अज़ान क्या है? के दूसरे भाग के साथ हम आपकी सेवा में उपस्थित हैं, इस भाग में आप देखेंगे कि मानव कल्यान तथा ईश्वरीय मार्गदर्शन हेतु अज़ान क्या संदेश देता है। तो आईए चलते हैं अज़ान के तीसरे शब्द की व्याख्या की ओरः
तीसारा शब्दः मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। (दो बार)
जब यह सिद्ध हो गया कि ईश्वर को किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती तथा उसका पृथ्वी पर मानव रूप धारण करके आना उसकी महिमा को तुच्छ सिद्ध करता था, इसी लिए उसने मानव द्वारा ही मानव-मार्गदर्शन का नियम बनाया, और हर देश तथा हर युग में मानव ही से पवित्र लोगों का चयन कर के उन्हें अपना दूत बनाया तथा आकाशीय दूतों द्वारा उन पर अपनी प्रकाशना भेजी जिनका अन्तिम क्रम मुहम्मद सल्ल0 पर समाप्त हो गया। आपको "सम्पूर्ण संसार हेतु दयालुता" बना कर भेजा गया। आपके आगमन की भविष्यवाणी प्रत्येक धार्मिक ग्रन्थों ने की थी, आप ही नराशंस तथा कल्कि अवतार हैं, आप ही के बताए हुए नियमों द्वारा ईश्वर की पूजा करने की घोषणा करते हुए अजान देने वाला कहता है कि मैं मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। अर्थात मैं ईश्वर की पूजा जैसे चाहूं वैसे नहीं करूँगा बल्कि मेरी पूजा भी अन्तिम ईश्दूत मुहम्मद सल्ल0 के बताए हुए नियमानुसार होगी।
चौथा शब्दः आओ नमाज़ की ओर (दो बार)
इस वाक्य द्वारा ऐसे व्यक्ति को नमाज़ की ओर बोलाया जाता है जो मौखिक तथा हार्दिक प्रतिज्ञा दे चुके होते हैं कि {ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं तथा मुहम्मद हमारे अन्तिम संदेष्टा हैं} इसी प्रतिज्ञा को व्यवहारिक रूप देने के लिए मस्जिद में बोलाया जाता है ताकि जिस शब्द से उसने स्वयं को मुस्लिम सिद्ध किया है उसका व्यवहारिक प्रदर्शन कर सके। नमाज़ मात्र एक ईश्वर के लिए पढ़ी जाती है जिसमें स्तुति, प्रशंसा, कृतज्ञता आदि सब एकत्रित हो जाते हैं और सामूहिक रूप में अदा करने से इस्लामी समता तथा बन्धुत्व का पूर्ण प्रदर्शन होता है जहाँ धनी और निर्धन, स्वामी और सेवक, काले और गोरे, बड़े और छोटे सब एक साथ मिल कर नमाज़ अदा करते हैं।
पाँचवा शब्दः आओ सफलता की ओरः(दो बार) इस शब्द द्वारा एक व्यक्ति के मन एवं मस्तिष्क में यह बात बैठाई जाती है कि सफलता न माल एकत्र करने में है, न ऊंचे ऊंचे भवन बनाने में, बल्कि वास्तविक सफलता केवल एक ईश्वर की पूजा में है, जो महाप्रलय के दिन का भा मालिक है। और यह संसार परीक्षा-स्थल है परिणाम स्थल नहीं, परिणाम के लिए हर व्यक्ति को अपने रब के पास पहुंचना है तथा अपने कर्मो का लेखा जोखा देना है। यदि एक ईश्वर के भक्त बने रहे तो स्वर्ग के अधिकारी होगें जो बड़ा सुखमय तथा हमेशा रहने वाला जीवन होगा, परन्तु यदि एक ईश्वर के आदेशानुसार जीवन न बिताया तो नरक में डाल दिए जाएंगे जो बड़ी दुखमय तथा पीड़ा की जगह होगी। इस प्रकार अजान देने वाला घोषणा करता है कि हे मनुष्यो आओ और नमाज़ अदा करके सफलता प्राप्त करो।
वास्तविकता यही है कि ईश्वर से अनभिज्ञता मानव के लिए सब से बड़ी असफलता है, इसी लिए एक स्थान पर कुरआन में कहा गया कि {प्रत्येक मनुष्य घाटे में हैं, सिवाए उसके ईश्वर के आज्ञाकारी बन गए, सत्य कर्म किया, सत्य की ओर बोलाया, और इस सम्बन्ध में आने वाली कठिनाइयों को सहन किया} काश कि इस बिन्दू पर हम चिंतन मनन कर सकें।
छठवाँ शब्दः ईश्वर सर्वमहान है, ईश्वर सर्वमहान है, ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। ईश्वर की महानता को बल देते हुए अज़ान देने वाला पुनः कहता है कि हे मनुष्यो ईश्वर सर्व महान है, उसके अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं, इस लिए अपने ईश्वर की पूजा से विमुख हो कर अन्य की पूजा कदापि न कर, मात्र एक ईश्वर की पूजा कर जो तुम्हारा तथा सम्पूर्ण संसार का सृष्टा, स्वामी, संरक्षक और प्रभु है।
