सत्रहवीं शताब्दी में एक महान गणितज्ञ, फिलास्फर और धार्मिक चिंतक गुजरा है जिसका नाम ब्लेज़ पास्कल था। फ्रांस के इस वैज्ञानिक ने साइंस और गणित की तरक्की में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उसका एक मशहूर पास्कल का नियम हाईड्रोलिक ब्रेक व क्रेन बनाने में इस्तेमाल होता है।
वैज्ञानिक विधि पर उसने एक प्रसिद्ध नियम दिया, ‘किसी वैज्ञानिक परिकल्पना को सत्यापित करने के लिये यह पर्याप्त नहीं है कि सभी घटनाओं की उसके द्वारा व्याख्या हो रही हो। किन्तु यदि एक भी घटना उस परिकल्पना के विरुद्ध जा रही है तो वह परिकल्पना निश्चित रूप से गलत है।’
पास्कल ने ही पहले बार कैलकुलेटर बनाया था जो घिरनियों और चक्कों से चलने वाला एक मैकेनिकल यन्त्र था।
पास्कल ईश्वर में अटूट विश्वास रखता था। उसकी नास्तिकों के साथ बहस भी अक्सर चला करती थी। जिसमें ज्यादातर वही हावी रहता था। लेकिन कभी कभी कुछ ऐसे कठहुज्जती उसके सामने आ जाते थे जो किसी भी तौर पर उसकी दलीलों को मानने के लिये तैयार नहीं होते थे। ऐसे में वह अपने इस कथन के साथ बात को खत्म कर देता था कि ‘अगर ईश्वर का अस्तित्व वास्तव में है तो मुझे मरने के बाद बहुत अच्छे फल प्राप्त होंगे जबकि तुम घाटे में रहोगे। और अगर ईश्वर का अस्तित्व नहीं है तो मेरा और तुम्हारा अंजाम एक ही जैसा होगा। मरने के बाद हम दोनों ही मिट्टी में मिल जायेंगे। इसलिये ईश्वर के अस्तित्व को मानना ही अधिक फायदेमन्द है।’
पास्कल के इस कथन का सामने वाले के पास कोई जवाब नहीं होता था। यह कथन काफी मशहूर हुआ, दुनिया इसे ‘पास्कल वेगर’ के नाम से जानती है। पास्कल वेगर का इस्तेमाल मैनेजमेन्ट और साइंस की ऐसी शाखाओं में बहुत ज्यादा होता है जहाँ रिस्क को कवर करना होता है। मिसाल के तौर पर अगर किसी शख्स को मैनेजमेन्ट में किसी ऐसे निर्णय को लेना है जिसमें दो रास्ते हैं और दोनों रास्ते रिस्की हैं तो वह पास्कल वेगर का इस्तेमाल करते हुए ऐसे रास्ते को चुनता है जिसमें असफल होने पर नुकसान कम हो।
लेकिन क्या वाकई में पास्कल वेगर की खोज पास्कल ने ही की थी? या उससे पहले कुछ और हस्तियां इस जुमले का इस्तेमाल कर चुकी थीं? और शायद उन्होंने ही इस जुमले की ईजाद की थी।
आईए इसके लिये हम सन्दर्भ लेते हैं शेख सुद्दूक (र.) की किताब ‘अय्यून अखबारुलरज़ा’ का। इससे पहले के लेखों में हम बता चुके हैं कि इस्लामी विद्वान शेख सुद्दूक (र.) आज से हजार साल पहले के दौर में हुए हैं। यानि पास्कल से सात सौ साल पहले।
शेख सुद्दूक (र.) की किताब ‘अय्यून अखबारुलरज़ा’ में इमाम अली रज़ा (अ.स.) के मुताल्लिक एक किस्सा इस तरह बयान किया गया है कि एक जिंदीक (नास्तिक) इमाम अली रज़ा (अ-स-) की खिदमत में आया तो आपने उससे गुफ्तगू की शुरुआत कुछ इस तरह से की,
‘ऐ शख्स, जो कुछ तुम लोग कहते हो अगर वही ठीक हुआ (यानि दुनिया को कोई पैदा करने वाला नहीं है) तो क्या हम दोनों (मैं और तुम) बराबर न रहेंगे?
और जो नमाज रोजे जकात और इकरारे तौहीद हम करते हैं उन से हमें नुकसान न पहुंचेगा। इस लिहाज से हम और तुम दोनों बराबर ही रहेंगे।
यह सुनकर वह जिंदीक चुप रहा।
फिर आपने फरमाया, ‘अगर वह हुआ जो हम लोग कहते हैं और वही ठीक भी है जो हम कहते हैं तो क्या तुम तबाह व बरबाद न हो जाओगे, और हम बच न जायेंगे?’
क्योंकि तुम ने तो उस के वजूद को माना ही न था। इसलिये तुम ने न तो उस का इकरार किया और न उस की इबादत की। और अब मालूम हुआ कि वह मौजूद है तो बताओ कि तुम्हारा क्या हश्र होगा। अब रहे हम, तो हमने तो उस की इबादत भी की थी, उस की तौहीद व कुदरत का इकरार भी करते थे। इस सूरत में हमारे साथ तो वह जरूर नेक बरताव करेगा। इसलिये तुम तबाह हो जाओगे और हम निजात पा जायेंगे।
इसके बाद उस जिंदीक ने पूछा, ‘आप मुझे ये बताईए कि वह (अल्लाह) कैसा है और कहाँ है?’’
जवाब में इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने फरमाया, ‘तूने गलत सवाल पूछा। उसी ने (अल्लाह ने) तो जगह और मकान (स्पेस और डाइमेंशन) बनाये हैं। वह तो उस वक्त भी मौजूद था जब कि कोई जगह मौजूद न थी। और उसी ने कैफियत को भी पैदा किया इसलिये उसके लिये ‘कैसा’ का भी सवाल नहीं उठता। वह उस वक्त भी मौजूद था जब कोई कैफियत मौजूद न थी।
इसके बाद उस जिंदीक की इमाम से लम्बी गुफ्तगू हुई जिसके बाद वह जिंदीक ईमान ले आया।
इस तरह हम देखते हैं कि पास्कल वेगर नाम से मशहूर जुमले का इस्तेमाल इमाम अली रज़ा (अ.स.) पास्कल से सैंकड़ों साल पहले कर रहे थे।