आज ईदुल जुहा है..... ईदुल ज़ुहा जिसे पुरे भारतीय उपमहाद्विप में "बकरीद" के नाम से जाना जाता है। बकरीद क्यौं मनाई जाती इसका लगभग सबको है तो इसलिये आज हम उन बातों पर गौर करेंगे जो करना ज़रुरी है लेकिन वो अकसर छुट जाती है और उन बातों पर गौर करेंगे जो बेवजह इस मुकद्द्स त्यौहार से जुड गयीं है।
तकबीरात :- तकबीर, तहलील और तहमीद, यानि अल्लाह तआला की बडाई व बुजुर्गी ब्यान करना, उसको
एक मानना और उसकी तारीफ़ ब्यान करने को कहते हैं।
अश्रह ज़िलहिज़्जा में "अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर लाइलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहुअकबर अल्लाहुअकबर वलिल्लाहिल हम्द" (दार कुतनी) पढने की खास ताकीद की गई है। (मुसनद अहमद) इन तकबीरों को ज़िलहिज़्जा (बकरीद) का चांद नज़र आने के बाद से 13 जिलहिज़्जा के सूरज छुपने तक चलते-फ़िरते, उठते-बैठते और नमाज़ों के बाद पढते रहना चाहिये। (बुखारी, मिरआत शरह मिश्कात)
कुछ उलमा ने लिखा है की तकरीबात 9 जिलहिज़्जा की फ़ज़्र से 13 जिलहिज़्जा की नमाज़ अस्र तक पढनी चाहिये, इस बारे सहाबा किराम (रज़ि.) के तौर-तरीके हदीस की किताबों में मिलते हैं मगर बेहतर और अफ़ज़ल सूरत यही है कि ज़िलहिज़्जा का चांद नज़र आने के बाद से 13 ज़िलहिज़्जा के सूरज छुपने तक तकरीबात पढें क्यौंकि ज़्यादातर सहाबा किराम (रज़ि.) का अमल यही मिलता है और इस सूरत पर अमल करने में तमाम बातों और तरीकों पर अमल भी हो जाता है।
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आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन