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गीत "सारे जहां से अच्छा" - स्वतंत्रता संग्राम की एक अनोखी दास्तान

Written By Mohammed Umar Kairanvi on बुधवार, 17 फ़रवरी 2010 | बुधवार, फ़रवरी 17, 2010



स्वाधीनता संग्राम संबंधित किस्सों से यूं तो इतिहास भरा पड़ा है लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं जो महत्वपूर्ण होने के बावजूद इतिहास के पन्नों में उचित स्थान प्राप्त नहीं कर सकी हैं। अल्लामा इकबाल द्वारा लिखे गये देश भक्ति गीत सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा' हम हर स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर गाते हैं लेकिन ये गीत किस स्थिति में लिखा गया ये बहुत कम लोगों को मालूम होगा।गीत की रचना हुए एक सदी से ज्यादा बीत गई है लेकिन आज भी तराना हिन्द के बगैर स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस को कोई भी राष्ट्रीय पर्व का समारोह पूरा नहीं हो सकता। इक़बाल ने ये गीत १०३ वर्ष पूर्व १०अगस्त १९०४ को लाहौर में लिखा था देश में उस समय स्वतंत्राता आन्दोलन ज्वार पर था। ऐसे में इक़बाल ने तराना-ए-हिन्द लिखकर लोगों में जोश की वो आग भड़काई जो स्वतंत्राता प्राप्त किये बिना बुझने को किसी भी स्थिति में तैयार नहीं था।इस तराना को पहली बार गाये जाने की कहानी भी काफी रोचक है।

बात उन दिनों की है जब लाहौर में युवाओं के मनोरंजन के लिए एक ही क्लब हुआ करता था। क्लब का नाम था यंग मैन क्रिश्चयन एसोसियेशन।एक बार लाला हरदयाल की क्लब के सचिव से किसी बात को लेकर तीखी बहस हो गई। लाला जी ने आव देखा न ताउ तुरंत ही यंग मैन इंडिया एसोसियेशन की स्थापना कर दी। उस समय लाला हरदयाल लाहौर में एम ए कर रहे थे। लाला जी के कालेज में इक़बाल दर्शन शास्त्र पढ़ाते थे दोनों के बीच दोस्ताना संबंध था जब लाला जी उनसे एसो सियेशन के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करने को कहा तो वह सहर्ष तैयार हो गये ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा कि किसी समारोह के अध्यक्ष ने अपने अध्यक्षीय भाषण के स्थान पर कोई तराना गाया हो।इस छोटी लेकिन जोश भरी रचना का श्रोताओं पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि इक़बाल को समारोह के आरंभ और समापण दोनों पर ये गीत सुनाना पड़ा।


ये गीत पहली बार मौलाना शरर की उर्दू पत्रिका इत्तेहाद में १६अगस्त् १९०४ को प्रकाशित हुआ । इस तराने के शीर्षक भी कई बार बदले गये। पहले यह ÷हमारा देश' के शीर्षक से प्रकाशित हुआ फिर हिन्दुस्तां हमारा' के नाम से प्रकाशित हुआ।इस गीत ने लोगों पर ऐसा प्रभाव छोड़ा कि यह सब की जुबान पर चढ़ गया बाद में इक़बाल ने अपने पहले कविता संग्रह ÷बांगे दरा' में इसे तराना-ए-हिन्द के नाम से शामिल कर लिया। स्वतंत्रात आंदोलन में इस गीत का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि १४-१५ अगस्त की रात में ठीक १२ बजे संसद में हुए समारोह में जन गण मन के साथ इक़बाल की इस रचना ÷सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा' को भी समूहगान के रूप में गाया गया।स्वतंत्रता की २५वीं वर्षगांठ पर १५अगस्त १९७२ को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इस गीत की धुन तय कराई आज कल यही धुन प्रचलित है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस गीत को सुनकर कहा था कि यह हिन्दुतान की क़ौमी जु+बान का नमूना है। ये अलग बात है कि उर्दू हिन्दुस्तान की कौमी जुबान नहीं बन सकी। हिन्दी ने उर्दू पर बाज़ी मार ली

आज जब हम आजादी के ६० वर्ष पूरे कर चुके हैं तब इक़बाल द्वारा लिखे इस तराने का महत्व और भी बढ़ गया है। भारत की एकता आज पहले से अधिक जरूरी हो गई है और ये गीत सर्वधर्म एकता का ही प्रतीक है।इस गीत से संबंधित ये पहलू बहुत दुखदायक है कि कुछ लोग इस गीत को केवल इसलिए नज़र अंदाज करते हैं कि इसे इक़बाल ने लिखा था जिन्हें पाकिस्तान के गठन का समर्थक कहा जाता है। हाल ही में एक और देश भक्ति गीत वंदेमातरम १०० वर्ष पूरे होने पर जिस तरह कुछ लोगों ने हंगामा मचाया वह वास्तव में सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा का विरोध था। हालांकि सरकार की ओर से इस गीत को गाने के लिए बाध्य नहीं किया गया था फिर भी कुछ राज्यों में मुस्लिम संस्थानों को जान बुझ कर इस गीत को गाने पर बाध्य किया गया।

बहरहाल सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा का महत्व आज भी बरकरार है और आगे भी रहेगा क्योंकि स्वतंत्रता से संबंधित ये ऐसा गीत है जो सबकी समझ में बहुत आसानी से आ जाता है


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