दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में गिने जाने वाले स्टीफन हाकिंग की ताज़ा किताब ‘द ग्रैंड डिज़ाइन’ के अनुसार इस दुनिया को बनाने वाला कोई खुदा नहीं है। यह दुनिया भौतिकी के नियमों के मुताबिक अस्तित्व में आयी। उनके मुताबिक बिग बैंग गुरुत्वाकर्षण के नियमों का ही नतीजा था। इसके आगे उन्होंने कहा है कि ब्रह्माण्ड का निर्माण शून्य से भी हो सकता है। देखते हैं कि हाकिंस की द ग्रैंड डिज़ाइन की खास बातें क्या क्या हैं और क्या ये बातें कोई पहले भी बता चुका है?
यूनिफाइड थ्योरी जिसपर आइंस्टीन एक लम्बे अर्से तक कार्य करने बाद भी सिद्ध करने में असफल रहे ‘द ग्रैंड डिजाइन’ के अनुसार गलत हो सकती है। हाकिंस के अनुसार यूनिवर्स का माडल लगातार बदल रहा है। इस समय हम ऐसे यूनिवर्स में हैं जो 10 अथवा 11 विमाओं पर आधारित है। इस समय हमारे पास बहुत सी थ्योरीज़ हैं जो एक दूसरे से ओवरलैप कर रही हैं। जिसका सीधा मतलब है मल्टीवर्स यानि ब्रह्माण्ड एक न होकर बहुत सारे हैं (शायद अनन्त) और हर यूनिवर्स के अपने भौतिक नियम हैं। वैज्ञानिकों ने कल्पना की है कि हब्बल वोल्यूम यानि हमारा यूनिवर्स एक अनन्त विस्तारित मल्टीवर्स (बहुब्रह्माण्ड) का बहुत छोटा सा हिस्सा है। मल्टीवर्स में हमारे यूनिवर्स जैसे अनेक यूनिवर्स हैं। अलग अलग ब्रह्माण्डों के भौतिक नियम कुछ हद तक एक दूसरे से मिलते जुलते भी हैं।
हाकिंस की ग्रैंड डिज़ाईन की कल्पनानुसार अनन्त ब्रह्माण्ड बिग बैंग विस्फोट द्वारा पैदा होते रहते हैं उनमें पहले विस्तार होता है और फिर सिकुड़ना शुरू हो जाते हैं और अन्त में समाप्त हो जाते हैं। इन ब्रह्माण्डों में भौतिकी के नियम समान रूप से भी लागू हो सकते हैं और अलग अलग तरीके से भी। साथ ही विमाओं की दृष्टि से भी एक ब्रह्माण्ड दूसरे से अलग हो सकता है। सबसे खास बात ये कि यदि एक ब्रह्माण्ड में रहने वाला कोई भी व्यक्ति प्रकाश के वेग से भी यात्रा करे तो भी दूसरे ब्रह्माण्ड तक नहीं पहुंच सकता। न ही उस के बारे में जानकारी हासिल कर सकता है. क्योंकि एक ब्रह्माण्ड के फैलने की रफ्तार प्रकाश के वेग से कहीं ज्यादा होगी। यानि दूसरे ब्रह्माण्ड की किसी घटना को देख पाना संभव नहीं। (फिलहाल! भविष्य के बारे में कौन जानता है।)
प्रत्येक ब्रह्माण्ड का अपना एक अलग गणितीय माडल होता है। उस ब्रह्माण्ड के सभी भौतिक नियम उस माडल के अनुसार होते हैं। दूसरे ब्रह्माण्ड का गणितीय माडल बदल जाता है नतीजे में वहां के नियम भी उसी प्रकार से बदल जाते हैं। अब चूंकि गणितीय माडल अनन्त तरंह के मुमकिन हैं इसलिए ब्रह्माण्ड के स्ट्रक्चर भी अनन्त तरंह के हुए, जिनका अध्ययन वही कर सकता है जिसके पास अनन्त बुद्धिमता हो।
हाकिंस की थ्योरी एम-थ्योरी पर भी आधारित है। भौतिक विज्ञानियों ने सन 1980 में कणों के लिये एक नया गणितीय माडल प्रस्तुत किया गया जिसका नाम था स्ट्रिंग थ्योरी यानि डोरियों का सिद्धान्त। इस सिद्धान्त के अनुसार ब्रह्माण्ड में हर तरह के कण एक विमीय ऊर्जा की डोरियों के गुच्छे होते हैं। इन डोरियों में केवल लम्बाई की एक विमा होती है। बाकी न तो इनमें गहराई होती है ओर न ही चौड़ाई। ये डोरियां लगातार अपनी विमा में कंपन करती रहती हैं। और अपने इन कंपनों द्वारा ये पदार्थ, प्रकाश या फिर गुरुत्वाकर्षण शक्ति का निर्माण करती हैं। इस तरह किसी भी प्रकार के मैटर या ऊर्जा का निर्माण इन डोरियों के कंपन द्वारा होता है।
स्ट्रिंग थ्योरी के अनुसार ब्रह्माण्ड का विस्तार 10 विमाओं में हुआ है। जिनमें से चार विमाओं यानि लम्बाई, चौड़ाई, गहराई और समय से हम भली भांति परिचित हैं। बाकी 6 को सीधे अनुभव नहीं किया जा सकता। बाद में इस सिद्धान्त में 11वीं नयी विमा सुपर ग्रेविटी के कारण जोड़ दी गयी। डोरी सिद्धान्त पर काम होते होते यह पाँच अलग अलग दिशाओं में बँट गया और इनमें से हर सिद्धान्त दूसरे की काट कर रहा था। कुछ में खुली डोरियों की कल्पना की गयी तो कुछ में बन्द डोरियों की। उनके कंपनों की विमाएं भी अलग अलग तरीके से परिभाषित की गयीं। यह वैज्ञानिकों के सामने एक बड़ी समस्या थी।
अन्त में 1990 में एडवर्ड विटेन नामक वैज्ञानिक ने इन सिद्धान्तों को जोड़ते हुए एक नयी थ्योरी प्रस्तुत कर दी। इस थ्योरी को नाम दिया गया है एम-थ्योरी। यहाँ एम(M) से तात्पर्य मेम्ब्रेन, मैट्रिक्स,मदर, मैजिक इत्यादि है इस बारे में स्वयं इस थ्योरी के प्रवर्तक कुछ कहने से इंकार करते हैं। एम-थ्योरी ब्रह्माण्ड के किसी भी प्रकार के पदार्थ, ऊर्जा या बलों की उत्पत्ति की व्याख्या करती है, अत: इसे थ्योरी ऑफ एवरीथिंग (हर चीज़ का सिद्धान्त) भी कहते हैं। और अत्यन्त पतली परतों (Membranes) के कंपन द्वारा पदार्थ व ऊर्जा का निर्माण बताया गया है।
हमारा ब्रह्माण्ड मल्टीवर्स (बहुब्रह्माण्ड में) एक तैरती हुई परत पर अपना वजूद रखता है और इस तरह के अनन्त समान्तर ब्रह्माण्ड अपनी अपनी परतों पर मौजूद हैं। इसमें ब्रह्माण्ड में गुरुत्वाकर्षण बल की उत्पत्ति को भी समझाने का प्रयास किया गया है। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे ब्रह्माण्ड में चार मूलभूत बल मौजूद हैं जिनमें गुरुत्वाकर्षण बल बाकियों के तुलना में अत्यन्त क्षीण है। इस तुलना पर इसकी कल्पना की गयी है कि गुरुत्वाकर्षण बल किसी और परत (Membrane) से हमारे ब्रह्माण्ड में लीक होकर आ रहा है।
एम-थ्योरी पर रिसर्च जारी है और नित नयी नयी बातें सामने आ रही हैं। किन्तु अभी भी यह भौतिक रूप में न होकर गणितीय रूप में ज्यादा पहचानी जाती है। क्योंकि फिलहाल वैज्ञानिकों के पास कोई ऐसा साधन नहीं है जिसके द्वारा इस सिद्धान्त की पुष्टि की जा सके। 11 से ज्यादा विमाओं की भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है क्योंकि गणित की दृष्टि से तो अनन्त विमाएं संभव हैं। स्टीफन हाकिंग ने एक समय माना था कि एम-थ्योरी भौतिक जगत का अंतिम सिद्धान्त हो सकता है जो ब्रह्माण्ड की सभी गुत्थियों को सुलझा सकता है। किन्तु बाद में उसने अपने इस विचार को कैंसिल करते हुए कहा कि गणित व भौतिक जगत की समझ कभी भी सम्पूर्ण नहीं हो सकती।
लेकिन हाकिंस की थ्योरी में खास बात ये है कि इसमें ईश्वर की आवश्यकता को नकारा गया है और कहा गया है कि मल्टीवर्स में ब्रह्माण्डों की पैदाइश में ईश्वर की ज़रूरत नहीं। और पृथ्वी जैसी अनुकूल परिस्थितियों में जीवन अन्य ग्रहों पर भी पनप सकता है. लेकिन हाकिंस के पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि मल्टीवर्स का अस्तित्व या एम-थ्योरी का सत्यापन या फिर अन्य ग्रहों पर जीवन के होने का सुबूत ईश्वर के न होने का सुबूत कैसे हो सकता है? अल्लाह अगर इस ज़मीन पर जीवन पैदा कर सकता है तो दूसरे ग्रहों पर क्यों नहीं? अल्लाह अगर एक ब्रह्माण्ड की रचना कर सकता है तो दूसरे ब्रह्माण्डों की क्यों नहीं? वैज्ञानिक यह तो कहता है कि सब कुछ कुदरत के नियमों से बना है लेकिन कुदरत के नियम कैसे बने इस बारे में साइंस खामोश रहती है।
लेकिन जब हम इस्लामी किताबों का अध्ययन करते हैं तो हमें उसमें मल्टीवर्स भी दिखाई देता है। दूसरी दुनियाओं का वजूद भी और ब्रह्माण्ड में वक्त के साथ बदलते कुदरत के नियमों का जिक्र भी मौजूद है। ‘द ग्रैण्ड डिजाईन’ और इस्लामी थ्योरीज़ में बस इतना फर्क है कि हाकिंस ने अल्लाह के वजूद से इंकार किया है जबकि इस्लामी थ्योरीज़ में ये सब कुछ करने वाली अल्लाह तआला की ज़ाते पाक है।
आईए देखते हैं कि किस तरह बारह-तेरह सौ साल पहले इस्लाम ने कायनात के बनने की डिजाईन पेश कर दी है और यह वही डिजाईन है जिसको आज हाकिंस ने थोड़े रद्दोबदल के साथ पेश किया है।
शुरुआत करते हैं कुरआन से
कुरआन हकीम की 21 वीं सूरे है, अंबिया। इस सूरे की 30 वीं आयत में इरशाद हुआ है, ‘‘क्या वह लोग जो मुनकिर हैं गौर नहीं करते कि ये सब आसमान व जमीन आपस में मिले हुए थे। फिर हम ने उन्हें जुदा किया और पानी के जरिये हर जिन्दा चीज़ पैदा की। क्या वह अब भी यकीन नहीं करते?’’
फिर इसी सूरे, सूरे अंबिया आयत 104 में है, ‘‘वह दिन जब कि आसमानों को हम यूं लपेट कर रख देंगे, जैसे तूर मार में अवराक़ लपेट दिये जाते हैं। जिस तरह हमने पहले तखलीक़ (creation) की शुरुआत की थी उसी तरह हम फिर से उस की शुरुआत करेंगे। ये एक वादा है हमारे जिम्मे और ये काम हमें बहरहाल करना है।
सूरे आराफ आयत 29, ‘‘----जिस तरह उसने तुम्हें पहले पैदा किया था उसी तरह फिर पैदा किये जाओगे।’’
सूरे रोम आयत 27, ‘‘---और वही है जो पहली बार पैदा करता है और फिर उसको दोहरायेगा। और यह आसान है उसपर।-----’’
इन आयतों में साफ साफ कहा जा रहा है कि खिलकत बार बार होती है और फिर उसका खात्मा हो जाता है। उसके बाद फिर एक नयी खिलकत की शुरुआत होती है। ठीक उसी तरह जैसे मल्टीवर्स में बिग बैंग के ज़रिये यूनिवर्स पैदा होते रहते हैं और फिर खत्म होते रहते हैं।
हो सकता है कुछ लोगों को यह लगे कि मैं जबरदस्ती कुरआन की आयतों को आधुनिक थ्योरी के साथ जोड़ रहा हूं। लेकिन अगर हम अपने इमामों के ख्यालात भी शामिल करें तो तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाती है।
मैं जिस किताब से सन्दर्भ ले रहा हूं वह स्ट्रेसबर्ग यूनिवर्सिटी के इस्लामिक रिसर्च सेंटर में 1940-50 के बीच हुई रिसर्च की थीसिस है। इस रिसर्च में 25 विद्वानों, साइंसदानों वगैरा ने हिस्सा लिया था। इस थीसिस का ईरान में ‘मग्ज़े मुत्फक्किरे जहाने शिया-जाफर अल सादिक़ (यानि इस्लाम के शिया फिरके का दिमाग - जाफर अल सादिक अलैहिस्सलाम) नाम से फारसी में तर्जुमा हुआ। अब इसका उर्दू और हिन्दी में तर्जुमा मौजूद है। इस किताब के चुनिन्दा अंश यहाँ प्रस्तुत हैं।
‘इमाम जाफर सादिक (अ.) ने दुनिया की तख्लीक़ के बारे में इस तरह इज़हार ख्याल फरमाया, ‘दुनिया एक छोटे से जर्रे (कण) से वजूद में आयी और वह भी दो मुतज़ाद क़ुत्बैन (विपरीत ध्रुवों) से मिलकर बना है और इस तरह माद्दा (मैटर) वजूद में आया। फिर माददे की मुख्तलिफ किस्में बन गयीं। ये किस्में माददे में ज़र्रात की कमी या ज्यादती का नतीजा हैं।’
इसका मतलब ये हुआ कि दुनिया में पहले एक एटम बना और फिर उससे बहुत सारे एटम बनते चले गये। ये थ्योरी आज की बिग बैंग थ्योरी और क्वांटम थ्योरी से मैच कर रही है जिसके ऊपर हाकिंस की ग्रैंड डिजाईन आधारित है।
इस किताब में दूसरी जगह पर है, ‘इमाम जाफर सादिक (अ.) से सवाल किया गया, ‘जहान (कायनात) कब वजूद में आया?’ आप ने जवाबन फरमाया, ‘जहान शुरू से मौजूद है। आपसे जहान की तारीखे पैदाइश के बारे में सवाल किया गया तो इमाम जाफर सादिक (अ.) ने जवाब दिया मैं जहान की तारीखे पैदाइश नहीं बता सकता। इमाम का फरमान है कि आज से लेकर मेरी जिंदगी के आखिरी मरहले तक मुझ से ये पूछा जाये कि जहान से पहले क्या चीज़ मौजूद थी तो मैं कहूंगा कि जहान मौजूद था।
