मानव पथभ्रष्टता का मूल कारण महापुरुषों तथा संदेष्टाओं की चमत्कारियाँ हैं। ईश्वर ने मानव मार्गदर्शन हेतु हर युग एवं हर देश में जब संदेष्टाओं को भेजा, तो उनकी सत्यता को सिद्ध करने के लिए उनको कुछ चमत्कारियां भी दी। परन्तु लोगों ने इन चमत्कारियों की वास्तविकता को न समझने के कारण उन्हीं को अवतार, ईश्वर, ईश्वर का बटा आदि मान लिया। यह सब से बड़ा अत्याचार था जो संदेष्टाओं पर हुआ। इसी कारण आज लोग अपने सृ,ष्टिकर्ता, अन्नदाता औऱ पालनकर्ता को भूल कर सब कुछ महापुरुषों को समझ चुके हैं। इन प्रत्येक महापुरुषों में केवल मुहम्मद सल्ल0 एक ऐसे महापुरुष हैं जिनको आज तक एक मानव-मात्र माना जाता है। जबकि हम देखते हैं कि मुहम्मद सल्ल0 की चमत्कारियाँ बड़ी बड़ी थीं। उदाहरण-स्वरूप
(1) मक्का वालों ने आपके संदेष्टा होने का प्रमाण माँगा तो आपके एक संकेत पर चाँद के दो टुकड़े हो गए जिसका समर्थन आधुनिक विज्ञान ने भी किया है। इस चमत्कार का समर्थन चाँद पर जाने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक निल आर्म्-स् ट्रंग ने भी किया बल्कि इसी कारण उन्होंने इस्लाम भी स्वाकार किया जिसे बहुत कम लोग जानते हैं।
(2) हुदैबिया की सन्धि के अवसर पर अंगुलियों से पानी निकला और 1400 व्यक्तियों ने प्यास बुझाई।
(3) मुहम्मद साहिब का सब से बड़ा चमत्कार दिव्य क़ुरआन है, वह कैसे ? क्यों कि वह न लिखना जानते थे न पढ़ना और न ही उनको किसी गुरू की संगती प्राप्त हुई थी, ऐसा इन्सान क़ुरआन पेश कर रहा है जो स्वयं चुनौती दे रहा है कि ( यदि तुझे क़ुरआन के ईश्वाणी होने में संदेह है तो इसके समान एक सूरः «अध्याय» ही पेश कर दो, यदि तुम सच्चे हो) [सूरः अल-बक़रः23] परन्तु इतिहास साक्षी है कि वह अरब विद्वान जिनको अपने भाषा सौन्दर्य पर गर्व था, अपनी भाषा के सामने दूसरों का गुंगा समझते थे, उसके समान एक टुकड़ा भी पेश न कर सके। हालांकि उन्हीं के समाज में पलने बढ़ने वाला एक अपढ़ व्यक्ति ऐसी वाणी पेश कर रहा था। जिस से ज्ञात यह होता है कि क़ुरआन मुहम्मद साहिब की वाणी नहीं बल्कि ईश्वर की वाणी है। औऱ आज तक क़ुरआन सारे संसार वालों के लिए चैलेंज बना हुआ है। जी हाँ! क़ुरआन की शैली ही ऐसी है कि उसके समान न कोई बना सका है न बना सकता है।
प्रिय भाई ! इन स्पष्ट चमत्कारियों के होते हुए क्या मुहम्मद सल्ल0 का हक़ नहीं था कि उनकी पूजा की जाए ? या वह अपने पूज्य होने का दावा करें ? यदि वह ऐसा दावा करते तो वह संसार जिस ने राम को ईश्वर बना डाला, जिसने कृष्ण जी को गभवान कहने से संकोच न किया, जिसने ईसा अलै0 (जिसस) को ईश्वर का बटा मान लिया। वह ऐसे महान व्यक्ति को ईश्वर मानने से कभी संकोच न करता। लेकिन वह ऐसा कैसे कह सकते थे जबकि वह सत्य संदेश ले कर आए थे। वह तो स्वंय को केवल एक मानव के रूप में प्रकट करते हैं और कहते हैं «मैं एक मानव-मात्र हूं तुम्ही जैसा» आज यदि कोई मुस्लिम मुहम्मद साहिब की पूजा करने लगे तो वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा।
(1) मक्का वालों ने आपके संदेष्टा होने का प्रमाण माँगा तो आपके एक संकेत पर चाँद के दो टुकड़े हो गए जिसका समर्थन आधुनिक विज्ञान ने भी किया है। इस चमत्कार का समर्थन चाँद पर जाने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक निल आर्म्-स् ट्रंग ने भी किया बल्कि इसी कारण उन्होंने इस्लाम भी स्वाकार किया जिसे बहुत कम लोग जानते हैं।
(2) हुदैबिया की सन्धि के अवसर पर अंगुलियों से पानी निकला और 1400 व्यक्तियों ने प्यास बुझाई।
(3) मुहम्मद साहिब का सब से बड़ा चमत्कार दिव्य क़ुरआन है, वह कैसे ? क्यों कि वह न लिखना जानते थे न पढ़ना और न ही उनको किसी गुरू की संगती प्राप्त हुई थी, ऐसा इन्सान क़ुरआन पेश कर रहा है जो स्वयं चुनौती दे रहा है कि ( यदि तुझे क़ुरआन के ईश्वाणी होने में संदेह है तो इसके समान एक सूरः «अध्याय» ही पेश कर दो, यदि तुम सच्चे हो) [सूरः अल-बक़रः23] परन्तु इतिहास साक्षी है कि वह अरब विद्वान जिनको अपने भाषा सौन्दर्य पर गर्व था, अपनी भाषा के सामने दूसरों का गुंगा समझते थे, उसके समान एक टुकड़ा भी पेश न कर सके। हालांकि उन्हीं के समाज में पलने बढ़ने वाला एक अपढ़ व्यक्ति ऐसी वाणी पेश कर रहा था। जिस से ज्ञात यह होता है कि क़ुरआन मुहम्मद साहिब की वाणी नहीं बल्कि ईश्वर की वाणी है। औऱ आज तक क़ुरआन सारे संसार वालों के लिए चैलेंज बना हुआ है। जी हाँ! क़ुरआन की शैली ही ऐसी है कि उसके समान न कोई बना सका है न बना सकता है।
प्रिय भाई ! इन स्पष्ट चमत्कारियों के होते हुए क्या मुहम्मद सल्ल0 का हक़ नहीं था कि उनकी पूजा की जाए ? या वह अपने पूज्य होने का दावा करें ? यदि वह ऐसा दावा करते तो वह संसार जिस ने राम को ईश्वर बना डाला, जिसने कृष्ण जी को गभवान कहने से संकोच न किया, जिसने ईसा अलै0 (जिसस) को ईश्वर का बटा मान लिया। वह ऐसे महान व्यक्ति को ईश्वर मानने से कभी संकोच न करता। लेकिन वह ऐसा कैसे कह सकते थे जबकि वह सत्य संदेश ले कर आए थे। वह तो स्वंय को केवल एक मानव के रूप में प्रकट करते हैं और कहते हैं «मैं एक मानव-मात्र हूं तुम्ही जैसा» आज यदि कोई मुस्लिम मुहम्मद साहिब की पूजा करने लगे तो वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा।