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अज़ान क्या है?

Written By Safat Alam Taimi on बुधवार, 30 दिसंबर 2009 | बुधवार, दिसंबर 30, 2009

एक सांस्कृतिक सभा में एक बार हमने अपने देशवासियों से यह प्रश्न किया कि अज़ान क्या है ? अधिकांश लोगों का उत्तर था कि अज़ान में ईश्वर को पुकारा जाता है, कुछ लोगों ने कहा कि यह ईश्वर की भक्ति का एक नियम है। जबकि एक सज्जन ने कहा कि अज़ान में अकबर बादशाह को पुकारा जाता है। अज़ान के सम्बन्ध में अपने देशवासियों के यह उत्तर सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ और दुख भी कि हम सब अपने देश में शताब्दियों से एक साथ रहने के बावजूद एक दूसरे की धार्मिक संस्कृति के प्रति संदेह में पड़े हुए हैं अथवा दोषपूर्ण विचार रखते हैं।
वास्तविकता यह है कि अज़ान में न तो ईश्वर को पुकारा जाता है, न अकबर बादशाह को, और न ही यह पूजा करने का कोई तरीक़ा है। बल्कि इसके द्वारा लोगों को नमाज़ के समय की सूचना दी जाती है ताकि लोग मस्जिद में उपस्थित हो कर सामूहिक रूप में ईश्वर की भक्ति करें।
ईश्-भक्ति हेतु हर मुसलमान पुरुष एवं स्त्री पर दिन और रात में पाँच समय की नमाजें अनिवार्य की गई हैं जिनकी अदाएगी महिलाओं को अपने घर में करनी होती है परन्तु पुरुषों को आदेश दिया गया है कि वह उन्हें मस्जिद में जाकर सामुहिक रुप में अदा करें। पाँच समय की यह नमाजें ऐसे समय में भी आती हैं जिसमें एक व्यक्ति सोया होता है या अपने कामों में व्यस्त होता है, अतः ऐसे माध्यम की अति आवश्यकता थी जिसके द्वारा लोगों को नमाज़ों के समय के सूचित किया जा सके। अज़ान इसी उद्देश्य के अंतर्गत दी जाती है। परन्तु इस्लाम का कोई भी आदेश केवल आदेश तक सीमित नहीं होता बल्कि उसमें मानव के लिए पाठ भी होता है। अज़ान के शब्दों पर चिंतन मनन करने से हमें यही बात समझ में आती है। इस विषय में इस्लाम के एक महान विद्वान शाह वलीउल्लाह देहलवी लिखते हैं « ईश्वर की हिकमत का उद्देश्य भी यही था कि अज़ान केवल सूचना अथवा चेतावनी हो कर न रह जाए बल्कि धर्म का परिचय कराने में दाखिल हो जाए, और दुनिया में इसकी प्रतिष्ठा केवल चेतावनी की नहीं धर्म प्रचार की भी हो, और उसकी आज्ञापालन और उपासना का चिह्न भी समझा जाए, इस लिए अनिवार्य यह हुआ कि इसमें अल्लाह की प्रशंसा हो, अल्लाह और उसके अन्तिम संदेष्टा हज़रत मुहम्मद सल्ल0 के वर्णन के साथ नमाज़ की ओर बुलावा हो ताकि इस उद्देश्य की भली-भाति पुर्ति हो सके»
अब आपके मन में यह प्रश्न पैदा हो रहा होगा कि अज़ान के शब्दों का क्या अनुवाद होता है तो आइए सर्वप्रथम हम अज़ान के शब्दों का अर्थ जानते हैं
" ईश्वर सब से महान है (चार बार) मैं वचन देता हूं कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई दूसरा उपासना के योग्य नहीं (दो बार) मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं (दो बार) आओ नमाज़ की ओर (दो बार) आओ सफलता की ओर (दो बार) ( नमाज़ सोने से उत्तम है [दो बार] यह मात्र सुबह की नमाज़ में कहे जाते हैं) ईश्वर सब से महान है, ईश्वर सब से महान है, ईश्वर के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं।
यह रहा अर्थ अज़ान का, अब आइए अज़ान के इन शब्दों पर चिंतन मनन कर के देखते हैं कि अज़ान में क्या संदेश दिया जाता है।
पहला शब्दः ईश्वर सर्व महान है (चार बार) अज़ान देने वाला सब से पहले मनुष्यों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि ईश्वर जो सम्पूर्ण संसार का सृष्टा, स्वामी और पालनहार है, वह सर्वमहान है, वह अनादी और अनन्त है, निराकार और निर्दोश है, उसके पास माता पिता नहीं, उसको किसी की आवश्कता नहीं पड़तीन वह न किसी का रुप लेकर पृथ्वी पर आता है और न उसका कोई साझीदार है। परन्तु जब मनुष्य इस महान पृथ्वी पर आकाश को देखता है, सूर्य, चंद्रमा, और सितारों पर दृष्टि डालता है, बिजली की चमक, बादल की गरज, और किसी पीर फक़ीर के चमत्कार आदि पर गौर करता है तो इन सब की महानता उसके हृदय में बैठने लगती है तो अज़ान देने वाला यह याद दिलाता है कि यह सब चीज़ें ईश्वर की महानता के सामने बिल्कुल तुच्छ हैं क्यों कि वही इन सब चीज़ों का बनाने वाला है, वही लाभ एवं हानि का मालिक है। यह चीज़े अपनी महानता के बावजूद ईश्वरीय दया की मुहताज हैं, ईश्वर ही सब की आवश्यकतायें पूरी कर रहा है, संकटों में वही मुक्ति देता है, सब की पुकार को सुनता है, परोक्ष एवं प्रत्यक्ष का जानने वाला है, सारे पीर फक़ीर, साधु संत और दूत सब उसी के मुहताज हैं और उनको किसी को लाभ अथवा हानि पहुंचाने का कुछ भी अधिकार नहीं क्योंकि मात्र एक ईश्वर सर्वमहान है।
दूसरा शब्दः ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। (दो बार)
पहले शब्द से जब यह सिद्ध हो गया कि ईश्वर सर्वमहान है, सारी चीज़ें उसी की पैदा की हुई हैं तथा उसी के अधीन हैं तो अब यह पुकार लगाई जाती है कि उसी की आज्ञाकारी भी की जानी चाहिए। अतः अज़ान देने वाला कहता है कि मैं वचन देता हूं कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं। वीदित है की जब सब कुछ ऊपर वाला ईश्वर ही करता है तो फिर सृष्टि की कोई प्राणी अथवा वस्तु उपास्य कैसे हो सकती है ? अतः यह पुकार लगाई जाती है कि हे मनुष्यो! सुन लो कि ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा नहीं की जानी चाहिए। अब प्रश्न यह था कि ईश्वर की पूजा कैसे की जाएगी और ईश्वर ने मानव मार्गदर्शन हेतु क्या नियम अपनाया तो इसे अज़ान के अगले शब्दों में बताया गया है जिसका वर्णन अगली पोस्ट में होगा। धन्यवाद (जारी )
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