World's First Islamic Blog, in Hindi विश्व का प्रथम इस्लामिक ब्लॉग, हिन्दी मेंدنیا کا سبسے پہلا اسلامک بلاگ ،ہندی مے ਦੁਨਿਆ ਨੂ ਪਹਲਾ ਇਸਲਾਮਿਕ ਬਲੋਗ, ਹਿੰਦੀ ਬਾਸ਼ਾ ਵਿਚ
आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन
Home » , » क्या है मौत आने का राज़?

क्या है मौत आने का राज़?

Written By zeashan haider zaidi on सोमवार, 1 नवंबर 2010 | सोमवार, नवंबर 01, 2010

अगर आप इस लेख को आत्मा या रूह से सम्बंधित मान रहे हैं तो ऐसा हरगिज नहीं है। चूंकि मेरे सभी लेख साइंस से ही सम्बंधित हैं इसलिये मैं ऐसी कोई बात नहीं करूंगा जो साइंस के दायरे से बाहर हो। बल्कि मैं बात करने जा रहा हूं फिजिकल मौत की, जबकि इंसान में कोई हरकत बाकी नहीं रह जाती। इंसान को मौत कब आती है इस बारे में साइंस आज भी पूरी तरह इल्म नहीं रखती। यहाँ तक कि मौत की परिभाषा भी साइंस के अनुसार अधूरी है। साइंस के अनुसार मौत की परिभाषा ये है कि मौत किसी जिंदा चीज़ में जैविक प्रक्रियाओं के रुकने का नाम है। लेकिन यह देखा गया है कि जिस्म में कुछ जैविक प्रक्रियाएं मौत के बाद भी होती रहती हैं। जैसे कि बाल और नाखून का बढ़ना। 

साइंस मौत के राज़ से अभी भी परदा नहीं उठा पायी है। मौत की पहचान जिस्म में मौजूद जिंदगी के कुछ लक्षणों के खत्म हो जाने से होती है जिन्हें वाइटल साइन (Vital Sign) कहते हैं। जिनमें दिमाग या दिल का काम करना शामिल है। हालांकि अक्सर दिल रुकने के बाद फिर चलता हुआ देखा गया है। और इसी तरह कोमा की हालत में दिमाग काम करना बन्द कर देता है। लेकिन उसके बाद भी कई लोगों को जिन्दा रहते हुए देखा गया है। कोमा की हालत में ब्रेन डेथ को पहचानने के लिये एक टेस्ट किया जाता है जिसे ऐप्निया (Apnoea) टेस्ट कहते हैं। इसमें मरीज़ को वेंटीलेटर पर रखकर दस मिनट तक फुल आक्सीज़न सप्लाई दी जाती है और फिर जिस्म से निकलने वाली कार्बन डाई आक्साइड का स्तर नापकर ब्रेन डेथ को पहचान लिया जाता है।

कुछ जगहों पर ब्रेन डेथ को मौत का कनफर्मेशन नहीं माना जाता। बल्कि दिल के रुकने को डेथ कनफर्मेशन माना जाता है। लेकिन दोनों ही लक्षणों को पूरा सटीक नहीं माना जाता। और जैसे जैसे मेडिकल साइंस तरक्की कर रही है मौत की परिभाषा और मुश्किल होती जा रही है।

अब आईए देखते हैं कि इस्लाम इस बारे में क्या कहता है। 

मौत का जो आम कान्सेप्ट लोगों के बीच ज़ाहिर है वह है जिस्म से रूह या आत्मा का निकलना। जिस्म से जब रूह जुदा हो जाती है तो उसी वक्त इंसान मर जाता है और उसका बदन बेजान हो जाता है। लेकिन रूह कोई फिजिकल शय नहीं है और हम उसे महसूस नहीं कर सकते। इस्लाम भी यही कहता है कि रूह अल्लाह का हुक्म है। ज़ाहिर है कि साइंस का कोई एक्सपेरीमेन्ट न तो रूह को दिखा सकता है और न उसे महसूस करा सकता है। इसलिए साइंस कभी मौत की परिभाषा में रूह को शामिल नहीं कर सकती। दूसरी बात, रूह का इंसानों के लिये तो कान्सेप्ट है लेकिन जानवरों के लिये नहीं। 

