ईश्वर इंसाफ के दिन (क़यामत) का इंतजार क्यों करता है, आदमी इधर हलाक हुआ उधर उसका हिसाब करे, किसी सरकारी बाबु की तरह एक ही दिन सारे कम निपटने की क्यों सोचता है?
उत्तर: इसमें एक तो यह बात है कि ईश्वर ने इन्साफ का दिन तय किया है ताकि इन्साफ सबके सामने हो और दूसरी बात यह है कि कुछ कर्म इंसान ऐसा करते हैं जिनका पाप या पुन्य इस दुनिया के समाप्त होने तक बढ़ता रहता है. जैसे कि जिस इंसान ने पहली बार किसी दुसरे इंसान की अकारण हत्या की होगी, तो उसके खाते में जितने भी इंसानों कि हत्या होगी सबका पाप लिखा जायेगा. क्योंकि उसने क़यामत तक के इंसानों को कुकर्म का एक नया रास्ता बताया. इसी तरह अगर कोई भलाई का काम किया जैसे कि पानी पीने के लिए प्याऊ बनाया तो जब तक वह प्याऊ है, तब तक उसका पुन्य अमुक व्यक्ति को मिलता रहेगा, चाहे वह कब का मृत्यु को प्राप्त हो गया हो. या फिर कोई किसी एक व्यक्ति को भलाई की राह पर ले कर आया, तो जो व्यक्ति भलाई कि राह पर आया वह आगे जितने भी व्यक्तियों को भलाई कि राह पर लाया और भले कार्य किये, उन सभी के अच्छे कार्यो का पुन्य पहले व्यक्ति को और साथ ही साथ सम्बंधित व्यक्तियों को भी पूरा पूरा मिलता रहेगा, यहाँ तक कि इस पृथ्वी के समाप्ति का दिन आ जाये.
"इसमें एक तो यह बात है कि ईश्वर ने इन्साफ का दिन तय किया है ताकि इन्साफ सबके सामने हो." - आपकी ये बात भी ईश्वर के दुनियाबी होने का घोतक लगती है, ईश्वर बहुत से कार्य सबके सामने नहीं करता और यदि सबके सामने न करे, जो मृत्यु को प्राप्त हुआ उसका न्याय करता जाए तो क्या उसकी बात मानने से मनुष्य इंकार कर देगा, उसके न्याय पे शक करेगा?
उत्तर: मित्र इन्साफ के दिन पर डरपोक या दुनियावी होने की बात पर स्वयं ईश्वर कहता है कि इन्साफ करने के लिए उसे किसी की ज़रूरत नहीं है, वह स्वयं ही काफी है :-
"और हम वजनी, अच्छे न्यायपूर्ण कार्यो को इन्साफ के दिन (क़यामत) के लिए रख रहे हैं. फिर किसी व्यक्ति पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा, यद्दपि वह (कर्म) राइ के दाने ही के बराबर हो, हम उसे ला उपस्थित करेंगे. और हिसाब करने के लिए हम काफी हैं. (21/47)"
रही बात इन्साफ का दिन तय करने की तो जैसे की मैंने पहले भी बताया था, यह इसलिए भी हो सकता है, क्योंकि बहुत से पुन्य और पाप ऐसे होते हैं जिनका सम्बन्ध दुसरे व्यक्ति या व्यक्तियों से होता है. इसलिए "इन्साफ के दिन" उन सभी लोगो का इकठ्ठा होना ज़रूरी है. जब इन्साफ होगा तब ईश्वर गवाह भी पेश करेगा. कई बार तो हमारे शरीर के अंग ही बुरे कर्मो के गवाह होंगे.
जिस व्यक्ति ने पहली बार कोई "पाप" किया होगा, तो उस "पाप" को अमुक व्यक्ति कि बाद जितने भी लोग करेंगे उन सभी के पापो की सजा उस पहले व्यक्ति को भी होगी, इसलिए धरती के आखिरी पापी तक की पेशी वहां होगी.
मान लो अगर कोई राजा अथवा न्यायपालिका यह कहे कि जब तक "सौ कैदी" इकट्ठे नहीं हो जाएँगे तब तक वह न्याय नहीं करेगा, तो यह बड़ा ही अन्याय होगा| क्यूंकि एक व्यक्ति के गुनाहों का दुसरे व्यक्ति के गुनाहों से कोई लेना देना नहीं है| इसलिए उनका इकट्ठे न्याय करना सही नहीं| ठीक इसी तरह क्या क़यामत के दिन तक सब को इकट्ठे न्याय के लिए रोक के रखना गलत नहीं है?
उत्तर: एक व्यक्ति का दुसरे व्यक्ति के गुनाहों से बिलकुल लेना-देना है, उदहारण स्वरुप अगर किसी व्यक्ति ने दुसरे व्यक्ति की हत्या के इरादे से किसी सड़क पर गड्ढा खोदा और उसमें कई और व्यक्ति गिर कर मर गए तो उसके इस पाप के लिए जितने व्यक्तियों की मृत्यु होगी उन सभी का पाप गड्ढा खोदने वाले व्यक्ति पर होगा. ऐसे ही अगर किसी ने कोई बुरा रास्ता किसी दुसरे व्यक्ति को दिखाया तो जब तक उस रास्ते पर चला जायेगा, अर्थात दूसरा व्यक्ति तीसरे को, फिर दूसरा और तीसरा क्रमशः चोथे एवं पांचवे को तथा दूसरा, तीसरा, चोथा एवं पांचवा व्यक्ति मिलकर आगे जितने भी व्यक्तियों को पाप का रास्ता दिखेंगे उसका पाप पहले व्यक्ति को भी मिलेगा, पहला व्यक्ति सभी के चलने का जिम्मेदार होगा. क्योंकि उसी ने वह रास्ता दिखाया है. और इस ज़ंजीर में से जो भी व्यक्ति जानबूझ कर और लोगो को पाप के रास्ते पर डालेगा वह भी उससे आगे के सभी व्यक्तियों के पापो का पूरा पूरा भागीदार होगा.
इसमें अन्याय कैसे है? वह अगर बुराई की कोई राह दुसरे को दिखता ही नहीं तो दूसरा व्यक्ति तीसरे और चोथे व्यक्तियों तक वह बुराई पहुंचाता ही नहीं. इसलिए उनका इकट्ठे न्याय करना सही है.
ठीक यही क्रम अच्छाई की राह दिखने वाले व्यक्ति के लिए है. उसको भी उसी क्रम में पुन्य प्राप्त होता रहेगा. क्या तुम यह कहना चाहते हो की अगर किसी व्यक्ति ने पूजा करने के लिए मंदिर का निर्माण किया तो उसके मरने के बाद उसका पुन्य समाप्त हो जायेगा? जब तक उस मंदिर के द्वारा पुन्य के काम होते रहेंगे, मंदिर का निर्माण करवाने वाले को पुन्य मिलता रहेगा.
नोट: उपरोक्त प्रश्न एवं उत्तर कुछ ग़ैर-मुस्लिम भाइयों से मेरी वार्तालाप में से लिए गए हैं.
उत्तर: इसमें एक तो यह बात है कि ईश्वर ने इन्साफ का दिन तय किया है ताकि इन्साफ सबके सामने हो और दूसरी बात यह है कि कुछ कर्म इंसान ऐसा करते हैं जिनका पाप या पुन्य इस दुनिया के समाप्त होने तक बढ़ता रहता है. जैसे कि जिस इंसान ने पहली बार किसी दुसरे इंसान की अकारण हत्या की होगी, तो उसके खाते में जितने भी इंसानों कि हत्या होगी सबका पाप लिखा जायेगा. क्योंकि उसने क़यामत तक के इंसानों को कुकर्म का एक नया रास्ता बताया. इसी तरह अगर कोई भलाई का काम किया जैसे कि पानी पीने के लिए प्याऊ बनाया तो जब तक वह प्याऊ है, तब तक उसका पुन्य अमुक व्यक्ति को मिलता रहेगा, चाहे वह कब का मृत्यु को प्राप्त हो गया हो. या फिर कोई किसी एक व्यक्ति को भलाई की राह पर ले कर आया, तो जो व्यक्ति भलाई कि राह पर आया वह आगे जितने भी व्यक्तियों को भलाई कि राह पर लाया और भले कार्य किये, उन सभी के अच्छे कार्यो का पुन्य पहले व्यक्ति को और साथ ही साथ सम्बंधित व्यक्तियों को भी पूरा पूरा मिलता रहेगा, यहाँ तक कि इस पृथ्वी के समाप्ति का दिन आ जाये.
"इसमें एक तो यह बात है कि ईश्वर ने इन्साफ का दिन तय किया है ताकि इन्साफ सबके सामने हो." - आपकी ये बात भी ईश्वर के दुनियाबी होने का घोतक लगती है, ईश्वर बहुत से कार्य सबके सामने नहीं करता और यदि सबके सामने न करे, जो मृत्यु को प्राप्त हुआ उसका न्याय करता जाए तो क्या उसकी बात मानने से मनुष्य इंकार कर देगा, उसके न्याय पे शक करेगा?
