अभी मैंने हाल ही में बिग बैंग पर एक पोस्ट लिखी, तो एक भाई ने पूछा क्या कुरआन में ब्लैक होल का भी जिक्र है? जवाब इसका सकारात्मक है। बस जरूरत है चीजों को पहचानने की।
सबसे पहले जानते हैं कि ब्लैक होल (Black Hole) क्या है। ब्लैक होल यूनिवर्स का एक ऐसा हिस्सा होता है जहाँ का द्रव्यमान (Mass) और गुरुत्वाकर्षण (Gravitation ) बहुत ज्यादा होता है। आम जबान में कहें तो पूरी धरती का वज़न सुई के साइज़ में समाया रहता है। अपने महा गुरुत्वाकर्षण की वजह से ब्लैक होल अपने पास से गुजरने वाली हर चीज़ को अपने अन्दर खींच लेता है। यहाँ तक कि रौशनी की किरण अगर उसके पास से गुजरती है तो वह भी ब्लैक होल के अन्दर खिंच जाती है। किसी भी तरह की रौशनी इससे बाहर नहीं निकलती, इसीलिये ब्लैक होल ब्रह्माण्ड में अदृश्य होता है। और इसीलिये इसका नाम ब्लैक होल पड़ा है।
सवाल उठता है क्या ब्लैक होल जैसी किसी चीज का जिक्र कुरआन में या इस्लाम में मिलता है? इसके लिये गौर करते हैं कुरआन की इस आयत पर
101(4-11) जिस दिन लोग टिड्डियों की तरह फैले होंगे और पहाड़ धुनी हुई रुई जैसे हो जायेंगे-----और जिनके आमाल हल्के होंगे तो उनका ठिकाना हाविया (होल) होगा। और तुमको क्या मालूम हाविया क्या है? वह दहकती हुई आग है। इस आयत में बात हो रही है जहन्नुम के बारे में। और इसे हाविया यानि होल या गड्ढा कहा जा रहा है। तो क्या जहन्नुम ही ब्लैक होल है?
कुरआन में जन्नत और जहन्नुम का जिक्र बार बार आया है। अच्छे लोगों के लिये जन्नत है जबकि बुरे लोगों का ठिकाना जहन्नुम है। अगर किताबों में आये जहन्नुम के गुणों के बारे में गौर करें तो बहुत कुछ यह ब्लैक होल से मिलता जुलता दिखाई देता है।
सबसे पहले बात करते हैं दोनों की पैदाइश के बारे में। साइंस बताती है कि हमारा सूर्य व दूसरे तारे नाभिकीय संलयन की प्रोसेस द्वारा हाईड्रोजन से हीलियम में बदलते रहते हैं। और इस दौरान वे अत्यधिक गर्मी व ऊर्जा पैदा करते रहते हैं। फिर एक वक्त ऐसा आता है जब तारे में मौजूद हाईड्रोजन पूरी की पूरी खत्म हो जाती है। इस बीच तारे का टेम्प्रेचर व द्रव्यमान बढ़ता रहता है और साथ में उसकी ग्रेविटी भी। इस लिये हाईड्रोजन खत्म होने के बाद भी तारे में नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया रुकती नहीं। बल्कि अब इस प्रोसेस के जरिये हीलियम नाभिक आपस में जुड़कर ऑक्सीजन, फिर ऑक्सीजन नाभिक जुड़कर सिलिकान और सिलिकान नाभिक आयरन में बदलने लगते हैं। ये भारी तत्व अपनी ग्रेविटी की वजह से तारे के सेन्टर की तरफ बढ़ते जाते हैं और तारा सिकुड़ता जाता है। यानि उसका घनत्व बढ़ता जाता है। यह प्रक्रिया तब तक होती रहती है जब तक पूरे का पूरा मैटीरियल आयरन में नहीं बदल जाता। अगर इस तारे का द्रव्यमान एक खास संख्या (चंद्रशेखर लिमिट) से ज्यादा होता है तो उस वक्त तारे में एक महाधामाका होता है जिसे नाम दिया गया है सुपरनोवा। सुपरनोवा के बाद तारा बदल जाता है ब्लैक होल में। जिसका घनत्व व गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि वह पास से गुजरने वाली रौशनी को भी अपने अन्दर खींच लेता है। उसके भीतर से किसी चीज के बाहर निकलने का सवाल ही नहीं पैदा होता।
अब किताबों में जहन्नुम की पैदाइश का जो जिक्र मिलता है उसके मुताबिक कयामत के रोज सूरज अपनी जिंदगी पूरी कर चुका होगा। और सवा नैज़े पर होगा। जिसका मतलब यह हुआ कि उस वक्त सूरज में इतनी तपिश होगी जैसे कि वह ठीक इंसान के सर के ऊपर हो। इतनी तपिश का मतलब हुआ कि सूरज सुपरनोवा बनने की कंडीशन में होगा। इसके बाद सूरज खत्म हो जायेगा और जहन्नुम सबको अपने घेरे में ले लेगा। इस जहन्नुम की आग में कोई रौशनी नहीं होगी। चारों तरफ घना अँधेरा छाया होगा इस अँधेरे में हर शख्स जहन्नुम की तरफ खिंचा चला जायेगा, सिर्फ उन लोगों को छोड़कर जिनके पास ईमान की रौशनी होगी और अच्छे काम किये होंगे। इस तरह हम देखते हैं कि जहन्नुम की पैदाइश और ब्लैक होल की पैदाइश एक ही जैसी है।
ब्लैक होल वर्तमान में कई जगह मौजूद हैं। इसी तरह इस्लामी किताबों के मुताबिक जहन्नुम की खिलक़त हो चुकी है।
ब्लैक होल की ग्रैविटी इतनी ज्यादा होती है कि उसमें जाने वाली कोई भी चीज़ यहाँ तक कि रौशनी भी बाहर नहीं निकल सकती। इसी तरह जहन्नुम में जाने वाला उससे बाहर नहीं निकल सकता। जैसा कि कुरआन की ये आयतें जहन्नुम के बारे में कहती हैं।
90 (19-20), और जिन लोगों ने हमारी आयतों से इंकार किया है यही लोग बदबख्त हैं, कि उनको आग में डालकर हर तरफ से बन्द कर दिया जायेगा।
89 (25-26) उस दिन अल्लाह ऐसा अजाब करेगा कि किसी ने वैसा अजाब न किया होगा। और न कोई उसको जकड़ने की तरह जकड़ेगा
ब्लैक होल के पास पहुंचते ही उसकी ग्रैविटी फौरन किसी चीज को अपनी तरफ खींच लेती है। इसी तरह जहन्नुम के बारे में है कि बुरे लोग उसके पास पहुचंते ही फरिश्तों के जरिये मुंह के बल उसमें धकेल दिये जायेंगे। फ़रिश्ते दिखाई देने वाली मखलूक़ नहीं हैं। यानि जाहिरी तौर पर जहन्नुम की निहायत ताकतवर ग्रैविटी लोगों को अपनी तरफ खींच लेगी। कुरआन कहता है :
39(71 ) और जो लोग काफिर थे उनके गोल के गोल जहन्नुम की तरफ हंकाये जायेंगे और यहाँ तक कि जब जहन्नुम के पास पहुंचेंगे तो उसके दरवाजे खोल दिये जायेंगे।
ब्लैक होल की तपिश के बारे में साइंसदानों में मतभेद है। कुछ इसे ठंडा बताते हैं तो कुछ निहायत गर्म। लेकिन जो इसे ठंडा बताते हैं उनके मुताबिक ‘हालांकि इसका वास्तविक टेम्प्रेचर बर्फ जमने के टेम्प्रेचर से भी कम होता है। लेकिन इसमें बाहरी चीजें शामिल होकर इसे तारों और सूरज से भी ज्यादा गर्म कर देती हैं।’ इसका मतलब ब्लैक होल का ईंधन बाहरी मैटर होता है। अब जहन्नुम के बारे में कुरआन में कहा जा रहा है।
2 (24 )---अगर तुम ये नहीं कर सकते और हरगिज नहीं कर सकोगे तो उस आग से डरो जिसका ईंधन आदमी और पत्थर होंगे-----। यानि जहन्नुम का ईंधन आग और पत्थर होंगे जो इसमें जलते हुए इसकी तपिश को बढ़ाते रहेंगे।
ब्लैक होल में चीजों के समाने की कोई लिमिट नहीं होती। इसी तरह जहन्नुम के भी भरने की कोई हद नहीं।
50(30) उस दिन हम दोज़ख से पूछेंगे क्या तू भर चुकी वह कहेगी क्या और भी हैं?
जहन्नुम के बारे में जिक्र है उसकी खिलकत में पहले उसका रंग लाल था, फिर सफेद हुआ और आखिर में काला हो गया। यानि जहन्नुम की आग काले रंग की है। यहाँ कोई रौशनी नहीं है और पूरी तरह अँधेरा है, ठीक ब्लैक होल की तरह।
ब्लैक होल गामा रेडियेशन का उत्सर्जन करते हैं जो जिस्म के लिये घातक होती हैं। इस बात की संभावना है कि यहाँ अल्फा और बीटा का भी उत्सर्जन हो रहा हो। जो जिस्म पर फफोले डाल देते हैं। इसी तरह जहन्नुम की आग व पानी ऐसे होंगे जो पीने वालों के जिस्म को गला देंगे। उनके जिस्म पर जख्म होंगे और उन जख्मों से फूटता हुआ मवाद ही नर्कवासियों का भोजन होगा।
हदीसों में आया है कि जहन्नुम में वक्त के गुजरने की रफ्तार जमीन से कम होगी।
आइंस्टीन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी के अनुसार जिन जगहों पर गुरुत्वाकर्षण बल ज्यादा होता है वहाँ वक्त के गुजरने की रफ्तार कम होती है। इसलिये ब्लैक होल में वक्त के गुजरने की रफ्तार निहायत कम होगी क्योंकि वहाँ गुरूत्वाकर्षण बल बहुत ज्यादा है।
जो लोग जहन्नुम के वजूद से इंकार करते हैं, उन्हें ब्लैक होल के वजूद से भी इंकार करना चाहिए। लेकिन साइंस ब्लैक होल का अस्तित्व पूरी तरह स्वीकार करती है।
Allah Knows Better!