सबसे पहले, हमें 'जीवन' और आत्मा (रूह) का भेद पता करना पड़ेगा। जीवन एक शक्ति है जो प्राणी को रहने के विभिन्न भागों में कार्य करने के योग्य बनाता है। जब तक शरीर में ''जीवन" (अर्थात ऊर्जा है), विभिन्न भाग काम कर सकते हैं। जब शरीर, ऊर्जा (अर्थात जीवन) को खो देता है (एक बैटरी की शक्ति की तरह), उसके सभी भाग कार्य करना बंद कर देते हैं, तब उसका शरीर मृत हो जाता है। मृत्यु का होना ऊर्जा का अभाव है, जिसके बिना शरीर कार्य नहीं कर सकता हैं। सभी प्राणियों (पशुओं और पौधों) को 'जीवन' या ऊर्जा प्राप्त है, जब तक कि उन में जीवन, ऊर्जा की अभिव्यक्ति के रूप में है। कुरआन की आयत (श्लोक) 15:29, 32:9 और 38:72 में निर्दिष्ट है कि रूह जीवन से अलग है।
[15:29] तो तब मैं उसे पूरा बना चुकुं और उसमें अपनी रूह (आत्मा) फुक दूँ तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना!"
[32:9] फिर उसे ठीक-ठाक कर दिया और उसमें अपनी रूह (आत्मा) फूंकी. और तुम्हे कान और आँखे और दिल दिए. तुम आभारी थोड़े ही होते हो।
[38:72] तो जब मैं उसको ठीक-ठाक कर दूँ और उसमें अपनी रूह (आत्मा) फूँक दूँ, तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना।"
आत्मा की विशेषता की वजह से फरिश्तो को हुक्म हुआ था कि वह आदम को सजदा करें। आदम के अलावा फ़रिश्ते सिर्फ अल्लाह को सजदा करते हैं - [16:49] और आकाशों और धरती में जितने भी जीवधारी हैं वे सब अल्लाह ही को सजदा करते हैं और फ़रिश्ते भी और वे घमंड बिलकुल नहीं करते। इससे पता चलता है कि आत्मा, ईश्वर के एक गुण का सार है, जब मनुष्य में साँस आई तो उसे फरिश्तो की श्रद्धा के योग्य बना दिया।
इसको ऐसे भी समझ सकते हैं, कि 'रूह' एक 'सॉफ्टवेयर' की तरह है, हम इसके प्रदर्शन को देख तो कर सकते हैं या अनुभव तो कर सकते हैं लेकिन शरीर (अर्थात हार्डवेयर) की तरह छू नहीं सकते।
- शाहनवाज़ सिद्दीकी