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शनिवार, 30 नवंबर 2013

स्क्रिप्ट ऑफ़ स्वामी लक्मी शंकराचार्य महाराज जी

दर्शको आपका हमारी अंजुमन (www.hamarianjuman.blogspot.in) में आपका स्वागत है, मैं हूँ सलीम ख़ान. आज हम आध्यत्म जगत कि एक महान शख्सियत से मुलाक़ात करेंगे जिनका नाम है स्वामी लक्ष्मी शंकराचार्य जी.

सलीम खान- स्वामी जी,सबसे पहले आप अपने बचपन, घर परिवार और शिक्षा के बारे में संक्षिप्त में बताइये?
स्वामी जी- हमारा जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद कानपुर के एक गाँव में हुआ, प्रारंभिक पढ़ाई लिखाई कानपूर में ही हुई और उसके बाद इलाहबाद में आगे की शिक्षा के पूर्ण हुई.

सलीम ख़ान- स्वामी जी, अध्यात्म से आपका जुड़ाव कैसे हुआ?
स्वामी जी - शिक्षा के कुछ दिनों बाद इस भौतिक संसार से कुछ विरक्ति मुझे महसूस हुई और मुझे लगा कि इस भौतिक जगत की अपेक्षा परमेश्वर की ओर जाना, परमेश्वर के लिए कुछ करना ज़्यादा उपयुक्त है इसलिए मैंने ये रास्ता चुना।

सलीम ख़ान - पहले इस्लाम के बारे में आपकी क्या सोच थी?
स्वामी जी- जब मैं पढ़ रहा था और आठवें क्लास तक जो मैंने इतिहास पढ़ा और दुर्भाग्य का विषय ये है कि पहले भी और आज भी इतिहास ऐसा लिखा गया है और ऐसा इतिहास पढ़ाया जा रहा है जिससे ये प्रतीत होता है कि इस्लाम का मतलब है आतंकवाद और इस्लाम इस देश में एक हमलावर के रूप में आया और  जो भी बादशाह यहाँ हुए उनका एक ही मक़सद है कि गैर मुस्लिमों को मारना-काटना लूटना या उनको समाप्त करना इत्यादि। तो इसी कारन इस्लाम को लेकर मेरी सोच कुछ ऐसी ही बन गयी. उसके बाद मैं इलाहबाद आया तो मैंने देखा और इस्लाम के बारे में जाना तो उसमे मेरी सोच की बढ़ोत्तरी ही हुई. इस बीच जबसे ये आतंकवाद शुरू हो गया, अब ये अलग विषय कि ये आतंकवाद कौन कर रहा है? क्यूँ हो रहा है इस पर मैं नहीं जाना चाहता वह एक अलग विषय है लेकिन जिस तरह से मीडिया ने  प्रस्तुत कि उससे मेरे पहले वाले विचार को और पुख्तगी हासिल हुई. इस्लाम की इमेज तब मेरे दिमाग में ऐसी बन गयी कि इस्लाम ही आतंकवाद की जड़ है.

सलीम ख़ान - इस्लाम और मुसलमान को लेकर आपकी नकारात्मक सोच की सबसे बड़ी वजह क्या थी?
स्वामी जी -  सबसे बड़ी वजह तो मैं बता रहा हूँ कि जो मैंने इतिहास में पढ़ा वो और इस्लाम की जानकारी न होना। अगर हमें किसी चीज़ की जानकारी नहीं होगी तो जैसा हम देखेंगे और जैसा हम पढ़ेंगे वैसा ही हम मान लेंगे। सबसे बड़ी वजह है इस्लाम की जानकारी न होना और इस्लाम का ग़लत प्रचार करना।

सलीम ख़ान - किन लोगों के प्रभाव में आकर आपने अपनी पुस्तक 'इस्लामी आतंकवाद का इतिहास' लिखी?
स्वामी जी - देखिये, हम किसी के प्रभाव से प्रभावित नहीं हुए. जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि जैसा मैंने बचपन से पढ़ा, देखा सुना तो उससे मेरे मन में ये धारणा बनी कि इस्लाम गई रमुसलमानों को लिए खतरे के लिए है