तो फिर हमें कोई ऐसी फिजिकल कण्डीशन दरियाफ्त करनी पड़ेगी जो साइंस के नज़रिये से काबिले कुबूल हो। इस तरह की कण्डीशन हमें मिलती है अपने ज़माने के महान इस्लामी दानिश्वर शेख सुद्दूक (अ.र.) की ग्यारह सौ साल पुरानी किताब एललुश-शराये में।    

शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एललुश-शराये में ‘मय्यत को गुस्ल क्यों देते हैं?’ का जवाब देते हुए इमामों की कुछ हदीसें पेश की गयी हैं।

इमाम हज़रत अली बिन हुसैन अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि कोई मखलूक उस वक्त तक नहीं मरती जब तक कि उसमें से वह नुत्फा न निकल जाये जिससे अल्लाह तआला ने उसको पैदा किया है ख्वाह वह मुंह की तरफ से ख्वाह किसी और जगह से।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने मय्यत को गुस्ल देने की वजह बताते हुए फरमाया कि उसी नुत्फे की वजह से जिससे वह पैदा किया गया है। उससे उस को दूर करना होता है।

इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि अल्लाह तआला इस अम्र से अरफा व अआला है कि वह अपने हाथ से किसी शय को बनाये। अल्लाह तआला के पास दो फ़रिश्ते हैं जो खल्क का काम करते हैं। चुनांचे जब अल्लाह तआला इरादा करता है कि किसी को खल्क करे तो उन खल्क़ पर मामूर फरिश्तों को हुक्म देता है और वह मि  ट्‌टी में से कुछ लेते हैं। चुनांचे इस के मुताल्लिक कुरआन में इरशाद है,‘उसी मिट्‌टी से हम ने तुम्हें पैदा किया उसी में तुम्हें पलटायेंगे और उसी से दोबारा तुम लोगों को निकालेंगे। (सूरे ताहा आयत 55) पस वह फ़रिश्ते उस मिट्‌टी को उस नुत्फे में गूंधते हैं जो औरत के रहम में साकिन है और जब उसे गूंध् लेते हैं तो अर्ज़ करते हैं कि परवरदिगार हम लोग उससे क्या बनायें? तो अल्लाह तआला जो कुछ बनाने का इरादा करता है वह उन दोनों फरिश्तों को वही कर देता है कि लड़का बनायें या लड़की, मोमिन बनायें या काफिर, काला बनायें या गोरा, बदबख्त बनायें या नेकबख्त और जब इंसान मर जाता है तो वही नुत्फा बईनेह बह जाता है, इसलिये मय्यत को गुस्ले जनाबत भी दिया जाता है

इस तरह यह मालूम हुआ कि जिस नुत्फे से इंसान की पैदाइश होती है वह जिस्म के किसी हिस्से में मौजूद होता है और इंसान तभी तक जिन्दा रहता है जब तक वह नुत्फा जिस्म में मौजूद रहता है। और जब वह जिस्म को छोड़ कर अलग हो जाता है उसी वक्त जिस्म मुर्दा हो जाता है। अभी तक मेडिकल साइंस इस राज़ से पर्दा नहीं उठा पायी है कि वह नुत्फा होता है या नहीं और अगर होता है तो जिस्म में कहां होता है। 

