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क्या महात्मा बुद्ध इस्लाम धर्म के पैगम्बर थे?

Written By zeashan haider zaidi on मंगलवार, 25 नवंबर 2014 | मंगलवार, नवंबर 25, 2014

महात्मा बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। ये धर्म इंसान  को इंसान बनने की सीख देता है और वह रास्ते बताता है जिसपर चलकर इंसान अपने जीवन को सफल बना सकता है। अब इस लेख को पढ़ते समय कुछ लोग यह ज़रूर सोच सकते हैं कि महात्मा बुद्ध का सम्बन्ध  इस्लाम से क्यों जोड़ा जा रहा है। क्योंकि  ज़्यादातर लोग यही मानते हैं कि इस्लाम का इतिहास मात्र चौदह सौ साल पुराना है और इसके प्रवर्तक पैगम्बर मुहम्मद(स.) हैं। जबकि वास्तविकता कुछ और है।


आज से हज़ार साल पहले एक महान इस्लामी विद्वान शेख सुददूक(अ.र.) हुए हैं। उन्हें लगभग तीन सौ किताबें लिखने का श्रेय प्राप्त है। उन ही में से एक किताब है 'कमालुददीन' जो मूलत: अरबी में है लेकिन इसका उर्दू सहित कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस किताब का मूल यह है कि हर दौर और हर ज़माने में इस्लाम धर्म  को बताने वाले कभी नबी, कभी पैगम्बर, कभी रसूल और कभी इमाम के तौर पर दुनिया में मौजूद रहे हैं और इस दुनिया के अंत तक मौजूद रहेंगे। यानि अल्लाह कभी दुनिया को बिना धर्म अधिकारी  के नहीं छोड़ता।

इसी किताब के उर्दू तरजुमे के भाग दो में शेख सुददूक(अ.र.) ने एक ऐसे हिन्दुस्तानी नबी का वर्णन किया है जिनकी जीवनी पूरी तरह महात्मा बुद्ध की जीवनी से मैच करती है। हालांकि शेख सुददूक(अ.र.) ने किताब में उनका यूज़ासफ नाम से वर्णन किया है जबकि महात्मा बुद्ध को भारत में सिद्धार्थ नाम से जाना जाता है। भाषाई व इलाकाई अंतर की वजह से हो सकता है कि नाम में ये फर्क हो गया हो जैसा कि हज़रत ईसा (अ.) को ईसाई जीसस कहते हैं व हज़रत यूसुफ(अ.) को जोसेफ।

उपरोक्त किताब में यूज़ासफ की जो कहानी बयान की गयी है उसका संक्षिप्त रूपांतरण इस प्रकार है :

