मैनें अपने पिछ्ले लेख "एक भी भारतीय मुस्लमान देशभक्त नही है" में मुस्लमानों के "वन्दे मातरम" ना गाने की वजह बताई थी मेरे उस लेख को पढकर मेरा एक बहुत करीबी दोस्त जो "आगरा की शिवसेना ईकाई का सदस्य" है ये लोग अपने आप को देशभक्त और देशप्रेमी कहते है जबकि (मुझे आज तक इनमें कोई देशभक्त और देशप्रेमी नही मिला बल्कि शहर के सारे गुण्डे-बदमाश शिवसेना और बंजरग दल के सदस्य होते है)
बरहाल मेरा दोस्त जिसका मेरा साथ पिछले नौ सालों से है मुझसे झगडने लगा....कहने लगा की तेरी हिम्मत कैसे हुई ये सब लिखने की? जो "वन्दे मातरम" नही गा सकता वो अपने देश से प्यार नही करता। अगर इस देश में रहना है तो वन्दे मातरम गाना पडेगा वर्ना तुम गद्दार कह लाओगे और गद्दारों के लिये इस देश में जगह नही है तुम ये देश छोडकर जा सकते हों.......वगैरह वगैरह... (वही बातें जो इनके जैसे "कथित देशभक्त" लोग अकसर कहते है)
मैनें उसकी सब बातें सुनने के बाद उससे कुछ सवाल किये जो सुनने के बाद वो बगले झांकने लगा....उसके पास कोई जवाब नही था तो वो बात को अधुरा छॊडकर बगैर कोई जवाब दिये वहां से निकल गया....
वही सवाल मैं आप लोगों से पुछता हूं देखें आप लोगों में से शालीन तरीके से इसका जवाब कौन देता है...(इस्लाम और कुरआन को गाली दे वाले इससे दुर रहें)
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आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन