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कश्‍ती-ए-नूह(मनु) को पुरातत्ववेत्ताओं ने आखिर ख़ोज ही निकाला

Written By Mohammed Umar Kairanvi on सोमवार, 26 अक्तूबर 2009 | सोमवार, अक्तूबर 26, 2009

लगभग 2300 ईसा पूर्व अल्लाह ने इन्सानों को गुमराह होने से बचाने के लिए अपने
पैगम्बरों (खुदा का पैग़ाम इन्सानों तक पहूंचाने वाले) को दुनिया के हर हिस्से में भेजा, जिनका ज़िक्र आज भी उस इलाके के लोग करते आ रहे हैं, इसी कडी में अल्लाह ने पैग़म्बर नूह(मनु) को लोगों को समझाने ओर सही राह दिखाने के लिए भेजा था,पैग़म्बर नूह अ. ने जिस कौम को समझाया वो शैतान के बहकावे या अपने लालच के कारण बहुत सारे बुतों की इबादत किया करते थे, और एक खुदा के मानने वालों को तरह तरह से परेशान करते थे, इस कौम के मुख्य देवता वद्द, सुआ, यगूत, ययूगा और नस्र थे। इन देवताओं के लिए ये लोग कुछ भी कर गुजरते थे, और इनकी इबादत करना ही अपने निजात का साधन मानते थे। इन देवताओं का ज़िक्र कुरआन में आया है।
आदिवासी,
हिन्दु, यहूदी ,ईसाई और मुसलमान ये सभी नूह की समान रूप से इज़्ज़त करते हैं । और इन सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों में इस महान पैग़म्बर का जिक्र है।
नूह की कश्‍ती (नौका) को खोजने और उसे देखने के लिए सदियों से लोग बैचेन रहे हैं। मगर इस किस्से के बारे में 1950 से पहले कोई सबूत ऐसा नही था जो ये तय कर सके कि वाकई नूह की जलप्रलय जैसी घटना पुथ्वी पर हुयी थी ।

सन 1950 ईसवी
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सन 1950 के आसपास एक अमेरिकी खोजी विमान जब तुर्की के आरारात पहाड के उपर से जासूसी के लिए फोटो लेते हुए गुजरा तो उसके कैमरे में इस सदी का एक बेहद महत्वपूर्ण चित्र कैद हो गया ।
सेना के वैज्ञानिकों ने जब आरारात पहाड पर एक बडी नाव जैसी संरचना देखी तो उस फोटो के अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक का कहना था कि ये सौ फीसदी नाव है। जो 300 क्यूबिट लम्बी थी । इस कस्ती के बारे में पता लगते ही वैज्ञानिकों में उत्साह दौड गया जो पुरातत्व की खोजों में लगे रहते हैं। और उन्हे लगा कि हो ना हो ये नूह की कस्ती के ही अवशेष हैं।

सन 1960 ईसवी
पूरी दुनिया में मशहूर और मोतबर मानी जानी वाली ‘लाईफ’ पत्रिका ने इस फोटो को सार्वजनिक रूप से अपने मुखपृष्ट पर छापा, और दावा किया कि ये आरारात पहाड पर नूह की कस्ती ही है। इसी साल अमेरिकी सेना के एक कैप्टन दुरूपिनार ने अरारात के उपर से लिए गए इस चित्र की सच्चाई जानने के लिए इस जगह का निरिक्षण करने का फैसला किया और उन्होने अपने दल के साथ इसे ढुंढ निकाला, मगर कैप्टन के दल ने यहां पर लगभग 36 घंटे बिताए और हल्की फुल्की सी खुदाई भी की,मगर इन्हे इस जगह पर चटटानों के अलावा कुछ ना मिला । निराश होकर कैप्टन वापस लौट आए और अपनी रिर्पोट पेश की । जिसके चलते एकबार फिर नूह की कश्‍ती को देखने की चाह रखने वाले लोगों में काफी निराशा हुयी ।

सन 1977 ईसवी
कैप्टन की रिपोर्ट में बहुत सारी खामियां थी, इस वजह से कई वैज्ञानिकों ने इसे नही माना और इस घटना के 13 साल बाद एक अमेरिकी वैज्ञानिक रोन वाट ने नूह की कस्ती को खोजने के लिए एकबार फिर प्रयास करने की ठानी । रोन वाट ने पूर्वी तुर्की के इस इलाके में गहन शोध के लिए तुर्की सरकार से अनुमति मांगी, तुर्की सरकार ने उसे शोध करने की इजाजत दे दी ।
पहली यात्रा में ही वाट को अपना दावा सिद्ध करने के काफी सबूत मिले, इसके बाद तो वाट ने इस जगह की अहमियत को समझते हुए अत्याधुनिक वैज्ञानिक साजो सामान को इस्तेमाल करके अकाट्य सबूत जुटाने में कामयाबी हासिल की। इन्होनें जमीन के उपर रखकर जमीन के अन्दर के चित्र उतारने वाले रडारों और मेटल डिटैकटरों का इस्तेमाल किया और नूह की कस्ती के अन्दर की जानकारी के सबूत जुटाए।
इस परीक्षण के चैकानें वाले नतीजे निकले राडार और मेटल डिटेक्शन सर्वे में धातु और लकडी की बनी चीजों का एक खुबसूरत नक्शा सामने आया । और जमीन के उपर से बिना इस जगह को नुकसान पहूंचाए नाव होने के सबूत मिल गए।
और फिर रोन ने नक्शे को प्रमाणित करने के लिए ड्रिल तकनीक से नाव के अन्दर मौजूद धातु व लकडी के नमूनें प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की ।इन नमूनों को रोन वाट ने अमेरिका की प्रयोगशालाओं को भेजा जिनकी रिपोर्ट में ये बात सच पायी गयी कि वाकई तुर्की के इस अरारात नामक पहाड पर एक प्राचीन नाव दफन थी।
रोन वाट के लगभग 10 साल के सघन शोध के बाद दुनिया भर में इस पर चर्चा हुई और अन्ततः नूह की कस्ती की खोज को मान लिया गया।

दिसम्बर, सन 1986 ईसवी
तुर्की सरकार ने इस खोज के जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जिसमें अतातुर्क विश्वविद्यालय के भू वैज्ञानिक व पुरातत्व वैत्ता और तुर्की रक्षा विभाग के वैज्ञानिक व सरकार के कुछ उच्चाधिकारी शामिल थे ।
इस आयोग ने दिसम्बर 1986 ईसवी को रोन वाट की खोज की जांच की और अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश की, जिसमें इन्होनें इस खोज को सही माना, और अपनी सिफारिशें दी जिसमें इसके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने की सलाह सरकार को दी गयी थी
तुर्की सरकार ने इस इलाके को संरक्षित करने के लिए कदम उठाए और इस इलाके को कस्ती-ए-नूह राष्ट्रीय पार्क बना दिया गया। और इस जगह को आम दर्शकों के लिए खोल दिया गया ।

नाव में धातु की रिबेट लगी हैं
रोन वाट ने जब मेटल डिटैक्शन तकनीक से परीक्षण किया तो उसे पता चला कि नाव को मजबूत बनाने के लिए इसके निर्माता ने मिस्रित धातुओं से बनी चीजों का बडे पैमाने पर इस्तेमाल किया था। ताकि नाव मजबूत बन सके और तूफान के थपेडों को झेल सकने में सक्षम हो जाए।
भूमि के उपर से लिए गए चित्रों की प्रमाणिकता के लिए वाट ने जमीन से ड्रिल तकनीक का इस्तेमाल करके धातु की रिबटों को निकाला , जो लकडी के पटटों में लगी थी ।
प्रयोगशाला में जब इनका परीक्षण किया गया तो पता चला कि इस धातु को बनाने व इससे नाव के बनाने में इस्तेमाल होने वाली चीजें बनाने के लिए उच्च धातुकर्म तकनीकों का इस्तेमाल किया गया होगा ये नमूने अभी सुरक्षित हैं और पर्यटकों को इन्हे देखने की इजाज़त है

कश्ती की लकडी दुनिया में अनूठी
इस जगह की खुदाई के पश्चात रोन वाट ने नाव की डेक से कुछ लकडी के नमूनें लिए, जिन्हे प्रयोगशाला में जब परीक्षण के लिए भेजा गया तो चैंकाने वाले नतीजे निकले, इस नाव को बनाने में गोफर लकडी का इस्तेमाल किया गया है । और इसे दोनो और से लेमिनेटिड किया गया है ताकि ये नाव पानी के प्रभाव से मुक्त रह सके।

कमाल की बात ये है कि मूसा अ. पर उतरी अल्लाह की किताब तौरात के उत्पत्ति नामक पाठ में नूह की कश्ती बनाने के तरीके में ये ही लिखा है। जो वैज्ञानिकों ने पाया है । ये लकडी का नमूना अपने आप में पूरी दुनिया में अनूठे हैं क्योंकि इस तकनीक का इस्तेमाल पूरी दुनिया मंे कभी नही किया गया। और आज तक कोई दूसरा इस तरह का नमूना प्राप्त नही हुआ है। जो अपने आप में इस बात को साबित करता है कि नूह अ. को नाव बनाने की तकनीक सीधे अल्लाह से मिली जिसका जिक्र बाईबल और कुरआन दोनों में है।

कश्ती-ए-नूह के लंगर (एंकर स्टोन)
नूह की कश्ती मिल जाने के बाद वैज्ञानिकों ने इस इलाके के आसपास की जगहों की खोजबीन की और उस गांव को खोज निकाला जिस गांव में नूह और उनके साथी इस कहर के बाद बसे थे यह गांव आज भी ‘आठ लोगों का गांव’ के नाम से मशहूर है। वैज्ञानिकों को इस गांव में जगह जगह पर काफी बडे-बडे विशेष आकार में तराशे गए कुछ पत्थर मिले जिनके उपर एक सूराख किया गया था और उनके उपर एक खास तरह का क्रोस का निशान बना था। वैज्ञानिकों की पहले तो कुछ समझ में नही आया मगर जब उन्होनें माथापच्ची की तो पता चला कि इन पत्थरों का इस्तेमाल तूफान के वक्त नाव को स्थिर रखने के लिए लंगर (एंकर) के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इन पत्थरों को लंगर (एंकर) की तरह इस्तेमाल करने के लिए ही इनके उपर बडी सफाई से सूराख बनाए गए है। जो धातु के औजारों का इस्तेमाल किए बगैर नही बन सकते थे।
वैज्ञानिकों ने कम्पयूटर पर एक नाव का एक माडल बनाया जिसके नीचे इन्होनें इन पत्थरों को जिन्हें आजकल ‘एंकर स्टोन’ यानि लंगर पत्थर के नाम से पुकारा जाता है, को लगाया और ये पाया कि वाकई ये पत्थर कश्ती-ए-नूह को स्थिर रखने के लिए लंगर के रूप में इस्तेमाल किये गये थे।
कश्ती-ए-नूह की खोज ने अब दुनिया के सामने ये सबूत पेश कर दिए हैं कि वाकई नूह की कौम पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ था। और इस कौम के बस कुछ ही लोग जिन्दा बचे थे ।
इस खोज के बाद अब उन बे सिर पैर की बातों का भी अन्त होना निश्चित है जो नूह अ. के बारे में लोगों ने अपने आप घड रखी हैं जिनका कोई ताल्लुक सच्चाई से नही है। और जो पूरी तरह विज्ञान और तर्क के विरूद्ध हैं ।
इस खोज से ये ही साबित होता है कि अल्लाह ने अपने बन्दे नूह अ. को गुमराह लोगों को समझाने के लिए भेजा था, और जब उन्होने दीन को नही अपनाया और ज़ुल्म करते रहे तो खुदा ने उन्हे बाढ के अज़ाब से हलाक कर दिया और इस किस्से से आने वाली नस्लें सबक लें, इसलिए इसके निशान बाकि रखे ।
अल्लाह कुरआन में फरमाता है ।
तो कितनी ही बस्तियां हैं जिन्हे हमने विनष्ट कर दिया, इस हाल में कि वो ज़ालिम थी ।

