‘राष्ट्रगीत के खि़लाफ जो फतवे जारी कर रहे हैं, वे देशद्रोही नहीं, बुद्धिद्रोही हैं’ यह कथन है श्री वेद प्रताप वैदिक जी का (लेख- ''मुसलमान क्यों न गाएं वंदे मातरम्, हिन्दुस्तान, हिन्दी दैनिक-5 नवम्बर, 2009''
डा. अनवर जमालः eshvani@gmail.com
मुस्लिम विद्वानों को बुद्धिद्रोही कहने वाले वैदिक जी खुद ही अवैदिक हैं क्योंकि वेदों मे मूर्तिपूजा और बहुदेववाद नहीं है लेकिन वंदे मातरम् गीत के पाँचवे पद में दुर्गा देवी की उपासना व स्तुति की गई है। पाप का समर्थन क्यों ? नाम के साथ वैदिक लिखने मात्र से ही कोई व्यक्ति वैदिक नहीं बन सकता जब तक कि उसकी सोच भी वैदिक न हो।
वैदिक जी प्रज्ञापराधी भी हैं क्योंकि उन्होंने यह तो बताया कि ‘आनन्द मठ’ के पहले संस्करण में मूल खलनायक ब्रिटिश थे लेकिन उन्होंने यह तथ्य छिपाया है कि उसका लेखक हरेक संस्करण में संशोधन करता रहा। पाँचवे संस्करण तक आते-आते मूल खलनायक मुस्लिमों को बना दिया गया था। यही पाँचवा संस्करण देश-विदेश में प्रचारित हुआ।
वैदिक जी खुद बुद्धिद्रोही क्योंकि यह एक कॉमन सेंस की बात है कि आनन्द मठ के सन्यासी विष्णु पूजा के नाम पर हिन्दुओं को इकठ्ठा करते थे और मुसलमानों की बस्ती में पहुँचकर मुसलमानों को लूटते और क़त्ल करते थे, उनकी औरतों की बेहुरमती करते थे। ऐसे समय पर वे वन्दे मातरम् गाते थे। अपने ऊपर ज़ुल्म ढाने वाले दस्युओं का गीत भला कौन गायेगा ? बुद्धिद्रोही मुस्लिम आलिम हैं या खुद वैदिक जी?
वैदिक जी बुद्धिराक्षस भी हैं क्योंकि मुसलमान आलिमों ने देश की आज़ादी के लिए फाँसी के फंदों पर झूलकर अपनी जानें, क़ुर्बान की हैं बल्कि आज़ादी की लड़ाई का पहला सिपाही एक मदरसे का पढ़ा हुआ आलिम ‘टीपू सुल्तान’ ही था। सन् 1857 की क्रान्ति का नायक बहादुर शाह ज़फ़र भी मुल्ला मौलवियों का ही पढ़ाया हुआ था। आज़ादी की तीसरी लड़ाई भी ‘रेशम रूमाल आन्दोलन’ के नायक शेखुल हिन्द मौलाना महमूद उल हसन के नेतृत्व में लड़ी गई। मौलाना को अंग्रेजों ने माल्टा की जेल में कैद कर दिया। सन् 1920 में उनकी जेल में ही मौत हो गई। मौलाना उबैदुल्लाह सिन्धी, अमीर हबीबुल्लाह व उनके साथी सैकड़ों आलिमों व हज़ारों मुरीदों को अंग्रेजों द्वारा फाँसी पर लटका दिया गया। दारूल उलूम के सद्र शेखुल हिन्द ने ही महात्मा गांधी को लीडर बनाया। वैदिक जी आज जिस आज़ादी की फ़िज़ा में सांस ले रहे हैं अपनी हर सांस में वे मुस्लिम आलिमों के ऋणी हैं लेकिन उन्होंने उनके प्रति दो वचन-सुमन भी अर्पित नहीं किए।
जमीयतुल उलमाए हिन्द मुस्लिम लीग के टोटकों की लाश नहीं ढो रही है जैसा कि उनका विचार है बल्कि एकेश्वरवाद की आत्मा से प्रायः खाली भारतीय जाति के रूग्ण शरीर में ईमान व सत्य के यक़ीन की जान फूंक रही है। जबकि दारूल उलूम का पुतला फूंकने वाले लोग भारतीय समाज की शांति, एकता और तरक्क़ी को जला रहें है। नफ़रतों ने तो वृहत्तर भारत को, जिसमें ईरान आदि तक थे, खण्डित कर दिया तो क्या फिर राजनीतिक संकीर्ण स्वार्थों की खातिर मतान्ध लोग नफ़रतें फैलाकर देश की अखण्डता को खतरे में डालना चाहते हैं?