तीसारा शब्दः मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। (दो बार)
जब यह सिद्ध हो गया कि ईश्वर को किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती तथा उसका पृथ्वी पर मानव रूप धारण करके आना उसकी महिमा को तुच्छ सिद्ध करता था, इसी लिए उसने मानव द्वारा ही मानव-मार्गदर्शन का नियम बनाया, और हर देश तथा हर युग में मानव ही से पवित्र लोगों का चयन कर के उन्हें अपना दूत बनाया तथा आकाशीय दूतों द्वारा उन पर अपनी प्रकाशना भेजी जिनका अन्तिम क्रम मुहम्मद सल्ल0 पर समाप्त हो गया। आपको "सम्पूर्ण संसार हेतु दयालुता" बना कर भेजा गया। आपके आगमन की भविष्यवाणी प्रत्येक धार्मिक ग्रन्थों ने की थी, आप ही नराशंस तथा कल्कि अवतार हैं, आप ही के बताए हुए नियमों द्वारा ईश्वर की पूजा करने की घोषणा करते हुए अजान देने वाला कहता है कि मैं मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। अर्थात मैं ईश्वर की पूजा जैसे चाहूं वैसे नहीं करूँगा बल्कि मेरी पूजा भी अन्तिम ईश्दूत मुहम्मद सल्ल0 के बताए हुए नियमानुसार होगी।
चौथा शब्दः आओ नमाज़ की ओर (दो बार)
इस वाक्य द्वारा ऐसे व्यक्ति को नमाज़ की ओर बोलाया जाता है जो मौखिक तथा हार्दिक प्रतिज्ञा दे चुके होते हैं कि {ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं तथा मुहम्मद हमारे अन्तिम संदेष्टा हैं} इसी प्रतिज्ञा को व्यवहारिक रूप देने के लिए मस्जिद में बोलाया जाता है ताकि जिस शब्द से उसने स्वयं को मुस्लिम सिद्ध किया है उसका व्यवहारिक प्रदर्शन कर सके। नमाज़ मात्र एक ईश्वर के लिए पढ़ी जाती है जिसमें स्तुति, प्रशंसा, कृतज्ञता आदि सब एकत्रित हो जाते हैं और सामूहिक रूप में अदा करने से इस्लामी समता तथा बन्धुत्व का पूर्ण प्रदर्शन होता है जहाँ धनी और निर्धन, स्वामी और सेवक, काले और गोरे, बड़े और छोटे सब एक साथ मिल कर नमाज़ अदा करते हैं।
पाँचवा शब्दः आओ सफलता की ओरः(दो बार) इस शब्द द्वारा एक व्यक्ति के मन एवं मस्तिष्क में यह बात बैठाई जाती है कि सफलता न माल एकत्र करने में है, न ऊंचे ऊंचे भवन बनाने में, बल्कि वास्तविक सफलता केवल एक ईश्वर की पूजा में है, जो महाप्रलय के दिन का भा मालिक है। और यह संसार परीक्षा-स्थल है परिणाम स्थल नहीं, परिणाम के लिए हर व्यक्ति को अपने रब के पास पहुंचना है तथा अपने कर्मो का लेखा जोखा देना है। यदि एक ईश्वर के भक्त बने रहे तो स्वर्ग के अधिकारी होगें जो बड़ा सुखमय तथा हमेशा रहने वाला जीवन होगा, परन्तु यदि एक ईश्वर के आदेशानुसार जीवन न बिताया तो नरक में डाल दिए जाएंगे जो बड़ी दुखमय तथा पीड़ा की जगह होगी। इस प्रकार अजान देने वाला घोषणा करता है कि हे मनुष्यो आओ और नमाज़ अदा करके सफलता प्राप्त करो।
वास्तविकता यही है कि ईश्वर से अनभिज्ञता मानव के लिए सब से बड़ी असफलता है, इसी लिए एक स्थान पर कुरआन में कहा गया कि {प्रत्येक मनुष्य घाटे में हैं, सिवाए उसके ईश्वर के आज्ञाकारी बन गए, सत्य कर्म किया, सत्य की ओर बोलाया, और इस सम्बन्ध में आने वाली कठिनाइयों को सहन किया} काश कि इस बिन्दू पर हम चिंतन मनन कर सकें।
छठवाँ शब्दः ईश्वर सर्वमहान है, ईश्वर सर्वमहान है, ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। ईश्वर की महानता को बल देते हुए अज़ान देने वाला पुनः कहता है कि हे मनुष्यो ईश्वर सर्व महान है, उसके अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं, इस लिए अपने ईश्वर की पूजा से विमुख हो कर अन्य की पूजा कदापि न कर, मात्र एक ईश्वर की पूजा कर जो तुम्हारा तथा सम्पूर्ण संसार का सृष्टा, स्वामी, संरक्षक और प्रभु है।