विचार करते हैं शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एललुश्शराये में दर्ज सूरज ग्रहण से मुताल्लिक चंद बातों पर जो रसूल (स.) की हदीसों से ली गयी हैं।
‘‘---और अगर कहा जाये कि सूरज ग्रहण के लिये नमाज़ क्यों करार दी गयी तो कहा जायेगा कि ये अल्लाह की निशानियों में से एक निशानी है और कोई नहीं जानता कि ये सूरज ग्रहण रहमत के लिये हुआ है या अज़ाब के लिये। इसलिए नबी (स.) ने चाहा कि आप की उम्मत अपने खालिक व रहमान की बारगाह में गिड़गिड़ाकर दुआ करे कि वह इस गहन के बुरे असरात से बचाये जिस तरह हज़रत यूनुस (अ.) की कौम को कि जब उस ने अपने खालिक से गिड़गिड़ाकर दुआ माँगी तो अल्लाह ने उनसे अज़ाब को टाल दिया।
-----------------और अगर कहा जाये कि रुकूअ के बदले सज्दे क्यों करार पाये तो कहा जायेगा कि खड़े होकर नमाज़ पढ़ना अफज़ल है बैठकर नमाज़ पढ़ने से लेकिन खड़ा शख्स ग्रहण लगने और उसके छूटने को देख सकता है और जो सज्दे में है वह नहीं देख सकता।’’
देखा जाये तो उपरोक्त पैरा को पढ़ने पर तीन बातें निकलकर सामने आती हैं।
1- सूरज ग्रहण अल्लाह की निशानी है।
2- सूरज ग्रहण या तो रहमत के लिये होता है या अज़ाब के लिये, यानि या तो इससे फायदा होता है या फिर नुकसान।
3- सूरज ग्रहण को देखना नहीं चाहिए।
अब देखते हैं मौजूदा साइंस के नज़रिये से ये बातें किस हद तक सही हैं। सबसे पहले बात करते हैं प्वाइंट नं 3 पर। जब ये बात इस्लाम ने बताई कि सूरज ग्रहण को देखना नुकसानदायक हो सकता है तो मुसलमानों ने तो ये बात बिना हिचक मान ली लेकिन यूरोपियन साइंटिस्ट इसे एक अर्से तक अंधविश्वास मानते रहे। लेकिन जब सूरज ग्रहण को नंगी आँखों से देखने वाले अंधे होना शुरू हो गये तो साइंसदाँ इसपर कुछ सोचने के लिये मजबूर हुए। फिर आगे रिसर्च में ये साबित हुआ कि सूर्य ग्रहण के वक्त सूर्य से जो अदृश्य रेडियेशन निकलता है वह आँखों के रेटिना को हमेशा के लिये खराब कर देता है। चूंकि सूर्य ग्रहण के वक्त सूर्य की चमक बहुत कम हो जाती है और लोग सोचते हैं कि उसे देखने से आँखों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन ये हकीकत है कि सूरज से खतरनाक रेडियेशन हमेशा ही निकलता रहता है और कभी भी उसे सीधे देखना हानिकारक होता है। यहाँ तक कि उसे बाइनाकुलर या कैमरे से भी देखना नुकसानदेय होता है।
अब बात करते हैं प्वाइंट नं 2 पर। इस्लाम के अनुसार सूरज ग्रहण अल्लाह की रहमत भी होता है और अज़ाब भी। दूसरे लफ्ज़ों में सूरज ग्रहण फायदा भी पहुंचा सकता है और नुकसान भी। सूरज ग्रहण के फायदों के बारे में साइंस अभी लगभग अँधेरे में है। और इसपर बड़ी रिसर्च की ज़रूरत है। लेकिन जो सामने की बात दिखाई देती है वह ये कि सूरज और दूसरे ग्रहों की बनावट समझने में सूरज ग्रहण का बहुत बड़ा योगदान होता है। पुराने ज़माने में ग्रीक व रोम के लोग इसके ज़रिये अपने कैलेण्डर सही करते थे। सूरज व चाँद की सही परिधि व व्यास इसी दौरान नापा गया। इस दौरान एस्ट्रोनोमी की स्टडी में बहुत सी ऐसी बातों का पता चलता है जिनका अध्ययन चमकते सूरज के वक्त नामुमकिन होता है।
अगर इसे प्वाइंट नं 1 के साथ मिलाकर देखा जाये कि सूरज ग्रहण अल्लाह की निशानियों में से एक निशानी है तो मामला साफ हो जाता है। यानि सूरज ग्रहण के दौरान कुदरत के ऐसे करिश्मे नज़र आते हैं जिनकी झलक आम दिनों में दिखनी तकरीबन नामुमकिन है। उन्नीसवीं सदी में जानसेन ने एक सूरज ग्रहण को स्पेक्ट्रोस्कोप से देखने पर ऐसे तत्व का पता चलाया जो पृथ्वी पर नहीं पाया जाता था। उसके तीस साल बाद यह तत्व पृथ्वी पर भी ढूंढ लिया गया। यह तत्व था हीलियम जो हाईड्रोजन के बाद सबसे हलका तत्व होता है।
आइंस्टीन ने अपनी जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में जब बताया कि रौशनी की किरण का पथ गुरुत्वीय प्रभाव में बदल जाता है और स्पेस-टाइम कर्व होता है, तो इसको प्रायोगिक रूप में सूरज ग्रहण के समय देखा गया। ऐसे ही समय में चन्द्रमा और पृथ्वी की गति की सही सही गणना लेसर की मदद से की गयी। चाँद ग्रहण के दौरान ही यह मालूम किया गया कि धरती पर ओजोन की परत 50 से 80 किमी0 मोटाई की है। सूरज ग्रहण के दौरान मालूम हुआ कि वहाँ पर आयरन बहुत ऊंची आयनीकृत अवस्था में मौजूद है। इस अवस्था से सूरज के कोरोना के ताप का अंदाज़ा दस लाख डिग्री सेंटीग्रेड लगाया गया है।
इस तरह जहाँ सूरज ग्रहण, इसको सीधे देखने वालों को अंधा कर देता है और जिंदगी भर का अज़ाब बन जाता है वहीं ये अक्ल वालों के लिये और रिसर्च करने वालों के लिये रहमत बनकर आता है क्यांकि इनके ज़रिये से नयी नयी बातों का पता चलता है और हम अल्लाह की कुदरत से रोशनास होते हैं।
हम देखते हैं कि आज साइंस जो भी डिस्कवर कर रही है उसकी दिशा दिखा रही हैं हज़ार साल से ज्यादा पुरानी हमारी हदीसें।