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सोमवार, 16 अगस्त 2010

रोज़े - इंसानी जिस्म के पहरेदार

रमजानुलमुबारक के इस मौके पर पेशे खिदमत है रोजे के जिस्मानी फायदे बताता ये मज़मून।

जब हम रोजा रखते हैं तो यकीनन उसका मकसद होता है गुनाहों से बचना और अपने रब की कुरबत अख्तियार करना। लेकिन अल्लाह ने जो भी हुक्म फरमाया है, वह यकीनन इन्सान और इन्सानियत की भलाई के बहुत से पहलुओं को शामिल करता है। यही बात रोजे के हुक्म पर भी साबित है।

रसूल अल्लाह (स.अ.) ने इरशाद फरमाया ‘ऐ मुसलमानों रोजा रखो सेहत के लिए।’ आज मेडिकल साइंस की रिसर्च साबित करती है कि रोजा दरअसल इंसानी जिस्म के हर सिस्टम का प्रोटेक्टर यानि कि पहरेदार है। जिस्म का हर सिस्टम बेहतरीन तरीके से काम करता रहे इसके लिए रोजा पूरी तरह मददगार है।

सन्‌ 1994 में कसाबलांका में ‘रमजान व सेहत’ पर पहली इण्टरनेशनल कान्फ्रेंस हुई जिसमें पूरी दुनिया से आये पचास रिसर्च पेपर पढ़े गये। सभी में एक बात उभरकर आयी कि रोजे से किसी भी तरह का सेहत से मुताल्लिक कोई नुकसान नहीं होता। जबकि बहुत से हालात में रोजा पूरी तरह फायदेमन्द साबित होता है।

सबसे पहले बात करते हैं निज़ामे हज्म़ यानि डाईजेस्टिव सिस्टम पर। इस सिस्टम में शामिल हैं दाँत, जबान, गला, खाने की नली, मेदा यानि आमाशय, छोटी आँत और बड़ी आँत। जब हम खाना शुरू करते हैं या खाने का इरादा करते हैं तो दिमाग इस पूरे सिस्टम को हरकत में ला देता है। और ये पूरा सिस्टम तब तक ऐक्टिव रहता है जब तक कि खाना पूरी तरह हज्म नहीं हो जाता । यानि दिन में तीन बार खाने का मतलब हुआ कि हाजमे का सिस्टम चौबीस घण्टे लगातार चलता रहे। 

हाजमे के सिस्टम की लगातार हरकत और खाने पीने की बदपरहेजी इस सिस्टम को खराब कर देती है और इंसान तरह तरह की पेट की बीमारियों का शिकार होने लगता है। रोज़े के दौरान पन्द्रह - सोलह घण्टों तक खाने पीने से परहेज़ इस सिस्टम को आराम की पोजीशन में ला देता है और इस तरह हाज्मे का सिस्टम अपने को दुरुस्त यानि कि रिपेयर कर लेता है।

अब बात करते हैं लीवर की। लीवर जिस्म का निहायत अहम हिस्सा है, जो न सिर्फ हाज्मे में मदद करता है 
बल्कि खून भी बनाता है। साथ में जिस्म के इम्म्यून सिस्टम को मजबूत करता है जिससे इंसान में बीमारियों से लड़ने की ताकत पैदा होती है।

रोजा लीवर को हाज्मे के काम से कुछ घण्टों के लिए फ्री कर देता है, नतीजे में वह पूरी ताकत के साथ खून बनाने और इम्म्यून सिस्टम को मजबूत करने लगता है। इस तरह एक महीने का रोजा जिस्म में साल भर के लिए बीमारियों से लड़ने की ताकत पैदा कर देता है।

रोजा मेदे या आमाशय में बनने वाले एसिड को बैलेंस करता है। नतीजे में इंसान न तो एसीडिटी का शिकार होता है और न ही कम एसीडिटी की वजह से बदहजमी होने पाती है।

