इस्लामी समाज में औरतों का क्या मुक़ाम है, उन्हें क्या अधिकार प्राप्त हैं, उनकी ज़िम्मेदारियाँ क्या हैं? उनके प्रति उनके बाप, भाई और पति के लिए क्या दिशा-निर्देश हैं? इन सारे सवालों का जवाब हमें पवित्र क़ुरआन में मिलता है और अल्लाह के रसूल (सल्ल॰) की हदीस से बात और भी स्पष्ट हो जाती है। इस वस्तुस्थिति का यथार्थ ज्ञान न होने और स्वयं मुस्लिम समाज के आदर्शपूर्ण न होने के कारण, देशबन्धुओं में कुछ भ्रम अवश्य पाए जाते हैं। यहाँ इसके निवारण का कुछ प्रयास किया जा रहा हैः सर्वप्रथम हम ‘परदा’ को लेते हैं। इस्लाम ने जहाँ एक ओर औरतों को रेशमी वस्त्र, सोने-चाँदी के ज़ेवरात पहनने और श्रृंगार करने की छूट दी है, वहीं उन्हें यह कहकर नियंत्रित भी किया है कि-
‘‘हे नबी! ईमानवाली स्त्रियों से कहो कि वे अपनी निगाहें नीची रखें, और अपनी शर्मगाहों (यौनांगों) कि रक्षा करें और अपना श्रंृगार सिवाय अपने पति, अपने पुत्रों, भाई के बेटों व अपनी बहनों के बेटों से, जिनपर उन्हें स्वामित्व का अधिकार प्राप्त हो, उन अधीन पुरूषों (नौकर-चाकर) जो ग़लत प्रयोजन न रखते हों, किसी पर ज़ाहिर न करें। वे अपने पाँव ज़मीन पर इस तरह मारती हुई न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा है, लोगों पर प्रकट हो जाए। कहा गया कि हे ईमानवालों! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, कदाचित तुम्हें सफलता मिले।’’ (क़ुरआन, 24 : 31)
एक अन्य जगह पर कहा गया है-
एक अन्य जगह पर कहा गया है-
‘‘हे नबी! ईमानवालों से कहो, वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करें। यह उनके लिए अधिक शुद्धता की बात है। निःसंदेह अल्लाह उसकी ख़बर रखता है, जो कुछ वे करते हैं।’’ (क़ुरआन, 24 : 30)
परिधान के विषय में इस्लाम इस बात की इजाज़त नहीं देता कि फ़ैशन-परस्ती के नाम पर मर्द औरतों जैसे कपड़े पहनें और औरतें मर्दों के कपड़े (जींस, टी-शर्ट) पहनें, मर्दों की तरह छोटे ब्वाय-कट बाल रखें जैसा कि आजकल हो रहा है। पश्चिमी संस्कृति की अंधी नक़ल में मर्द औरतों जैसी शक्ल अख्ितयार कर रहे हैं और औरतें अश्लील व उत्तेजक वस्त्र धारण करके समाज को बुराई की तरफ़ ढकेल रही हैं। आज फ्री-सेक्स के नाम पर यौन-दुराचार व बलात्कार में वृद्धि हो रही है। समाज में बेहयाई और अश्लीलता फैल रही है। शराब पीना, औरतों से नाजायज़ ताल्लुक़ात रखना ही माडर्न सोसायटी की पहचान बन गई है। छोटी उम्र की कमसिन लड़कियाँ भी ग़लत लड़कों के चक्कर फँसकर ‘कुँआरी माँ’ बन रही हैं। दिल्ली, बुम्बई, बैंलगोर, चेन्नई जैसे महानगरों में कुँआरी माँओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इसमें ज़्यादातर लड़कियाँ पश्चिमी माहौल वाले अंग्रेज़ी माध्यमों के स्कूलों व विश्वविद्यालयों की छात्राएँ है। ये ज़्यादातर उच्च वर्गीय धनाढ्य परिवारों से संबंध रखती हैं। अतः इस्लाम ने ऐसी व्यवस्था दी है कि नैतिकता बरक़रार रहे और समाज में गड़बड़ी व यौन-अराजकता न फैले साथ ही स्त्रियाँ अपने दायरे में रहते हुए कामकाज कर सकें, शिक्षा ग्रहण कर सकें, और ज़रूरी होने पर नैतिकता व शील की उचित सीमा में रहकर जीवन-यापन और व्यापार आदि कर सके।
Writer : अज़हर शमीम