तुफान-ए-नूह(मनु) के बारे में कुरआन क्या कहती है....
सूरः हूद ह्11» आयत 25 से 49
और हमने नूह को उसकी जाति वालों की ओर भेजा था, उसने अपनी जाति के लोगों से कहा '' मैं तुम्हें साफ सचेत करने वाला हूं।
यह कि तुम अल्लाह के सिवा किसी और की ‘इबादत’ न करो। मैं तुम्हारे बारे में एक दुखमय दिन की यातना से डरता हूं।
इस पर उसकी जाति के सरदार जिन्हों ने ‘कुफ्र’ किया था, कहने लगे, हमारी नज़र में तो तुम केवल हम जैसे इन्सान हो, और हम देखते हैं कि बस हमारे यहां के कुछ कमीने लोग सतही राय से तुम्हारे अनुयायी हुये हैं और हम तो अपने मुकाबले में तुम में कोई बडाई नही देखते ,बल्कि हम तो तुम्हें झूठा समझते हैं ।
उसने कहाः हे मेरी जाति वालों ! सोचो तो सही, यदि मैं अपने रब के स्पष्ट प्रमाण पर हूं , और उसने मुझे अपने पास से दयालुता प्रदान की है, फिर उसे तुम्हारी आंखों से छिपा रखा, तो तुम न मानना चाहो जब भी क्या हम ज़बरदस्ती तुम्हारे सिर उसे चिपका दें ।
और हे मेरी जाति वालों ! मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नही मांगता । मेरा बदला तो बस अल्लाह के जिम्मे है, और मैं। उन लोगों को जो ‘ईमान’ ला चुके हैं, धुतकारने वाला भी नहीं हूं, वे तो अपने मालिक से मिलने वाले हैं , परन्तु मैं देखता हूं कि तुम लोग जिहालत कर रहे हो। और हे मेरी जाति वालों! यदि मैं उन्हे दुत्कार दूं तो अल्लाह के मुकाबले में कौन मेरी मदद करेगा ? तो क्या तुम सोचते नही ?
और मैं तुमसे ये नही कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़जाने हैं और न मैं। गैब की ख़बर रखता हूं, और न मैं ये कहता हूं कि मैं तो फरिश्ता हूं! और न उन लोगों के प्रति ये कह सकता हूं जो तुम्हारी नज़र में तुच्छ हैं कि अल्लाह उन्हे कोई भलाई नही देगा। जो कुछ उनके मन में है, उसे अल्लाह अच्छी तरह जानता है यदि मैं ऐसा कहूं तब तो मैं ज़ालिमों में हूंगा।
उन्हों ने कहा-हे नूह ! तुम हम से झगड चुके और बहुत झगड चुके, अब तो जिस चीज की तुम हमें धमकी देते हो वही हम पर ले आओ, यदि तुम सच्चे हो।
उस ने कहा- वह तो अल्लाह ही तुम पर लायेगा यदि चाहेगा, और तुम बच निकलने वाले नही हो ।
और यदि मैं तुम्हारा हित भी चाहूं तो मेरा हित चाहना तुम्हें कुछ भी फायदा नही पहूंचा सकता, यदि अल्लाह ही तुम्हें भटका देना चाहता हो । वही तुम्हारा रब है और उसी की ओर तुम्हे पलट कर जाना है। क्या ये लोग कहते हैं -इसने स्वयं इस कुरआन को गढ़ा है, तो मेरे अपराध की जिम्मेदारी मुझ पर है, और जो अपराध तुम कर रहे हो उसकी जिम्मेदारी से मैं बरी हूं। और नूह की ओर ‘वहय्’ भेजी गई कि जो लोग ईमान ला चुके उन के सिवा तुम्हारी जाति में अब कोई ईमान नही लायेगा, तो जो कुछ ये कर रहे हैं उस के लिए तुम दुखी न हो। और हमारी निगाहों के सामने और हमारी ‘वहय्’ के अनुसार एक नाव बनाओ, और उन लोगों के बारे में जिन्हों ने ज़ुल्म किया मुझ से कुछ न कहना। निश्चह ही वे डूबने वाले है। और वह नाव बनाने लगा, और जब कभी उस की जाति