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किसने की अनुवांशिकता (Heredity ) की खोज?

Written By zeashan haider zaidi on सोमवार, 6 दिसंबर 2010 | सोमवार, दिसंबर 06, 2010

किसी घर में जब किसी बच्चे का जन्म होता है तो लोग उसमें मां बाप, दादा - दादी तथा दूसरे करीबी रिश्तेदारों की झलक तलाशते हैं। और यह वास्तविकता है कि बच्चे में अपने पूर्वजों की झलक जरूर होती है। इसके पीछे क्या रहस्य है? यह सवाल हमेशा से विचारकों के दिमाग में कौंधता रहा है। जिस वैज्ञानिक को इसके हल का श्रेय प्राप्त है, उसका नाम है ग्रेगर जॉन मेंडल। 1822 में एक जर्मन परिवार में पैदा हुए मेंडल ने बताया कि कुछ खास नियमों के अनुसार मां बाप के गुण बच्चे में ट्रांस्मिट होते हैं। इन नियमों को अनुवांशिकता के नियम कहा जाता है।

अनुवांशिकता के जनक मेंडल की अपने समय में वैज्ञानिक के रूप में कोई मान्यता नहीं थी। बल्कि वह एक ईसाई पादरी था। जो हाई स्कूल के विद्यार्थियों को प्राकृतिक विज्ञान पढ़ाता था। लेकिन उसके एक एक्सपेरीमेन्ट ने उसके बारे में दुनिया की धारणा बदल दी। उसने अपना एक्सपेरीमेन्ट लगभग 29000 मटर के पौधों पर किया। उसने दो अलग अलग गुणों वाले पौधों के बीच संकर कराया, जैसे कि गोल और झुर्रीदार दाने देने वाले पौध्ो। इसी तरह सफेद और गुलाबी दाने देने वाले पौधे । उसने पाया कि दो गुणों में से एक प्रभावी गुण होता है जिसका प्रभाव अगली नस्ल पर ज्यादा पड़ता है, जबकि दूसरा गुण दबा हुआ होता है। जो अगली नस्ल में बहुत कम या बिल्कुल प्रकट नहीं होता। उसे जो परिणाम मिले उसमें तीसरी नस्ल में प्रभावी गुण और दबे हुए गुण के पौधों के बीच 3:1 का अनुपात था। दो गुणों को लेने पर दोनों प्रभावी, एक प्रभावी (पहला या दूसरा) तथा कम प्रभावी के बीच उसने 9:3:3:1 का अनुपात पाया। उसने इस बारे में दो नियम दिये

पहला नियम सेग्रीगेशन का नियम कहलाता है, जिसके अनुसार पैरेंट ग्रुप के एक मेम्बर (मां या बाप) के केवल आधे गुण संतान में ट्रांस्मिट होते हैं।   
दूसरा नियम अनुवांशिकता का नियम कहलाता है। जिसके अनुसार अलग अलग गुणों के जींस एक दूसरे से अप्रभावित रहते हुए आपस में मिलते हैं। जैसे कि बिल्लियों में लंबी पूंछ वाला जींस बिल्लियों के रंग लाने वाले जींस पर कोई प्रभाव नहीं डालता। यह वजह थी कि मेंडल को 3:1 के अनुपात में मिलने वाले जींस मिक्स करने पर 9:3:3:1 के अनुपात में मिले।

मेंडल की खोज को लगभग सौ सालों तक कोई मान्यता नहीं मिली। लगभग अस्सी साल बाद ह्यूगो राइस और कार्ल कोरेंस नामक वैज्ञानिकों ने उसके कार्यों की पुनर्खोज की। और तब लोगों ने मेंडल के कार्य की महत्ता समझी। उसके एक्सपेरीमेंट की सच्चाई सिद्ध करने में गणितज्ञ व सांख्यकीविद फिशर का भी बहुत बड़ा योगदान रहा।

इंसानों और दूसरे जीवों में माँ बाप के गुण आगे की नस्ल में जीन्स के ज़रिये पहुंचते हैं। जेनेटिक्स एक साइंस है जिसमें हम स्टडी करते हैं कि नस्ल में कौन कौन से गुण आगे जाकर प्रभावी होंगे और कौन से खत्म हो जायेंगे। जीव में किसी भी गुण मसलन बाल या आँखों का रंग, लम्बाई या नाटापन, ब्लड ग्रुप, नाक की बनावट इत्यादि नस्ल दर नस्ल जीन्स के ज़रिये ट्रान्स्फर होते हैं। जीन्स जिस्म में पायी जाने वाली बहुत ही छोटी संरचनाएं होती हैं। जो एक लंबे अणु डीएनए (DNA) से बनती हैं। यही डीएनए अगली पीढ़ियों में कापी होता है और नतीजे में नस्ल में गुण रिपीट होते रहते हैं। डीएनए में कुछ तत्वों के परमाणु एक खास क्रम में जुड़े रहते हैं। यही क्रम किसी नस्ल के गुण के बारे में सूचनाएं रखता है। अगर यह क्रम बदल जाये तो गुण भी बदल जाते हैं।

एक ही तरह के जींस अलग अलग गुण के हो सकते हैं। अलग अलग गुण रखने वाले एक ही तरह के जींस एलील (Allele ) कहलाते हैं। मिसाल के तौर पर बालों को रंग प्रदान करने वाला एक जींस बालों का रंग काला करता है और दूसरा सफेद। काला करने वाले सभी जींस एक एलील होंगे, जबकि सफेद करने वाले जींस दूसरा एलील बनेंगे। म्यूटेशन (Mutation) के ज़रिये नये एलील पैदा होते हैं और नतीजे में आगे की नस्ल में अक्सर गुण पूरी तरह परिवर्तित हो जाते हैं और नतीजे में नयी जातियों की उत्पत्ति होती है। 

किसी भी आदमी या औरत में उनके जीन की दो कापियां (यानि दो एलील) मौजूद होती हैं। और जब ये जीन माँ बाप से बच्चे में ट्रांस्फर होते हैं तो जोड़े की एक कापी माँ से आती है और दूसरी बाप से। और फिर वे आपस में इस तरह मिक्स होते हैं जैसे ताश की दो गड़िडयों को आपस में फेंट दिया जाये। मिसाल के तौर पर अगर बाप की आँखें नीली हैं तो उसमे मौजद नीली आँखों के लिये जीन के जोड़े का एक मेम्बर बच्चे में आयेगा। इसी तरह माँ की आँखें अगर भूरी हैं तो उसके जीन के जोड़े में से एक बच्चे में आकर उसकी आँखें भूरी रखने का मैसेज देगा। अब अगर भूरी आँखों का जीन ज्यादा प्रभावी हुआ तो बच्चे की आँखें भूरी हो जायेंगी। और अगर नीली आँखों की जीन प्रभावी हो गया तो बच्चा नीली आँखें लेकर पैदा होगा।

ये थीं कुछ बातें जो हम आधुनिक साइंस की मदद से अनुवांशिकता के बारे में जानते हैं। अब सवाल उठता है कि इस्लामी विद्वान इस बारे में क्या कहते हैं। आपको यह जानकर हैरत होगी कि रसूल अल्लाह (स.) और हमारे इमामों के माडर्न साइंस से हूबहू मिलते जुलते कौल हमारी पुरानी किताबों में न सिर्फ मौजूद हैं बल्कि उनमें ऐसी भी बातें हैं जहाँ तक माडर्न साइंस अभी भी पहुच नहीं पायी है।      

नीचे लिखे हुए तमाम कौल हमने हासिल किये हैं इस्लामी दानिश्वर शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एललुश-शराये से।

इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि अल्लाह तआला जब किसी बच्चे को पैदा करने का इरादा करता है तो वह उसके बाप से लेकर हज़रत आदम तक के दरमियान तमाम सूरतों को यकजा करता है और फिर उनमें से किसी एक शक्ल पर बच्चा पैदा करता है। लिहाजा किसी से ये कहना हरगिज मुनासिब नहीं कि ये बच्चा मेरे आबा व अजदाद में से किसी एक के मुशाबिः नहीं है। इमाम के कौल से साफ ज़हिर है कि जीन ट्रांस्फर पीढ़ी दर पीढ़ी होता रहता है।

हज़रत अमीरलमोमिनीन अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि रहम के अन्दर दो नुत्फे आपस में मिलते हैं। इनमें से जो ज्यादा हुआ वह उसी के मुशाबिः हो जाता है। अगर औरत का नुत्फा ज्यादा हुआ तो बच्चा अपने मामू के मुशाबिः होगा और मर्द का नुत्फा ज्यादा हो तो बच्चा अपने चाचा का मुशाबिः ज्यादा होगा। यानि यहाँ पर बात हो रही है Gene Dominance की, यानि जो जीन प्रभावी हो जायेगा बच्चा उसी के गुणों को ले लेगा।  

इमाम हसन (अ.) ने फरमाया कि जब मर्द अपनी बीवी के पास सुकून क़ल्ब, ठहरी हुई रगों और गैर मुज्त़रिब बदन के साथ जाता है और उस का नुत्फा उसकी बीवी के रहम में सुकून के साथ करार पाता है तो बच्चा अपने बाप और माँ के मुशाबिः पैदा होता है और अगर मर्द अपनी जौज़ा के पास इस हाल में जाता है कि उस का क़ल्ब साकिन नहीं है उसकी रगें ठहरी हुई नहीं हैं उसका बदन मुज्त़रिब है तो उसका नुत्फा भी रहम में पहुंच कर मुज्त़रिब होगा और अन्दरूनी रगों में से किसी रग पर गिरेगा अब अगर वह रग उन रगों में से है जो चाचाओं के लिये है तो बच्चा अपने चाचाओं से मुशाबिः होगा और अगर वह रग उन रगों में से है जो मामू के लिये है तो तो बच्चा अपने मामू से मुशाबिः होगा।

उस ज़माने में जीन जैसे अलफाज़ नहीं थे। और अगर हमारे इमाम ऐसे अलफाज़ का इस्तेमाल भी करते तो कोई उनकी बात समझ नहीं पाता। इसलिए उन्होंने जीन के लिये रग़ लफ्ज़ का इस्तेमाल किया। तो अगर हम ऊपर के पैरा में रग को हटाकर जीन लफ्ज़ कर दें तो मामला आईने की तरह साफ हो जाता है। इमाम बता रहे हैं कि मामू या चचा सभी में जो जो क्वालिटीज पायी जाती हैं उनके लिये अलग अलग जीन जिम्मेदार होते हैं। माँ बाप में यह जीन भीतर यानि कि छुपे हुए होते हैं। और अगर यह जीन बच्चे के जायगोट में ट्रांस्फर हो गये तो बच्चा वैसी ही शक्ल अख्तियार कर लेता है। यहाँ पर इमाम ये भी राज़ खोल रहे हैं कि किस हालत में कौन सा जीन प्रभावी होगा, जिसकी तरफ आज की साइंस का ध्यान अभी नहीं गया है।

यकीनन यह इस्लाम का इल्म है जो साइंस को पीछे छोड़ रहा है।   
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