इंसान के जिस्म में नये इंसान का बनना भी अपने में कुदरत की कारीगरी का हैरतअंगेज़ नमूना है। जिसकी शुरुआत तब होती है जब बाप का नुत्फा यानि कि स्पर्म माँ के अण्डे से टकराता है। यह काम माँ के पेट में बनी फेलोपियन ट्‌यूब के उस किनारे पर होता है जो ओवरी के पास और गर्भाशय से दूर होता है। करोड़ों नुत्फों में से सिर्फ एक नुत्फा इस प्रोसेस के दौरान अण्डे का बाहरी कवर भेदकर भीतर पहुंच जाता है। जब स्पर्म अण्डे के बाहरी हिस्से के पास पहुंचता है तो उसी वक्त अण्डा फर्टिलाईज़िन (Fertilizin) नामक एक पदार्थ छोड़ता है जो स्पर्म को अण्डे के साथ जल्दी रिएक्शन करने पर उकसाता है। नतीजे में स्पर्म अण्डे से चिपक जाता है। और उसी वक्त वह भी एक पदार्थ एण्टी फर्टिलाईज़िन (Anti Fertilizin) छोड़ता है जो फर्टिलाईज़िन के असर को खत्म कर देता है नतीजे में दूसरे स्पर्म अण्डे के पास आने से लाचार हो जाते हैं। उधर स्पर्म सेल जैसे ही अण्डे में दाखिल होता है सिर्फ दो सेकण्ड के अन्दर अण्डे की दीवार फिर से बन जाती है और फिर उसे कोई और स्पर्म भेद नहीं पाता।

जैसे ही स्पर्म अण्डे में दाखिल होता है, उसकी पूंछ जो उसे माँ के जिस्म में आगे बढ़ने में मदद दे रही थी अब टूटकर अलग हो जाती है। क्योंकि उसका काम खत्म हो चुका है। बच्चे की कद काठी और सेक्स और दूसरी क्वालिटीज़ निर्धारित होती हैं स्पर्म और अण्डे में मौजूद क्रोमोसोम के जरिये जो 23 जोड़े यानि कुल 46 होते हैं। स्पर्म और अण्डे के मिलने के बाद बच्चे का जो प्रारम्भिक शेप सामने आता है वह ज़ायगोट (Zygote) कहलाता है। ज़ायगोट  से बच्चे का बदन तीन चरणों में मुकम्मल होता है।

पहली स्टेज : प्री एम्ब्रायनिक (Pre-embryonic) - यह शुरूआती तीन हफ्तों की स्टेज होती है।
दूसरी स्टेज : एम्ब्रायनिक (embryonic) - यह अगले साढ़े पाँच हफ्तों तक रहती है।
तीसरी स्टेज : फीटल (foetal) - आठवें हफ्ते से शुरू होकर पैदाइश तक बच्चा इस शक्ल में विकसित होता है। 

24 घण्टे के बाद ज़ायगोट सेल डिवाइड होना शुरू हो जाता है और अपने जैसा नया सेल बना लेता है। फिर दो से चार और चार से आठ सेल बनते हैं और यह तादाद काफी तेज़ी से बढ़ती है। इसी बीच सेल्स का यह गुच्छा फेलोपियन ट्‌यूब से निकलकर गर्भाशय (Uterus) में पहुंच जाता है। 

सेल का डिवीजन होता रहता है और इस तरह ये अपनी तादाद बढ़ाकर एक गुच्छे की शक्ल में आ जाते हैं। और गोश्त के टुकड़े की तरह दिखने लगते हैं। जिसे हम एम्ब्रायो (Embryo) नाम से पुकारते हैं। जैसे जैसे एम्ब्रायो का साइज़ बढ़ता है वैसे वैसे गर्भाशय का साइज़ भी बढ़ने लगता है। ताकि एम्ब्रायो पूरी सुरक्षा के साथ अपना विकास करता रहे। एक खास बात जो साइंस मालूम कर चुकी है वह एम्ब्रायो में मौजूद प्रिमिटिव स्ट्रीक (Primitive streak) के बारे में है। प्रिमिटिव स्ट्रीक एम्ब्रायो में चौदहवें दिन डेवलप होती है और यहीं से पूरी तरह फाइनल हो जाता है कि बच्चे में क्या क्या क्वालिटीज़ होंगी। प्रिमिटिव स्ट्रीक गैस्ट्रूलेशन (Gastrulation) की साइट को बताती है और मूल परतों (Germ Layers) के बनने की शुरूआत करती है। आम अलफाज़ में कहा जाये तो जिस तरह किसी खूबसूरत पेंटिंग को बनाने के लिये पहले उसका स्केच तैयार किया जाता है उसी तरह बच्चे के डेवलपमेन्ट से पहले प्रिमिटिव स्ट्रीक एक स्केच की तरह बन जाती है। अब इसी स्केच के ऊपर बच्चे के जिस्म के अलग अलग अंग तैयार होने शुरू होते हैं। जिन्हें तीन हिस्सों में बाँटा गया है। जिनके नाम क्रमशः  एण्डोडर्म, मीज़ोडर्म तथा एक्टोडर्म हैं।