अब आते हैं जिस्म के एक और अहम सिस्टम यानि सरक्यूलेटरी सिस्टम पर। जिसका अहम हिस्सा है दिल। जो जिस्म में दौड़ते हुए खून को कण्ट्रोल करता है। दिल इंसान की पैदाइश से मौत तक लगातार काम करता रहता है। लगातार काम करने में दिल का थकना लाज़मी है। खासतौर से जब इंसान तेज रफ्तार टेन्शन की जिंदगी जी रहा हो।
रोजा रखने के दौरान रगों में खून की क्वांटिटी कम हो जाती है। जिससे दिल को कम काम करना पड़ता है और उसे फायदेमन्द आराम मिल जाता है। इसी के साथ रगों की दीवारों पर पड़ने वाला डायस्टोलिक प्रेशर कम हो जाता है। जिससे दिल और रगों दोनों को ही आराम मिलता है। आज की भागदौड़ की जिंदगी में लोग हाईपरटेंशन का शिकार हो रहे हैं। रोजे के दौरान डायस्टोलिक प्रेशर की कमी उन्हें इस बीमारी से बचाकर रखती है।

और सबसे खास बात। रोजे के दौरान अफ्तार से चन्द लम्हों पहले तक खून से कोलेस्ट्राल, चर्बी और दूसरी चीज़ें पूरी तरह साफ हो जाती हैं और रगों में जमने नहीं पातीं, जिससे दिल का दौरा पड़ने का रिस्क खत्म हो जाती है।
इसी तरह गुर्दे जो खून की सफाई करते हैं, रोजे के दौरान आराम की हालत में होते हैं, इसलिए जिस्म के इस अहम हिस्से की ताकत लौट आती है।

रोजे के कुछ और फायदे सेहत के मुताल्लिक इस तरह हैं कि रोजा कोलेस्ट्राल और चरबी को कम करके मोटापे को दूर करता है। चूंकि रोजे के दौरान जिस्म में हल्का सा डीहाईड्रेशन हो जाता है। पानी की यह कमी जिस्म की जिंदगी को बढ़ा देती है। जैसा कि हम नेचर में देखते हैं कि जो पौधे पानी का कम इस्तेमाल करते हैं उनकी लाइफ ज्यादा होती है।

हालांकि डायबिटीज के मरीज को रोजा नहीं रखना चाहिए। लेकिन ये भी हकीकत है कि नार्मल इंसान में रोजा डायबिटीज के रिस्क को कम कर देता है। क्योंकि रोजे के दौरान ब्लड में ग्लूकोज़ लेवेल बैलेंस हो जाता है और यह बैलेंस बाद में भी कायम रहता है। डायबिटीज की कुछ कंडीशन्स में भी रोजा फायदा ही पहुंचाता है।

आजकल वजन को कम करने के लिए डायटिंग का चलन काफी बढ़ गया है, जो दरअसल जिस्म को नुकसान पहुंचा रहा है। क्यांकि डायटिंग में वजन के साथ साथ जिस्म के लिए फायदेमन्द न्यूट्रिशन भी कम होने लगते हैं और जिस्म सूखे का शिकार हो जाता है। लेकिन रोजे में ऐसा नहीं होता। रोजा फैट को तो कम करता है जबकि बाकी न्यूट्रिशन में कोई कमी नहीं होने पाती और वजन घटने के बावजूद जिस्म सेहतमन्द रहता है।
रोजे के दौरान जिस्म के हिस्सों यानि गुर्दों, फेफड़ों और स्किन से जहरीला माद्दा निकलने की प्रोसेस तेज हो जाती है। रोजा फूड एलर्जी, थकान और पेट की दूसरी बीमारियों में भी फायदा पहुंचाता है। पीठ दर्द और गर्दन दर्द में रोजे की हालत में आराम देखा गया है।

फास्टिंग या उपवास न्यूट्रिशन के तीन पिलर्स में से एक है। बाकी दो पिलर्स हैं बैलेंसिंग और बिल्डिंग। जबकि फास्टिंग का सबसे अच्छा तरीका है रोजा। ये बात मेडिकल रिसर्च से साबित है।

इस तरह हम देखते हैं कि रोजा रखना इंसानी सेहत के लिए निहायत अहम है। लिहाजा कुरआन आवाज दे रहा है, ‘‘अगर तुम सच को समझो तो तुम्हारे हक में यह बेहतर है कि रोजे रखो।’’ आज मेडिकल साइंस भी यही साबित कर रही है जो सदियों पहले इस्लाम ने इंसानियत की भलाई के लिए लागू कर दिया।