अल्लामा इक़बाल ने कहा थाः
नवीन संसकृति के इन गंदे अण्डों पर गर्व करने और पश्चिम की बिना सोचे समझे नक्क़ाली की जिज्ञासा ने हमारे समाज में विभिन्न बुराईयों को जन्म दिया है जिनकी एक समय पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उन्हीं सामाजिक बुराइयों में से एक अप्रैल फूल भी है। अप्रैल की प्रथम तिथि को एलेक्ट्रानिक और प्रिंट मेडिया हम से झूठ बोलवाती है। मनोरंजन के लिए....मज़ाक़ करने के लिए....दूसरों को मुर्ख सिद्ध के लिए...दूसरों को परेशान करने के लिए... दूसरों को आश्चर्यचकित करने के लिए।
इस झूठ ने न जाने कितने लोगों को आर्थिक हानि पहुंचाया है। कितने लोगों की जानें चली गई हैं। किसी को उसके घर में आग लगने की सूचना दी गई अचानक वह होश व हवास खो बैठा। किसी को उसकी पत्नी के दूसरों के साथ शारीरिक सम्बन्ध की ख़बर दी गई यहाँ तक कि दोनों में मतभेद शुरू हो गया। किसी को उसकी माता, उसके पिता, उसके बेटी, उसकी पत्नी के मृत्यु की अचानक सूचना दी गई जिसे सुनने की ताब न ला सके और जीवन से हाथ धो बैठे।
यह प्रथा जिसका आधार झूठ, फ्राड और मुर्ख बनाने पर है, जो मानव आचरण के माथे पर कलंक का टीका तो है ही इसका ऐतिहासिक पहलू भी अति निन्दनीय है। हम अभी इस विषय में नहीं जाना चाहते हम तो मात्र यह बताना चाहते हैं कि इस्लाम में झूठ प्रत्येक बुराईयों की जड़ है, विनाश का स्तम्भ है और तबाही का द्वार है। इस्लाम में झूठ हर समय निषेध है। वर्ष के किसी भी महीने में झूठ की अनुमति नहीं, इस्लाम की दृष्टि में झूठ बोलना नेफाक़ की पहचान बताई गई है।
कुछ लोग समझते हैं कि मनोरंजन के लिए झूठ बोलना वैध है हालाँकि झूठ हर स्थिति में झूठ है मनोरंजन में भी इसका पाप इतना ही है जितना सचमुच झूठ बोलने का है। मुहम्मद सल्ल0 ने फरमायाः "बर्बादी है उसके लिए जो लोगों से बात करता है और उन्हें हंसाने के लिए झूठ बोलता है, बर्बादी है उसके लिए, बर्बादी है उसके लिए"। (अबूदाऊद, तिर्मिज़ी, नसाई)
यहाँ तक कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने मनोरंजन हेतु डराने से भी मना फरमायाः "किसी व्यक्ति के लिए वैध नहीं है कि किसी दूसरे व्यक्ति को डराए"। बल्कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने इस बात को बहुत बड़ा विश्वासघात बताया है कि आप किसी व्यक्ति से झूठ बोलें और वह आपको सच समझ रहा हो, हदीस हैः "यह बहुत बड़ा विश्वासघात है कि तुम अपने भाई से कोई बात कहो वह तुम्हें सच्चा समझ रहा हो और तुम उस से झूट बोल रहे हो।" (मुस्नद अहमद, तबरानी)।
तात्पर्य यह कि झूठ का व्यक्तिगत तथा समाजिक जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, झूठ से सामाजिक जीवन प्रभावित होता है। कारोबार से बरकत उठ जाती है। मनोवैज्ञानिकों तथा चिकित्सकों ने भी शारीरिक जीवन पर झूठ की विभिन्न हानियाँ बताईं हैं। इस धरती पर पाए जाने वाले प्रत्येक धर्मों ने भी झूठ से रोका और उस पर प्रंतिबंध लगाया है। कोई ऐसा धर्म नहीं है जिसमें झूठ की अनुमति दी गई हो। मुहम्मद सल्ल0 ने फरमायाः " तुम हमेशा सच बोला करो, क्योंकि सच नेकी की ओर अग्रसर करता है। और नेकी जन्नत (स्वर्ग) का रास्ता देखाती है। एक व्यक्ति हमेशा सच बोलता और सच की तलाश में रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह तआला के हाँ लिख दिया जाता है कि "यह अति सच्चा व्यक्ति है"। और तुम झूठ से बचते रहो, क्योंकि झूठ पाप की ओर ले जाता है, और पाप नरक तक पहुंचा देता है, और एक व्यक्ति सदैव झूठ बोलता और झूठ की खोज में लगा रहता है यहाँ तक कि अल्लाह के हाँ लिख दिया जाता है "यह बहुत झूठ बोलने वाला है"।( मुस्लिम)
उठा कर फेंक दो बाहर गली में
नई तहज़ीब के अण्डे हैं गंदे
नवीन संसकृति के इन गंदे अण्डों पर गर्व करने और पश्चिम की बिना सोचे समझे नक्क़ाली की जिज्ञासा ने हमारे समाज में विभिन्न बुराईयों को जन्म दिया है जिनकी एक समय पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। उन्हीं सामाजिक बुराइयों में से एक अप्रैल फूल भी है। अप्रैल की प्रथम तिथि को एलेक्ट्रानिक और प्रिंट मेडिया हम से झूठ बोलवाती है। मनोरंजन के लिए....मज़ाक़ करने के लिए....दूसरों को मुर्ख सिद्ध के लिए...दूसरों को परेशान करने के लिए... दूसरों को आश्चर्यचकित करने के लिए।
इस झूठ ने न जाने कितने लोगों को आर्थिक हानि पहुंचाया है। कितने लोगों की जानें चली गई हैं। किसी को उसके घर में आग लगने की सूचना दी गई अचानक वह होश व हवास खो बैठा। किसी को उसकी पत्नी के दूसरों के साथ शारीरिक सम्बन्ध की ख़बर दी गई यहाँ तक कि दोनों में मतभेद शुरू हो गया। किसी को उसकी माता, उसके पिता, उसके बेटी, उसकी पत्नी के मृत्यु की अचानक सूचना दी गई जिसे सुनने की ताब न ला सके और जीवन से हाथ धो बैठे।
यह प्रथा जिसका आधार झूठ, फ्राड और मुर्ख बनाने पर है, जो मानव आचरण के माथे पर कलंक का टीका तो है ही इसका ऐतिहासिक पहलू भी अति निन्दनीय है। हम अभी इस विषय में नहीं जाना चाहते हम तो मात्र यह बताना चाहते हैं कि इस्लाम में झूठ प्रत्येक बुराईयों की जड़ है, विनाश का स्तम्भ है और तबाही का द्वार है। इस्लाम में झूठ हर समय निषेध है। वर्ष के किसी भी महीने में झूठ की अनुमति नहीं, इस्लाम की दृष्टि में झूठ बोलना नेफाक़ की पहचान बताई गई है।
कुछ लोग समझते हैं कि मनोरंजन के लिए झूठ बोलना वैध है हालाँकि झूठ हर स्थिति में झूठ है मनोरंजन में भी इसका पाप इतना ही है जितना सचमुच झूठ बोलने का है। मुहम्मद सल्ल0 ने फरमायाः "बर्बादी है उसके लिए जो लोगों से बात करता है और उन्हें हंसाने के लिए झूठ बोलता है, बर्बादी है उसके लिए, बर्बादी है उसके लिए"। (अबूदाऊद, तिर्मिज़ी, नसाई)
यहाँ तक कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने मनोरंजन हेतु डराने से भी मना फरमायाः "किसी व्यक्ति के लिए वैध नहीं है कि किसी दूसरे व्यक्ति को डराए"। बल्कि अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने इस बात को बहुत बड़ा विश्वासघात बताया है कि आप किसी व्यक्ति से झूठ बोलें और वह आपको सच समझ रहा हो, हदीस हैः "यह बहुत बड़ा विश्वासघात है कि तुम अपने भाई से कोई बात कहो वह तुम्हें सच्चा समझ रहा हो और तुम उस से झूट बोल रहे हो।" (मुस्नद अहमद, तबरानी)।
तात्पर्य यह कि झूठ का व्यक्तिगत तथा समाजिक जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है, झूठ से सामाजिक जीवन प्रभावित होता है। कारोबार से बरकत उठ जाती है। मनोवैज्ञानिकों तथा चिकित्सकों ने भी शारीरिक जीवन पर झूठ की विभिन्न हानियाँ बताईं हैं। इस धरती पर पाए जाने वाले प्रत्येक धर्मों ने भी झूठ से रोका और उस पर प्रंतिबंध लगाया है। कोई ऐसा धर्म नहीं है जिसमें झूठ की अनुमति दी गई हो। मुहम्मद सल्ल0 ने फरमायाः " तुम हमेशा सच बोला करो, क्योंकि सच नेकी की ओर अग्रसर करता है। और नेकी जन्नत (स्वर्ग) का रास्ता देखाती है। एक व्यक्ति हमेशा सच बोलता और सच की तलाश में रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह तआला के हाँ लिख दिया जाता है कि "यह अति सच्चा व्यक्ति है"। और तुम झूठ से बचते रहो, क्योंकि झूठ पाप की ओर ले जाता है, और पाप नरक तक पहुंचा देता है, और एक व्यक्ति सदैव झूठ बोलता और झूठ की खोज में लगा रहता है यहाँ तक कि अल्लाह के हाँ लिख दिया जाता है "यह बहुत झूठ बोलने वाला है"।( मुस्लिम)
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