अगर हम आसमान की तरफ निगाह करें तो तरह तरह के सितारे जगमग करते नज़र आते हैं। इन सितारों के बारे में पुराने ज़माने से ही लोग अटकलें लगाते रहे हैं। और बहुत से लोगों ने इनका इस्तेमाल भी किया। जैसे कि रात के सफर में रास्ते का अंदाज़ा लगाने के लिये या फिर ज्योतिष बताने के लिये। लेकिन तारों की अस्ल हकीकत इंसान को बहुत देर में मालूम हुई। उन्नीसवीं शताब्दी से पहले किसी को यह मालूम नहीं था कि महीन दिखने वाले सितारे दरअसल सूरज से भी कई गुना ज्यादा गर्म होते हैं। सितारों में एनर्जी एक खास प्रोसेस के ज़रिये पैदा होती है जिसका नाम है न्यूक्लियर फ्यूज़न। न्यूक्लियर फ्यूज़न में हाईड्रोजन के एटामिक न्यूक्लियस आपस में जुड़कर हीलियम के न्यूक्लियस में तब्दील होते रहते हैं। इस दौरान कुछ मैटर खत्म होकर एनर्जी की पैदाइश करता है। ये एनर्जी बहुत ज्यादा होती है। जिन लोगों को हीरोशिमा और नागासाकी पर बरसाये गये एटम बम की कहानी पता है वो समझ सकते हैं कि हाईड्रोजन बम की एनर्जी उनसे भी कई गुना ज्यादा होती है। एक सितारा उसी तरह का और उससे लाखों गुना बड़े साइज़ का महाताकतवर हाईड्रोजन बम होता है।
सितारों की गर्मी उनसे आने वाली रोशनी के रंग को देखकर मालूम होती है। लाल या नारंगी रंग के तारे कम गर्म होते है। पीले रंग के तारे औसत माने जाते हैं जबकि नीले या बैंगनी रंग के तारों में सबसे ज्यादा गर्मी और रोशनी होती है। सूरज भी एक औसत दर्जे का सितारा है। हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि जबकि सूरज की रोशनी और गर्मी हमारे बर्दाश्त के बाहर है तो उन तारों की रोशनी और गर्मी की हद क्या होगी जो नीले या बैंगनी रंग की रोशनी पैदा कर रहे हैं।
बेहद गर्म होने के बावजूद गर्मी की हद इन सितारों पर खत्म नहीं होती। बल्कि कुछ ऐसी भी बाडीज़ यूनिवर्स में मौजूद हैं जो इन सितारों से भी लाखों गुना ज्यादा गर्म हैं। इन बाडीज़ का नाम है क्वासर्स। क्वासर्स का पूरा नाम है क्वासी स्टीलर रेडियो सोर्स (Quasi Steller Radio Source)। क्वासर्स (Quasers) यूनिवर्स में पायी जाने वाली गैलेक्सी का ऐसा मरकज़ होता है जिसकी एनर्जी बहुत ज्यादा होती है। इनकी चमक तारों से कई गुना ज्यादा होती है। जिससे यह मालूम होता है कि तारों की तुलना में इनकी एनर्जी बहुत ज्यादा है। वास्तव में अब तक खोजे गये यूनिवर्स की सभी बाडीज़ में यह सबसे ज्यादा एनर्जी की बॉडी होती है। एक क्वासर की एनर्जी कम से कम 1 ट्रिलियन सूरज जैसे सितारों की एनर्जी के बराबर होती है। क्वासर्स में इतनी ज्यादा एनर्जी होती है कि ये आकाशगंगा (Galaxy) या अरबों सितारों का गुच्छा बनाते हैं। कुछ वैज्ञानिक इन क्वासर्स को आकाशगंगाओं का बीज तसव्वुर करते हैं। इन बीजों से नयी आकाशगंगाएं पैदा होती हैं। एक नयी गैलेक्सी क्वासर में एक बीज की तरह तैयार होकर इंतिज़ार करती है और एक वक्त आता है जब ये आकाशगंगा किसी फूल की तरह खिल उठती है, जिस के अन्दर अरबों सितारे होते हैं। यूनिवर्स में अब तक दो लाख से ज्यादा क्वासर्स खोजे जा चुके हैं।
सवाल पैदा होता है कि क्या इस्लाम में क्वासर्स, सितारों और उनकी लामहदूद एनर्जी की तरफ कोई इशारा है? तो इसका जवाब हां में है।
