ने से मिलता है। सवाल ये पैदा होता है कि क्या वाकई एण्टोनी लीवेनहोक से पहले दुनिया इससे अंजान थी कि कुछ ऐसे भी कीड़े दुनिया में पाये जाते हैं जिन्हें नंगी आँखों से देखना नामुमकिन है?  

उसूले काफी ग्यारहवीं सदी में लिखी गयी किताब है जिसके मुसन्निफ हैं मोहम्मद याकूब कुलैनी (र.)। इस किताब में पैगम्बर मोहम्मद की हदीसें व हज़रत अली व उनके वंशजों के कौल दर्ज हैं। इस किताब के वोल्यूम-1, बाब 17 में दर्ज हदीस के मुताबिक़ इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने फरमाया
‘-----ऐ नसख (एक सहाबी का नाम), हमने अल्लाह को लतीफ कहा है खल्क़े लतीफ के लिहाज़ से और शय लतीफ का इल्म रखने की बिना पर। क्या तुम नहीं देखते उसकी सनाअत के आसार को और नाज़ुक नबातात में और छोटे छोटे हैवानों में जैसे मच्छर और पिस्सू या जो उन से भी ऐसे छोटे छोटे हैवान हैं जो आँखों से नज़र नहीं आते और ये भी पता नहीं चलता कि नर हैं या मादा। और मौलूद व हादिस क़दीम से अलग हैं ये छोटे छोटे कीड़े उस के लुत्फ की दलील हैं। 
फिर उन कीड़ों का जफ्ती पर राग़िब होना और मौत से भागना और अपनी ज़रूरतों को जमा करना दरियाओं के कुंडलों से, दरख्तों के खोखलों से, जंगलों और मैदानों से और फिर एक का दूसरे की बोली समझना और जरूरियात का अपनी औलाद को समझाना और गिजाओं का उनकी तरफ पहुंचाना। 
फिर उनके रंगों की तरकीब सुर्खी व जर्दी के साथ और सफेदी सुर्खी से मिलाना और ऐसी छोटी मखलूक का पैदा करना जिनको आँखें नहीं देख सकतीं और न हाथ छू सकते हैं तो हमने जाना कि उस मख्लूक़ का खालिक़ लतीफ है। उसने अपने लुत्फ से पैदा किया बगैर आज़ा व आलात के। हर सानआ किसी माददे से बनता है। खुदा को इसकी ज़रूरत नहीं। वह कुन कहकर पैदा कर देता है और वह अल्लाह खालिक़ लतीफ व हबील है उसने बगैर किसी मदद के पैदा किया है।’

तो आपने गौर किया कि यहाँ इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ऐसे कीड़ों की बात कर रहे हैं जो मच्छर और पिस्सू से भी छोटे ऐसे हैवान हैं जो आँखों से नज़र नहीं आते। इनमें नर मादा की पहचान भी नहीं होती। जैसा कि मौजूदा साइंस बताती है बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्म कीड़ों में नर और मादा की पहचान नामुमकिन होती है। लेकिन इसके बावजूद ये सेक्स करके अपना वंश बढ़ाते हैं। 

इनका वंश बढ़ाने का सीन भी अजीब होता है। इनके सिंगिल सेल (जिस्म) से धीरे धीरे एक नया जिस्म बढ़ने लगता है और और फिर वह पुराने जिस्म से अलग हो जाता है। इसके आगे इमाम कहते हैं कि ‘‘और ऐसी छोटी मखलूक का पैदा करना जिनको आँखें नहीं देख सकतीं और न हाथ छू सकते हैं तो हमने जाना कि उस मख्लूक़ का खालिक़ लतीफ है।’’ 

यानि ये मख्लूक़ात इतनी बारीक हैं कि हाथों से भी महसूस नहीं होते। तो इस तरह से साफ हो जाता है कि इमाम बात कर रहे हैं माइक्रोआर्गेनिज्म़ के बारे में यानि बैक्टीरिया, वायरस, अमीबा वगैरा के बारे में जिनके बारे में दुनिया यही जानती है कि इनकी खोज एण्टोनी लीवेनहोक ने की थी। 

जबकि एण्टोनी लीवेनहोक का जन्म सत्रहवीं शताब्दी में हुआ था और उससे बहुत पहले इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम आठवीं व नवीं सदी में दुनिया को ये इल्मी बातें बता चुके थे। यहाँ तक कि उनके कौल को अपनी किताब में लिखने वाले मोहम्मद याकूब कुलैनी (र.) भी लीवेनहोक से पाँच सौ साल पहले पैदा हुए थे। 

सच कहा जाये तो मौजूदा साइंस इस्लाम की ही मीरास है जो मुसलमानों के हाथ से निकल चुकी है, और इसको वापस अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना हर मुसलमान का फर्ज है।          
Share this article :
"हमारी अन्जुमन" को ज़यादा से ज़यादा लाइक करें !

Read All Articles, Monthwise

Blogroll

Interview PART 1/PART 2

Popular Posts

Followers

Blogger templates

Labels

 
Support : Creating Website | Johny Template | Mas Template
Proudly powered by Blogger
Copyright © 2011. हमारी अन्‍जुमन - All Rights Reserved
Template Design by Creating Website Published by Mas Template