''हिन्दुस्तान में एक बादशाह बहुत बड़े भाग पर हुकूमत करता था। उसकी प्रजा उससे खौफ खाती थी और वह रास रंग में डूबा रहने वाला व खुशामद पसंद शासक था। उसके कोई संतान न थी। उसकी हुकूमत क़ायम होने से पहले हिन्दुस्तान में धर्म का बोलबाला था लेकिन उसने धर्म  को त्याग दिया व मूर्तिपूजा की ओर अग्रसर हुआ और उसकी पैरवी उसकी प्रजा ने की। कुछ ज्ञानियों व विद्वानों ने उसे समझाने की कोशिश की तो उन्हें अपमानित किया गया।
ऐसे वक्त में जबकि बादशाह संतान से मायूस हो चुका था, उसके एक संतान हुई । ये बच्चा इतना खूबसूरत था कि उससे पहले किसी ने इतना खूबसूरत बच्चा नहीं देखा था। संतान होने की खुशी को देश में पूरे एक साल तक मनाने की घोषणा की गयी। बादशाह ने अपने बेटे का नाम यूज़ासफ रखा। फिर उसने मुल्क के तमाम विद्वानों व पंडितों को तलब किया कि वे बच्चे का भविष्यफल तैयार करें।
तमाम विद्वानों व पंडितों ने काफी गौर व फिक्र व गणना के बाद बताया कि यह बच्चा पद-प्रतिष्ठा व मान-सम्मान में देश में सर्वश्रेष्ठ होगा। बादशाह यह सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ। किन्तु उसी समय एक विद्वान ने कहा कि यह बच्चा दुनियावी मान सम्मान में सर्वश्रेष्ठ नहीं होगा बलिक धर्म  कर्म में सर्वश्रेष्ठ होगा और एक महान धर्मगुरू बनेगा। यह दुनिया को त्यागकर केवल धर्म  की राह पर चलेगा।
यह सुनकर बादशाह की खुशी को ग्रहण लग गया। क्योंकि कहने वाला उसकी नज़र में सबसे बड़ा पंडित था। इस डर के कारण बादशाह ने राजकुमार को दुनिया से अलग एक आलीशान महल में ढेरों नौकर चाकरों की देख रेख में रख दिया और उन्हें हुक्म दिया कि राजकुमार पर दु:खों का साया भी नहीं पड़ना चाहिए।     
उस पंडित की भविष्यवाणी के कारण बादशाह तमाम धर्मगुरुओं व सन्यासियों से चिढ़ गया था। अत: उसने तमाम साधू  सन्यासियों को देश से बाहर निकालने का फरमान जारी कर दिया।
अपने इस हुक्म के बाद उसने देखा कि कुछ बुज़ुर्ग  धर्मावलम्बी  अभी भी उसके राज्य में रह रहे थे। बादशाह ने उनसे बात की और उनके उपदेश उसे इतने बुरे लगे कि उसने उन लोगों को जलाने का हुक्म दे दिया। फिर उस देश में बादशाह के हुक्म से धर्मावलंबियों व साधुओं को ढूंढ ढूंढकर जलाया जाने लगा। उसके बाद ही हिन्दुस्तान में मुरदों को जलाने की परंपरा शुरू हुर्इ। बचे खुचे धर्मावलंबी व साधू छुपकर जीवन व्यतीत करने लगे। अब कोई  विद्वान राज्य में ढूंढे नहीं मिलता था।
राजकुमार धीरे धीरे बड़ा हो रहा था। वह सोचता था कि उसे इस तरह तन्हाई में क्यों कैद रखा गया है। उन नौकरों में एक उसका खास दोस्त बन गया था। एक दिन राजकुमार के बहुत ज़ोर देने पर उसने ये राज़ उगल दिया। सुनकर राजकुमार के मन में उथल पुथल होने लगी। उसने अपने बाप से बाहर घूमने की जि़द की। बादशाह ने तमाम नगर घोषणा करवा दी कि राजकुमार के सामने कोई भी खराब चीज़ नहीं आनी चाहिए। नियत समय पर राजकुमार की सवारी निकली। 
फिर वह कई बार भ्रमण पर निकला। इस बीच उसने कुछ बीमार व्यकितयों को देखा। फिर बूढे़ व्यकित को और फिर एक शवयात्रा देखी। यह सब देखकर उसका मन उदासियों से भर गया और वह रातों को जागकर संसार की नश्वरता के बारे में विचार करने लगा। 
इस बीच सरान्दीप देश के बलोहर नामी एक दरवेश को राजकुमार के बारे में मालूम हुआ। वह छुपकर राजकुमार से मिला और उसे धर्म  की शिक्षा देने लगा। बलोहर ने राजकुमार को अल्लाह व उसके नबियों व रसूलों के बारे में बताया और दुनिया व मौत के बाद के जीवन के बारे में बताया। नेकियों व बुराइयों के बारे में बताया। राजकुमार उसकी शिक्षाओं से अत्यन्त प्रभावित हुआ और उसने सांसारिक जीवन त्यागकर दरवेशी अखितयार करने का इरादा कर लिया। बलोहर उसे छोड़कर अपने मुल्क वापस लौट गया था। राजकुमार यूज़ासफ उसकी याद में गमगीन रहता था। उसने दुनिया की तमाम रंगीनियों से मुंह मोड़ लिया था।
फिर अल्लाह ने उसके पास एक फरिश्ता भेजा जो तन्हाई में उसके सामने जाकर खड़ा हो गया और कहने लगा, 'तुम्हारे लिये खैर व सलामती है। तुम जाहिल दरिंदों और ज़ालिमों के बीच एक इंसान हो। मैं हक़ की तरफ से तुम्हारे लिये सलाम लेकर आया हूं और अल्लाह ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है कि मैं तुमको बशारत दूं और तुम्हारे कर्मों को जो इस दुनिया के लिये हैं तुम्हें याद दिलाऊं। जब फरिश्ते का पैगाम यूज़ासफ ने सुना तो अल्लाह की बारगाह में उसने सज्दा किया।
फिर उसने सन्यासियों का वेश धरा और महल को छोड़ दिया। वह घोड़े पर अपने सफर को तय करता रहा। काफी समय तक चलने के पश्चात वह एक ऐसी जगह पहुंचा जहाँ पर बहुत लंबा चौड़ा दरख्त एक चश्मे के किनारे मौजूद था। वह बहुत खूबसूरत दरख्त था। उसकी ढेर सारी शाखाएं थीं और फल बहुत मीठा था। उसकी शाखों में बेशुमार परिन्दों ने अपने घोंसले बना रखे थे। वह जगह उसे पसंद आ गयी। 
अभी वह वहाँ खड़ा ही हुआ था कि उसे अपने सामने चार फरिश्ते नज़र आये जो उसके सामने चल रहे थे। वह भी उनके पीछे चल पड़ा। यहाँ तक कि वह उसे उठाकर फिज़ाये आसमानी में ले गये। वहाँ उसे ज्ञान प्रदान किया गया। फिर उसको ज़मीन पर उतारा और चारों फरिश्ते उसके हमनशीन बनकर रहे। 
फिर उसने लोगों के बीच धर्म को क़ायम किया जो कि उसकी   धरती  से उठ चुका था।

उपरोक्त कहानी से सम्भावित होता है कि यूज़ासफ और कोई नहीं बलिक महात्मा बुद्ध ही थे और वे अल्लाह के नबी थे वरना फरिश्तों का उनसे बात करने का कोई अर्थ नहीं था।

Reference : Kamaluddeen by Sheikh Saduq (a.r.), (Urdu Trans.) Vol-2 Page 202-264 
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