के सरदार उस के पास से गुजरते, वे उस की हंसी उड़ाते। उस ने कहा-यदि तुम मुझ पर हंसते हो, तो हम भी तुम पर हंस रहे है, जिस तरह तुम हंस रहे हो। जल्द ही तुम जान लोगे कि कौन है जिस पर वह यातना आती है जो उसे रूसवा कर देगी, और उस पर स्थायी यातना टूट पडती है। यहां तक कि जब हमारा आदेश आ गया और वह तनूर उबल पडा, तो हमने कहा-हर प्रकार के एक एक जोडा उस में चढा लो,(इसका मतलब ये है कि अपने पालतू पशुओं में से हर एक का एक एक जोडा ले लो ताकि दुबारा जिन्दगी की शुरूआत करने में आसानी हो) और अपने घर वालों को भी, सिवाय उसके जिस के बारे में बात तय हो चुकी थी ,और जो कोई ईमान लाया हो उसे भी ले लो। और बस थोडे ही लोग थे जो उसके साथ ईमान लाए थे। और नूह ने कहा ''सवार हो जाओ इस में ! अल्लाह के नाम से इसका चलना भी है और इस का ठहरना भी । निस्सन्देह मेरा रब बडा क्षमाशील और दया करने वाला है।''
और वह नाव उन्हे लिए पहाड़ जैसी ईंचीं लहरों के बीच चलने लगी, और नूह ने अपने बेटे को पुकारा-वह अलग था- हे मेरे बेटे ! हमारे साथ सवार हो जा, और ‘काफिरों’ के साथ न रह। उस ने कहा-मैं किसी पहाड़ की शरण ले लेता हूं, वह मुझे पानी से बचा लेगा। कहा -आज अल्लाह के आदेश से कोई बचाने वाला नही परन्तु उस को जिस पर वह दया करे। इतने में लहर दोनों के बीच आ गई, और वह भी डूबने वालों में हो गया। और कहा गया- ऐ ज़मीन! अपना पानी निगल जा और आसमान ! थम जा। तो पानी धरती में बैठ गया । और फैसला चुका दिया गया। और वह नाव अल-जूदी पर टिक गई और कह दिया गयाः दूर हों ज़ालिम लोग। और नूह ने अपने रब को पुकारा और कहा-हे रब! मेरा बेटा मेरे घर वालों में से है! और निश्चय ही तेरा वादा सच्चा है और तू ही सब से बडा हाकिम है। कहा-हे नूह ! वह तेरे घर वालों में से नहीः वह तो अशिष्ट कर्म है, तो तू ऐसी चीज का मुझ से सवाल न कर जिस का तुझे कोई ज्ञान नही है। मैं तुझे नसीहत करता हूं कि तू अज्ञानी लोगों में से न हो जा।
कहा-हे रब ! मै तेरी पनाह मांगता हूं इस से कि मैं तुझ से ऐसी चीज़ का सवाल करूं जिस का मुझे कोई इल्म नही । और यदि तूने मुझे माफ न किया और मुझ पर दया न की तो मैं घाटा उठाने वालों में से हो जाईंगा।
कहा गया - हे नूह ! इस पर्वत से उतर जा इस हाल में कि हमारी ओर से सलामती और बरकतें हैं तुझ पर और उन गिरोहों पर जो उन लोगों में से होंगें जो तेरे साथ हैं और आगे पैदा होने वालों में कितने गिरोह ऐसे हैं जिन्हे हम जीवन सुख प्रदान करेंगे फिर उन्हे हमारी ओर से दुख देने वाली यातना आ पहूंचेगी।

with thanks: Umar saif
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जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं विद्वान मौलाना आचार्य शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक योग्‍य शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकाने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है,

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