‘आनन्द मठ उपन्यास हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन पर एक कलंक है। डा0 राम मनोहर लोहिया ने सच ही कहा था। मुसलमानों के साथ-साथ हिन्दुओं को भी इस गीत का विरोध करना चाहिए क्योंकि
1- यह गीत अवैदिक सोच की उपज है।
2- इसे दस्यु लूटमार के समय गाया करते थे।
3- मुसलमानों को मारने काटने का नाम विष्णु पूजा रखकर विष्णु पूजा को बदनाम किया गया है।
4- यह गीत अंग्रेजों के चाटुकार नौकर बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लिख गया है जिसने न कभी खुद देश की आज़ादी के लिए प्रयास किया और न ही कभी क्रान्तिकारियों की मदद् की।
5- यह गीत अंग्रेजों के वेतनभोगी सेवक और सहायक की याद दिलाता है।
6- यह गीत सन्यासियों के वैराग्य और त्याग के स्वरूप को विकृत करके भारतीय मानवतावादी परम्परा को कलंकित करता है।
इसके बावजूद भी सत्य से आँखें मूंदकर जो लोग वन्दे मातरम् गाना चाहें गायें लेकिन यह समझ लें कि सत्य का इनकार करना ईश्वर के प्रति द्रोह करना और अपनी आत्मा का हनन करना है। ऐसे लोग कल्याण को प्राप्त नहीं करते हैं और मरने के बाद अंधकारमय असुरों के लोक को जाते हैं। वेद-कुरआन यही बताते हैं और मुस्लिम आलिम भी यही समझाते हैं यही सनातन और शाश्वत सत्य है।
umar kairanvi:
वैदिक जी के लेख में 10 बातें ऐसी हैं जिनकी तरफ ध्यान दिया जाना चाहियेः
वंदे को 'सेल्यूट' कहा जाता है, उसे कहीं भी पूजा 'वरशिप' नहीं कहा गया है, वेसे भी लाखों वर्ग मील फैली भरत-भूमि की कोई पूजा कैसे कर सकता है?
मुहम्मद अली जिन्ना वंदे मातरम् गाया करते थे,
मौलाना आज़ाद ने इस गीत के गाने की सिफारिश की,
मुसलमानों ने कभी विरोद्ध नहीं किया, मुस्लिम लीग ने किया,
कांग्रेस के अधिवेशनों में मुसलमान अध्यक्षों की सदारत में यह गीत गाया गया है,
कथानक 'आनंद मठ' में संयोगवश मुस्लिम जागीरदार थे,
बंगाल के हिंदू और मुसलमानों ने यही गीत एक साथ गाकर बंग-भंग का विरोध किया था,
हजरत मुहम्मद ने तो यहां तक कहा था कि माता के पैरों तले स्वर्ग होता है,
केवल पहले दो पद हमारे राष्ट्रगीत के रूप में गाए जाते हैं
अगर मुझे सवाल करने की छूट दी जाये तो उपरोक्त 10 बातों बारे में कहना चाहूंगा
भारत माता का जो चित्र हिन्दुस्तान के नक्शे में बहुत से ब्लागस में दिखाया गया है उसकी पूजा हुआ करेगी
जिन्ना का इस्लाम से क्या लेना देना, पाकिस्तान से तो वह जवाब दें कि यह बात सच है कि गलत
मौलाना आजाद का साबित किजिये, शंका है दुसरी बात मौलाना से बढकर इस्लाम को जानने वाले जितने कहें उतनी गिनती दी जा सकती है, सर सैयद का नाम अनेकों में से एक है
मुसलमानों ने कभी विरोद्ध नहीं किया यह कहना तो ऐसा है सूरज रात में निकलता रहा है दिन में अभी निकलने लगा
कांग्रेस के अधिवेशनों में जरूर गाया जाता रहा होगा, यह उनका अपना निर्णय रहा होगा इस पर हमें आपत्ति नहीं
आनंदमठ में मुस्लिम संयोगवश था, फिर से इतिहास की किताबों को पढने की आवश्यकता है
बंगाल में पता नहीं किस मकसद के लिये लोग साथ हो गये, यह भी पता नहीं उस क्षेत्र तक तब तक इस्लामी शिक्षा पहुंची भी थी नहीं
हजरत मुहम्मद ने मां के पैरों के नीचे जन्नत बताया तो बाप को जन्नत का दरवाजा भी बताया है,
एक बार शुरू हो जाये फिर वह 5वां ओर 6 वां बंद तो शुरू होगी ही जो एकेशवरवाद के विरूद्ध है पूरा मातरम् चालीसा भी बना दिया जायेगा