उत्तर: मित्र इन्साफ के दिन पर डरपोक या दुनियावी होने की बात पर स्वयं ईश्वर कहता है कि इन्साफ करने के लिए उसे किसी की ज़रूरत नहीं है, वह स्वयं ही काफी है :-
"और हम वजनी, अच्छे न्यायपूर्ण कार्यो को इन्साफ के दिन (क़यामत) के लिए रख रहे हैं. फिर किसी व्यक्ति पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा, यद्दपि वह (कर्म) राइ के दाने ही के बराबर हो, हम उसे ला उपस्थित करेंगे. और हिसाब करने के लिए हम काफी हैं. (21/47)"
रही बात इन्साफ का दिन तय करने की तो जैसे की मैंने पहले भी बताया था, यह इसलिए भी हो सकता है, क्योंकि बहुत से पुन्य और पाप ऐसे होते हैं जिनका सम्बन्ध दुसरे व्यक्ति या व्यक्तियों से होता है. इसलिए "इन्साफ के दिन" उन सभी लोगो का इकठ्ठा होना ज़रूरी है. जब इन्साफ होगा तब ईश्वर गवाह भी पेश करेगा. कई बार तो हमारे शरीर के अंग ही बुरे कर्मो के गवाह होंगे.
जिस व्यक्ति ने पहली बार कोई "पाप" किया होगा, तो उस "पाप" को अमुक व्यक्ति कि बाद जितने भी लोग करेंगे उन सभी के पापो की सजा उस पहले व्यक्ति को भी होगी, इसलिए धरती के आखिरी पापी तक की पेशी वहां होगी.
मान लो अगर कोई राजा अथवा न्यायपालिका यह कहे कि जब तक "सौ कैदी" इकट्ठे नहीं हो जाएँगे तब तक वह न्याय नहीं करेगा, तो यह बड़ा ही अन्याय होगा| क्यूंकि एक व्यक्ति के गुनाहों का दुसरे व्यक्ति के गुनाहों से कोई लेना देना नहीं है| इसलिए उनका इकट्ठे न्याय करना सही नहीं| ठीक इसी तरह क्या क़यामत के दिन तक सब को इकट्ठे न्याय के लिए रोक के रखना गलत नहीं है?
उत्तर: एक व्यक्ति का दुसरे व्यक्ति के गुनाहों से बिलकुल लेना-देना है, उदहारण स्वरुप अगर किसी व्यक्ति ने दुसरे व्यक्ति की हत्या के इरादे से किसी सड़क पर गड्ढा खोदा और उसमें कई और व्यक्ति गिर कर मर गए तो उसके इस पाप के लिए जितने व्यक्तियों की मृत्यु होगी उन सभी का पाप गड्ढा खोदने वाले व्यक्ति पर होगा. ऐसे ही अगर किसी ने कोई बुरा रास्ता किसी दुसरे व्यक्ति को दिखाया तो जब तक उस रास्ते पर चला जायेगा, अर्थात दूसरा व्यक्ति तीसरे को, फिर दूसरा और तीसरा क्रमशः चोथे एवं पांचवे को तथा दूसरा, तीसरा, चोथा एवं पांचवा व्यक्ति मिलकर आगे जितने भी व्यक्तियों को पाप का रास्ता दिखेंगे उसका पाप पहले व्यक्ति को भी मिलेगा, पहला व्यक्ति सभी के चलने का जिम्मेदार होगा. क्योंकि उसी ने वह रास्ता दिखाया है. और इस ज़ंजीर में से जो भी व्यक्ति जानबूझ कर और लोगो को पाप के रास्ते पर डालेगा वह भी उससे आगे के सभी व्यक्तियों के पापो का पूरा पूरा भागीदार होगा.
इसमें अन्याय कैसे है? वह अगर बुराई की कोई राह दुसरे को दिखता ही नहीं तो दूसरा व्यक्ति तीसरे और चोथे व्यक्तियों तक वह बुराई पहुंचाता ही नहीं. इसलिए उनका इकट्ठे न्याय करना सही है.
ठीक यही क्रम अच्छाई की राह दिखने वाले व्यक्ति के लिए है. उसको भी उसी क्रम में पुन्य प्राप्त होता रहेगा. क्या तुम यह कहना चाहते हो की अगर किसी व्यक्ति ने पूजा करने के लिए मंदिर का निर्माण किया तो उसके मरने के बाद उसका पुन्य समाप्त हो जायेगा? जब तक उस मंदिर के द्वारा पुन्य के काम होते रहेंगे, मंदिर का निर्माण करवाने वाले को पुन्य मिलता रहेगा.
नोट: उपरोक्त प्रश्न एवं उत्तर कुछ ग़ैर-मुस्लिम भाइयों से मेरी वार्तालाप में से लिए गए हैं.
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