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आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन
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कुरआन से प्रभावित हो गैरी मिलर बन गए मुसलमान

Written By इस्लामिक वेबदुनिया on शनिवार, 29 जून 2013 | शनिवार, जून 29, 2013

एक दिन गैरी मिलर ने कमियां निकालने के  मकसद से कुरआन का अध्ययन करने का निश्चय किया ताकि वह इन कमियों को आधार बनाकर मुसलमानों को ईसाइयत की तरफ बुला सके और उन्हें  ईसाई बना सके।  लेकिन उन्होंने कुरआन का अध्ययन किया तो वह दंग रह गए।  उन्होंने कुरआन के अध्ययन में पाया कि दुनिया में कुरआन जैसी कोई दूसरी किताब नहीं है।
एक अहम ईसाई धर्म प्रचारक कनाडा के गैरी मिलर ने इस्लाम अपना लिया और वे इस्लाम के लिए एक महत्वपूर्ण संदेशवाहक साबित हुए। मिलर सक्रिय ईसाई प्रचारक थे और बाइबिल की शिक्षाओं पर उनकी गहरी पकड़ थी। वे गणित को काफी पसंद करते थे और यही वजह है कि तर्क में मिलर का गहरा विश्वास था। एक दिन गैरी मिलर ने कमियां निकालने के  मकसद से कुरआन का अध्ययन करने का निश्चय किया ताकि वह इन कमियों को आधार बनाकर मुसलमानों को ईसाइयत की तरफ बुला सके और उन्हें  ईसाई बना सके। वे सोचते थे कि कुरआन चौदह सौ साल पहले लिखी गई एक ऐसी किताब होगी जिसमें रेगिस्तान और उससे जुड़े कहानी-किस्से होंगे। लेकिन उन्होंने कुरआन का अध्ययन किया तो वह दंग रह गए। कुरआन को पढ़कर वह आश्चर्यचकित थे। उन्होंने कुरआन के अध्ययन में पाया कि दुनिया में कुरआन जैसी कोई दूसरी किताब नहीं है। पहले डॉ. मिलर ने सोचा था कि कुरआन में पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. के मुश्किलभरे दौर के किस्से होंगे जैसे उनकी बीवी खदीजा रजि. और उनके बेटे-बेटियों की मौत से जुड़े किस्से। लेकिन उन्होंने कुरआन में ऐसे कोई किस्से नहीं पाए बल्कि वे कुरआन में मदर मैरी के नाम से पूरा एक अध्याय देखकर दंग रह गए। डॉ. मिलर ने  पाया कि मैरी के अध्याय सूरा मरियम में जो इज्जत और ओहदा पैगम्बर ईसा की मां मरियम को दिया गया है वैसा सम्मान उन्हें ना तो बाइबिल में दिया गया और ना ही ईसाई लेखकों द्वारा लिखी गई किताबों में वह मान-सम्मान दिया गया। यही नहीं डॉ. मिलर ने पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. की बेटी फातिमा रजि. और उनकी बीवी आइशा रजि. के नाम से कुरआन में कोई अध्याय नहीं पाया। उन्होंने जाना कि कु रआन में ईसा मसीह का नाम 25 बार आया है जबकि खुद मुहम्मद सल्ल. का नाम केवल चार बार ही आया है। यह सब जानने के बाद वे ज्यादा कन्फ्यूज हो गए। वे लगातार कुरआन का अध्ययन करते रहे इस सोच के साथ कि इसमें उन्हें जरूर कमियां और दोष पकड़ में आएंगे लेकिन कुरआन का अध्याय अल निशा की 82 आयत पढ़कर वे आश्चर्यचकित रह गए,  इस अध्याय में हैं-
क्या वे कुरआन में गौर और फिक्र नहीं करते। अगर यह अल्लाह के अलावा किसी और की तरफ से होती तो वे इसमें निश्चय ही बेमेल बातें और विरोधाभास पाते।
कुरआन की इस आयत के बारे में डॉ. गैरी मिलर कहते हैं, साइंस का एक जाना पहचाना सिद्धांत है जो आपको गलतियां और कमियां निकालने का अधिकार देता है जब तक कि यह सही साबित ना हो जाए। इसे फालसिफिकेशन टेस्ट कहते हैं। डॉ. मिलर कहते हैं, ताज्जुब की बात है कि कुरआन खुद मुसलमानों और गैर मुसलमानों से इस किताब में कमियां निकालने की कोशिश करने को कहता है और दावा करता है कि वे इसमें कभी कोई कमी नहीं तलाश पाएंगे।  वे  कहते हैं, 'दुनिया में कोई ऐसा लेखक नहीं है जो कोई किताब लिखकर यह कहने की हिम्मत कर सके कि उसकी लिखी किताब में किसी भी तरह की कमी नहीं है। दूसरी तरफ कुरआन कहता है कि उसमें कोई कमी या दोष नहीं है और कहता है कि तुम एक भी गलती ढूंढ़कर बताओ और तुम ऐसा हर्गिज नहीं कर पाओगे।