इस टॉपिक से साफ होता है कि इमाम जाफर सादिक (अ.) जहान को अज़ली (हमेशा से है) मानते थे। 'इमाम जाफर सादिक (अ.) का जहानों के बारे में एक दिलचस्प नज़रिया जहानों की वुसाअत और सिकुड़ने के मुताल्लिक है। जिसमें आपने फरमाया है कि जो दुनियाएं मौजूद हैं कभी एक हाल में नहीं रहतीं। कभी वह फैल जाती हैं और कभी उनका फैलाव कम हो जाने की वजह से वह सिकुड़ जाती हैं।’
यह बातें आज की ग्रैंड डिजाईन थ्योरी से पूरी तरह मैच कर रही है। अगर ‘जहानों’ से मतलब ‘मल्टीवर्स (Multiverse)’ लिया जाये और ‘दुनिया’ से मतलब यूनिवर्स (ब्रह्माण्ड) लिया जाये तो इमाम जाफर सादिक (अ.स.) साफ साफ कह रहे हैं कि ब्रह्माण्ड हमेशा से बनते रहे हैं और बनते रहेंगे। ये पहले फैलते हैं और फिर सिकुड़ जाते हैं। ठीक यही बात स्टीफन हाकिंस की ग्रैंड डिज़ाईन में मौजूद है।
इसी किताब में दूसरी जगह पर इमाम का कौल इस तरह दर्ज है, ‘---ये जहान जिसमें हम जिंदगी बसर करते हैं, के अलावा और भी जहान हैं जिनमें से अक्सर इस जहान से बड़े हैं और उन जहानों में ऐसे इल्म हैं जो इस जहान के इल्म से शायद मुख्तलिफ हैं।’ इमाम जाफर सादिक (अ.स.) से पूछा गया कि दूसरे जहानों की तादाद क्या है? तो आपने जवाब दिया कि खुदा के अलावा कोई भी दूसरे जहानों की तादाद से वाकिफ नहीं। आप (अ.स.) से पूछा गया कि दूसरे जहानों के ज्ञान और इस जहान के ज्ञान में क्या फर्क है? क्या वहां का ज्ञान सीखा जा सकता है? इमाम जाफर सादिक (अ.स.) ने फरमाया दूसरे जहानों में दो किस्म के इल्म हैं। जिनमें से एक किस्म के इल्म इस जहान के इल्म से मिलते जुलते हैं और अगर कोई इस जहान से उन जहानों में जाये तो उस इल्म को सीख सकता है। लेकिन शायद यानि दूसरे जहानों में ऐसे इल्म पाये जायें कि इस दुनिया के लोग उन्हें वरक करने पर कादिर न हों क्योंकि उन उलूम को इस दुनिया के लोगों की अक्ल नहीं समझ सकती।’
देखा जाये तो दुनिया के इल्म (ज्ञान) वही हैं जिनको आज साइंस कुदरत या फिजिक्स के कानून कहकर पुकारती है और इंसान जब इन कानूनों की खोज करता है तो वही उसके ज्ञान में बढ़ोत्तरी होती है। अब यहां इमाम जाफर सादिक (अ.स.) कह रहे हैं कि अलग अलग ब्रह्माण्डों में कुछ कुदरत के कानून एक दूसरे से मिलते जुलते हैं और बहुत से पूरी तरह अलग होते हैं जिनका ज्ञान हमारी अक्ल से बाहर है। ठीक यही बात स्टीफन हाकिंस ने अपनी ग्रैंड डिज़ाईन में पेश की है।
तो इस तरह साफ हो जाता है कि आज स्टीफन हाकिंस और आधुनिक विज्ञान जो थ्योरी पेश कर रहा है वह थ्योरी आज से बारह-चौदह सौ साल पहले कुरआन और इमाम जाफर सादिक (अ.स.) पेश कर चुके हैं। फर्क बस इतना है कि उस ज़माने में उन थ्योरीज़ को सिद्ध करने लिये ज़रूरी मैथेमैटिक्स की कमी थी।
हालांकि स्टीफन हाकिंस ने अपनी किताब में कहीं भी इमाम जाफर सादिक (अ.) का सन्दर्भ नहीं दिया है किन्तु शायद उसके दिमाग के किसी कोने में यह बात अटकी थी तभी उसने अपनी किताब में यह जुमला जोड़ा है, ‘‘अगर कोई व्यक्ति ऐसे समय में जन्म लेता है कि उसके विचारों सदियों आगे के हों लेकिन उन्हें साबित करने वाली गणित न हो तो उसे अपने को पहचनवाने के लिये सदियों का इंतिज़ार करना पड़ता है।’’