एण्डोडर्म से आगे फेफड़े, हाजमे का सिस्टम, लीवर, पैन्क्रियास, थायराइड इत्यादि बनते हैं।
मीज़ोडर्म से आगे हड्डियों का ढांचा, हड्डियों को गति देने वाली मसेल्स, दिल व सरक्यूलेटरी सिस्टम और स्किन का भीतरी हिस्सा बनता है।
एक्टोडर्म से आगे दिमाग व नर्वस सिस्टम, बाल, बाहरी स्किन वगैरा चीज़ें बनती हैं।   

बच्चे का जिस्म जैसे जैसे बढ़ता है उसकी प्रिमिटिव स्ट्रीक उसके मुकाबले में महीन होती जाती है और एक बेकार की चीज़ लगने लगती है। लेकिन एक बात तय है कि यह प्रिमिटिव स्ट्रीक कभी भी जिस्म से अलग नहीं होती। और इसमें उस व्यक्ति के जिस्म का पूरा नक्शा स्टोर रहता है। इसी स्ट्रीक में वह नुत्फा या उसके लक्षण मौजूद होते हैं जो बच्चे के बाप से माँ के पेट में पहुंचा था। इससे नतीजा यही निकलता है कि इंसान जब तक कि वह जिन्दा है उसके जिस्म में प्रिमिटिव स्ट्रीक और उसके अन्दर नुत्फा मौजूद रहता है। और अगर यह नुत्फा किसी वजह से बाहर निकल जाये तो उसी वक्त इंसान की मौत हो जाती है। फिलहाल मेडिकल साइंस इस खोज तक नहीं पहुंच पायी है।

चूंकि प्रिमिटिव स्ट्रीक में उस व्यक्ति के जिस्म का पूरा नक्शा स्टोर रहता है। और अगर यह नक्शा वैज्ञानिक ढूंढने में कामयाब हो जायें तो उस इंसान के जिस्म को फिर से पैदा कर सकते हैं। तो अब हमें कुरआन की इन आयतों को झुठलाना नहीं चाहिए। 
(बनी इस्राइल : 49-51) और ये लोग कहते हैं कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल कर) हड्डियां रह जायेंगे और रेज़ा रेज़ा हो जायेंगे तो क्या नये सिरे से पैदा करके उठा खड़े किये जायेंगे? (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम (मरने के बाद) चाहे पत्थर बन जाओ या लोहा या कोई और चीज़ जो तुम्हारे ख्याल में बड़ी (सख्त) हो और उसका जिन्दा होना दुश्वार हो तो वो भी ज़रूर जिन्दा होगी। तो ये लोग अनकरीब ही तुमसे पूछेंगे कि भला हमें दोबारा कौन जिन्दा करेगा तुम कह दो कि वही (खुदा) जिसने तुमको पहली मर्तबा पैदा किया। 
(रोम : 19) वह जिन्दा को मुर्दे से निकालता है और मुर्दे को जिन्दा में से निकाल लाता है और ज़मीन को उस की मौत के बाद जिंदगी बख्शता है। उसी तरह तुम लोग भी (मौत की हालत से) निकाल लिये जाओगे।  
Share this article :
"हमारी अन्जुमन" को ज़यादा से ज़यादा लाइक करें !

Read All Articles, Monthwise

Blogroll

Interview PART 1/PART 2

Popular Posts

Followers

Blogger templates

Labels

 
Support : Creating Website | Johny Template | Mas Template
Proudly powered by Blogger
Copyright © 2011. हमारी अन्‍जुमन - All Rights Reserved
Template Design by Creating Website Published by Mas Template