कुरआन हकीम की 56 वीं सूरे अलवाक़िया की आयत 75-76 में इरशाद है, ‘क़सम है सितारों के मौके की। और अगर तुम समझो तो ये बहुत बड़ी क़सम है।’ मौजूदा साइंस सितारों के मौके के तौर पर ब्लैक होल्स (जहां सितारा खत्म होता है) और क्वासर्स (जहां सितारा पैदा होता है।) को ही मानती है।
इसी तरह कुरआन हकीम की 24 वीं सूरे नूर की 35 वीं आयत में है, ‘अल्लाह आसमानों और ज़मीन का नूर है। नूरे खुदा की मिसाल ऐसी है जैसे कोई रोशन चिराग किसी ताक़ में रखा हो और वह चराग़ फरोज़ा सितारे की तरह शफ्फाफ और दरख्शन्द: फानूस में हो और उस चराग को रोशन करने के लिये तेल ज़ैतून के ऐसे मुबारक दरख्त से लिया गया हो जो न शरती है न ग़रबी है। अगर चै आग उसे छुए भी न लेकिन वह रोशन हो जाता हो। नूर के ऊपर नूर है। अल्लाह जिसे चाहता है अपने नूर की तरफ हिदायत करता है और लोगों को मिसालों से बात समझाता है और वह हर चीज़ से खूब आगाह है।
इस आयत में नूरे खुदा की खुसूसियात क्वासर्स से मिलती जुलती हैं। नूरे खुदा वह नूर हुआ जिसको अल्लाह खल्क़ कर रहा है। इसके बारे में कहा जा रहा है कि नूर के ऊपर नूर है। जैसा कि क्वासर्स में होता है कि इसका नूर यानि एनर्जी सितारों के ऊपर होती है। क्वासर्स में जो एनर्जी पैदा होती है वह किसी एनर्जी स्रोत से नहीं आती। जैसा कि आयत में कहा गया है कि ‘अगर चै आग उसे छुए भी न लेकिन वह रोशन हो जाता हो।’ क्वासर्स की यह एनर्जी किस मैटर या किस चीज़ से पैदा होती है इस बारे में साइंस कुछ नहीं जानती। ठीक उसी तरह जैसे कि अगर चराग़ प्योर जैतून के तेल की वजह से जल रहा है तो यह तेल इतना शफ्फाफ (Transparent) होता है कि कोई जल्दी नहीं महसूस कर सकता कि अन्दर कोई चीज़ है भी या नहीं।
उसूले काफी मुमताज़ आलिम शेख मोहम्मद अयूब कुलैनी की लिखी हुई किताब है जो ग्यारहवीं सदी ईस्वी में गुज़रे हैं। उसूले काफी के बाब 9 में इमाम जाफर अल सादिक से रवायत है कि जब कुछ लोगों ने दावा किया कि उन्होंने खुदा को देखा है और यह खबर इमाम जाफर अल सादिक अलैहिस्सलाम तक पहुंची तो उन्होंने फरमाया कि ‘सूरज नूरे कुर्सी के सत्तर हिस्सों में से एक हिस्सा है और कुर्सी नूरे अर्श के सत्तर हिस्सों में से एक हिस्सा है। और अर्श नूरे हिजाब के सत्तर हिस्सों में से एक हिस्सा है, तो अगर वह लोग जो खुदा को देखने का दावा करते हैं सच्चे हैं तो जबकि बादल न हों, सूरज से पूरी तरह आँख मिलाकर तो देखें।
इस तरह इमाम इशारा कर रहे हैं कि यूनिवर्स में ऐसी चीज़ें मौजूद हैं जिनकी रोशनी सूरज से कई गुना ज्यादा है। यकीनन यह इशारा है तारों की रोशनी और गर्मी की तरफ। क्योंकि तारों की एक बड़ी तादाद ऐसी है जो सूरज से कई गुना ज्यादा गर्म और रोशन है। फिर इमाम फरमाते हैं कि कुछ चीज़ें ऐसी हैं जो उनसे भी ज्यादा रोशन और गर्म हैं। यकीनन ये इशारा है क्वासर्स की तरफ जो तारों से भी लाखों गुना गर्म होते हैं। उस ज़माने में जबकि आम आदमी सूरज को ही सबसे ज्यादा गर्म जानता था। और तारो की गर्मी का तो उसे कोई तसव्वुर ही नहीं था, ऐसे में इमाम यूनिवर्स में ऐसी बॉडीज़ के बारे में बता रहे थे जो सूरज से भी हज़ारों गुना रोशन और गर्म हैं।
हालांकि साइंस फिलहाल यही कहती है कि क्वासर्स से ज्यादा गर्म और रोशन कुछ नहीं है। लेकिन इमाम साफ साफ फरमा रहे हैं कि गर्मी और रोशनी की हद सिर्फ क्वासर्स पर ही जाकर खत्म नहीं होती बल्कि यह सिलसिला आगे भी जारी है। और जैसे जैसे साइंस उस सिलसिले में आगे बढ़ती जायेगी इमाम का जुमला और ज्यादा रोशन होता जायेगा।