कुरआन की दूसरी आयत जिससे डॉ. गैरी मिलर प्रभावित हुुए वह है सूरा अंबिया जिसमें है-
क्या उन लोगों ने जिन्होंने इनकार किया, देखा नहीं कि ये आकाश और धरती मिले हुए थे। फिर हमने उन्हें खोल दिया। और हमने पानी से हर जिंदा चीज बनाई, तो क्या वे मानते नहीं?                                                                                                                                                 (21:30)
डॉ. मिलर कहते हैं, यह आयत दरअसल वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय है, इस विषय पर 1973 में नोबेल पुरस्कार दिया गया और जो महान विस्फोट की थ्योरी से संबंधित है। इस थ्योरी के मुताबिक इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति इसी विस्फोट के परिणामस्वरूप थी।
डॉ.गैरी मिलर कहते हैं, अब हम बात करते हैं पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. को शैतान द्वारा मदद करने के दुष्प्रचार के बारे में। अल्लाह कुरआन में कहता है-
इसे शैतान लेकर नहीं उतरे हैं। यह काम न तो उनको सजता है और न ये उनके बस का ही है। वे तो इसके सुनने से भी दूर रखे गए हैं। (26:210-212)
अत: जब तुम कुरआन पढऩे लगो तो फिटकारे हुए शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह मांग लिया करो।  (16: 98)
डॉ. मिलर कहते हैं, आप खुद सोचिए और बताइए क्या यह शैतान द्वारा रचित किताब हो सकती है। शैतान खुद अपने लिए ही आखिर क्यों कहेगा कि कुरआन को पढऩे से पहले तुम शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह मांगों। क्या यह चमत्कारिक कुरआन की चमत्कारिक आयत नहीं है? क्या यह आयत उन लोगों के मुंह पर करारा चांटा नहीं है जो यह कहते हैं कि कुरआन शैतान की तरफ से अवतरित ग्रंथ है।
डॉ. मिलर को प्रभावित करने वाली कुरआन के अध्यायों में से एक अबू लहब से जुड़ा अध्याय है। डॉ. मिलर कहते हैं, 'अबू लहब इस्लाम से इतनी नफरत करता था कि वह पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. का अपमान करने के लिए उनका अक्सर पीछा करता था। वह देखता कि मुहम्मद सल्ल. किसी अजनबी से बात कर रहे हैं तो वह इंतजार करता और उनके जाने के बाद उस शख्स से पूछता कि मुहम्मद सल्ल. तुमसे क्या कह रहे थे?  फिर वह उनकी बात को नकारता, अगर वे कहते कि यह सफेद है तो अबू लहब उसे काला बताता और पैगम्बर की बताई हुई रात को वह दिन बताता यानी उनकी हर बात को झूठी करार देता। इस तरह अबू लहब पैगम्बर के मैसेज के मामले में लोगों को गुमराह करने का काम करता। अबू लहब की मौत से दस साल पहले मुहम्मद सल्ल.पर एक सूरा (अध्याय) अवतरित हुई जिसमें बताया गया कि अबू लहब दोजख में जाएगा यानी अबू लहब कभी इस्लाम नहीं अपनाएगा। अपनी मौत से पहले उन दस सालों के दौरान अबू लहब ने कभी भी नहीं कहा कि  'देखो मुहम्मद कह रहा है कि मैं कभी मुस्लिम नहीं बनूंगा और दोजख की आग में जलूंगा जबकि मैं आप लोगों से कह रहा हूं कि मैं इस्लाम अपनाकर मुसलमान बनना चाहता हूं। अब तुम मुहम्मद के बारे में क्या सोचते हो? वह सच्चा है या झूठा? उस पर अवतरित होने वाली वाणी आखिर ईश्वर की तरफ से कैसे हुई?'
लेकिन अबू लहब ने ऐसा कुछ नहीं कहा। मुहम्मद सल्ल. को हर मामले और हर बात में झूठलाने वाले अबू लहब ने इस मामले में ऐसा कुछ नहीं कहा! दूसरे शब्दों में कहें कि अबू लहब के पास एक ऐसा मौका था जिसके जरिए वह पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. को झूठा साबित कर सकता था। लेकिन  इन दस सालों के दौरान ना अबू लहब ने  इस्लाम अपनाया और ना इस्लाम अपनाने का ढोंग किया। अबू लहब के पास इन दस सालों के दौरान एक मिनट में इस्लाम को झूठा साबित करने का मौका था।
लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, सवाल उठता है आखिर क्यों ऐसा नहीं हुआ? क्योंकि यह मुहम्मद सल्ल. के शब्द नहीं थे बल्कि उस अल्लाह के शब्द थे जो जानता था कि अबू लहब कभी भी मुस्लिम नहीं बनेगा। अगर ये पैगाम अल्लाह की तरफ से ना होता तो आखिर मुहम्मद सल्ल. कैसे जान पाते कि अबू लहब इन दस सालों में ऐसा ही रहेगा जैसा कि इस सूरा में जिक्र किया गया है। क्या किसी शख्स के लिए ऐसा कहना या ऐसा कहने का जौखिम लेना संभव है? इस सबसे यही पता चलता है, यही निष्कर्ष निकलता है कि यह सूरा ईश्वर की ओर से अवतरित हुई जो हर तरह का ज्ञान रखता है।
टूट गए अबू लहब के दोनों हाथ और वह स्वयं भी विनष्ट हो गया! न उसका माल उसके काम आया और न वह कुछ जो उसने कमाया। वह शीघ्र ही प्रज्वलित भड़कती आग में पड़ेगा, और उसकी स्त्री भी ईधन लादनेवाली, उसकी गरदन में खजूर के रेशों की बटी हुई रस्सी पड़ी है। 111:1-5
डॉ. गैरी मिलर कुरआन की एक और सूरा का जिक्र करते हैं जिससे वे काफी प्रभावित हुए। वे कहते हैं कुरआन के चमत्कारों में से एक चमत्कार यह है कि कुरआन भविष्य से जुड़ी बातों को एक चुनौती के रूप में पेश करता है। इस तरह की भविष्यवाणी करना किसी इंसान के बूते की बात नहीं है। उदाहरण के लिए यहूदियों और मुसलमानों के बीच के रिश्ते के मामले में कुरआन कहता है कि यहूदी मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन हैं और यह सच भी है। आज भी मुसलमानों के सबसे बड़े दुश्मन यहूदी ही हैं।
डॉ. मिलर आगे कहते हैं, 'यह एक तगड़ी चुनौती है और यहूदियों को इस्लाम को गलत साबित करने का मौका भी देती है कि वे मुसलमानों से चंद साल दोस्ताना रिश्ते रखकर यह कह दें कि देखो भाई हम तो तुमसे दोस्ताना रिश्ता रखते हैं और तुम्हारा यह कुरआन हमें तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन बता रहा है, तो क्या तुम्हारा कुरआन गलत नहीं हुआ? लेकिन पिछले चौदह सौ सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ। यानी यहूदियों ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे कुरआन पर उंगली उठाई जा सके। और आगे भी ऐसा कुछ नहीं होगा क्योंकि यह ईश्वर के शब्द हैं जो सिर्फ भविष्य की ही नहीं हर काल की हर बात से वाकिफ है। कुरआन किसी इंसान का रचा हुआ नहीं है।'
डॉ. मिलर कहते हैं, आप गौर कर सकते हैं कि कि मुसलमानों और यहूदियों के बीच के संबंधों की बात करने वाली कुरआन की यह आयत इंसानी दिमाग के सामने एक चुनौती पेश करती है।
'तुम ईमानवालों का शत्रु सब लोगों से बढ़कर यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे। और ईमान लानेवालों के लिए मित्रता में सबसे निकट उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा कि 'हम नसारा (ईसाई) हैं।' यह इस कारण है कि उनमें बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी सन्त पाए जाते हैं। और इस कारण कि वे अहंकार नहीं करते।
जब वे उसे सुनते
है जो रसूल पर अवतरित हुआ तो तुम देखते हो कि उनकी आंखें आंसुओं से छलकने लगती है। इसका कारण यह है कि उन्होंने सत्य को पहचान लिया। वे कहते हैं, 'हमारे रब! हम ईमान ले आए। अत तू हमारा नाम गवाही देनेवालों में लिख ले।'
'और हम अल्लाह पर और जो सत्य हमारे पास पहुंचा है उस पर ईमान क्यों न लाएं, जबकि हमें आशा है कि हमारा रब हमें अच्छे लोगों के साथ (जन्नत में) प्रविष्ट करेगा।'
                                                                            (5-82-84)
यह आयतें डॉ. गैरी मिलर पर भी लागू होती है। मिलर पर भी यह आयत सच साबित हुई है जैसा कि डॉ. गैरी मिलर पहले ईसाई थे लेकिन जब सच सामने आया तो इन्होंने इस्लाम अपना लिया और मुसलमान बनकर इस्लाम के एक मजबूत प्रचारक बन गए। उन्होंने अपना नाम अब्दुल अहद उमर रखा।

डॉ. मिलर कुरआन की प्रस्तुति को अनूठी और चमत्कारिक मानते हैं और कहते है  कि इसमें कोई शक नहीं कि कुरआन एकदम अलग हटकर और चमत्कारिक है। दुनिया में कोई भी किताब इस जैसी नहीं है। कुरआन जब कोई खास जानकारी देता है तो बताता है कि तुम इससे पहले यह नहीं जानते थे। ऐसा ही एक उदाहरण है-
'ऐ नबी, ये गैब की खबरें हैं जो हम तुमको वह्य (प्रकाशना) के जरिए बता रहे हैं, वरना तुम उस वक्त वहां मौजूद न थे,जब हैकल के खादिम यह फैसला करने के लिए कि मरयम का सरपरस्त कौन हो, अपने-अपने कलम फेंक रहे थे(यानी कुरआ-अंदाजी कर रहे थे), और न तुम उस वक्त हाजिर थे जब वे आपस में झगड़ रहे थे। '  (3-44)
'ये परोक्ष की खबरें हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे हैं। इससे पहले तो न तुम्हें इनकी खबर थी और न तुम्हारी कौम को। अत: धैर्य से काम लो। निस्संदेह अन्तिम परिणाम डर रखनेवालो के पक्ष में है ।' (11-49)
'ऐ नबी यह किस्सा गैब की खबरों में से है जो हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे हैं, वरना तुम उस वक्त मौजूद न थे जब यूसुफ के भाइयों ने आपस में सहमति कर साजिश की थी।'
                                                                                    (12:102)

डॉ. मिलर आगे कहते हैं, दूसरी किसी भी किताब में आपको कुरआन जैसा अंदाज देखने को नहीं मिलेगा। बाकी दूसरी सभी किताबों में जो जानकारी दी जाती है उसमें उल्लेख होता है कि यह जानकारी कहां से ली गई है। उदाहरण के लिए बाइबिल जब पुराने राष्ट्रों का जिक्र करती है तो उसमें पढऩे को मिलता है कि वह राजा फलां देश में रहता था और फलां लीडर ने यह जंग लड़ी और फलां शख्स के काफी बच्चे थे जिनके नाम ये हैं। लेकिन बाइबिल में हमेशा यह पढऩे को मिलता है कि अगर आप इनके बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते हैं तो फलां किताब पढें जहां से यह जानकारी ली गई है।'
डॉ. मिलर आगे कहते हैं, बाइबिल के विपरीत कुरआन कई नई जानकारी देता है और बताता है कि यह नई जानकारी है जो तुम्हें बताई जा रही है। कितने आश्चर्य की बात है कि कुरआन के अवतरण के दौरान मक्का के लोगों को यह नई बातें जानने को मिलती थीं। यह चुनौती भी थी कि यह जानकारी नई है, इन नई बातों के बारे में ना तो पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. जानते थे और न ही मक्का के लोग। यही नहीं उस वक्त के लोगों ने यह कभी नहीं कहा कि कुरआन की बताई यह नई बात हम पहले से जानते हैं और  यह हमारे लिए नई जानकारी नहीं है। किसी शख्स में यह कहने का साहस नहीं था कि हमसे झूठ कहा जा रहा है क्योंकि यह जानकारी वास्तव में नई थी जो किसी इंसान की तरफ से नहीं बल्कि उस सर्वज्ञानी अल्लाह की तरफ से थी जो भूत, भविष्य और वर्तमान के हर एक पहलू से पूरी तरह वाकिफ है।
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