ऐ ईमान वालो! परमेश्वर का डर (तक़वा) इख्तियार करो और हर आदमी को देखना चाहिये कि उसने आने वाले कल के लिए आगे क्या भेजा है ? और डरो परमेश्वर से निस्संदेह परमेश्वर को उन तमाम कामों की ख़बर है जो तुम करते हो । पवित्र कुरआन, 59, 18
आदमी का स्वभाव है कि वह काम का अंजाम चाहता है। परमेश्वर ने उसे उसके स्वभाव के अनुसार ही शिक्षा दी है कि हरेक आदमी को चाहिए कि वह पहले फल की चिन्ता करे ताकि उसका काम फलप्रद हो। जो भी उपदेशक आदमी को फल से बेफ़िक्र करता है दरअस्ल वह उसका दिल काम से ही उचाट कर देता है।
आज दुनिया में जितने भी प्रोजेक्ट चल रहे हैं उनमें काम करने वाले उनको फलित होते देखकर और भी ज़्यादा मेहनत से उसे पूरा करने के लिए जुट जाते हैं। आदमी पेड़ लगाता है फल के लिए , लेकिन अगर उसे फल की चिन्ता से ही मुक्त कर दिया जाए तो फिर वह पेड़ ही क्यों लगाएगा ?
आदमी पेड़ लगाते समय उसकी नस्ल भी देखता है कि कौन सी नस्ल का पेड़ अच्छा और ज़्यादा फल देगा ?
सारी कृषि की उन्नति का आधार ही फल की चिन्ता पर टिका है।
आदमी अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में प्रवेश दिलाता है और फिर साल गुज़रने पर वह देखता है कि उसके बच्चे ने जो मेहनत की उसका फल उसे क्या मिला ?
बेहतर फल के लिए ही आदमी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाता है। इनसान नेकी का भी फल चाहता है। लेकिन कभी तो यह फल उसके जीते जी उसे मिल जाता है लेकिन कभी उसे इस जीवन में उसकी नेकी का फल नहीं मिल पाता।बुरा इनसान अपने बुरे कामों का फल नहीं भोगना चाहता, लेकिन फिर भी उसके बुरे कामों का बुरा नतीजा उसे इसी जीवन में भोगना पड़ता है लेकिन कभी वह बिना उसे भोगे ही मर जाता है।फल मिलना स्वाभाविक है। फल देने वाला ईश्वर है। आपके ‘फल की चिन्ता‘ से मुक्त होने की वजह से न तो वह अपनी कायनात का उसूल बदलेगा और न ही इनसानी समाज आज तक कभी फल की चिन्ता से मुक्त हुआ है और न ही कभी हो सकता है।
इसलाम कहता है कि जो भी करो उसे करने से पहले उसके ‘फल की चिन्ता‘ ज़रूर करो।
आप क्या कहते हैं ?
आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन