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कितनी पुरानी है फेस रीडिंग?

Written By zeashan haider zaidi on सोमवार, 27 दिसंबर 2010 | सोमवार, दिसंबर 27, 2010

आज के दौर में फेस रीडिंग की अहमियत जग ज़ाहिर है। फेस रीडिंग के ज़रिये किसी शख्स के बारे में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है। मसलन उसके अन्दर क्या योग्यताएं हैं। वह शांत स्वभाव का है या गुस्से वाला। चोर है या ईमानदार। मुसीबत के वक्त किसी की मदद करने वाला है या पहलू बचाकर निकल जाने वाला है। इन सब की काफी कुछ जानकारी फेस रीडिंग से मालूम की जा सकती है। यूरोपियन किताबों में पहली बार फेस रीडिंग के बारे में सिस्टेमैटिक लिटरेचर अरस्तू का मिलता है जिसने इंसान के चेहरे और जिस्म के फीचर्स के ज़रिये उसकी शख्सियत के बारे में जानकारी हासिल करने के लिये थ्योरीज़ पेश कीं। इन फीचर्स में रंग, बालों का स्टाइल, जिस्म की बनावट, आवाज़ वगैरा शामिल थे। 

भारत और दूसरे मुल्कों के इल्मे नुजूम यानि ज्योतिष में भी फेस रीडिंग को पूरी अहमियत दी गयी है। ज्योतिष में तो फेस रीडिंग के ज़रिये किसी शख्स के भविष्य को भी बता दिया जाता है। हालांकि इसमें सच्चाई कितनी होती है यह भी लोगों से छुपा हुआ नहीं है। इसलिए जो लोग ज्योतिष जानने का दावा करते हैं उनपर लोगों को बहुत ज्यादा भरोसा नहीं होता। लेकिन इस बात पर सभी एकमत हैं कि फेस रीडिंग से व्यक्ति की शख्सियत के बारे में हकीकी जानकारी मिल जाती है। प्राचीन फिलॉस्फी में फेस रीडिंग अहम किरदार निभाती थी, और आज भी निभा रही है। होमर और हिप्पोक्रेट्‌स के साहित्य में इस विधा का जिक्र अच्छी खासी मात्रा में मौजूद है। 

18 वीं व 19वीं सदी में फेस रीडिंग और बॉडी लैंग्वेज को और डेवलप किया गया और इसे साइंस की एक ब्रांच मानते हुए इसे नाम दिया गया फिज़ियोगनॉमी (Physiognomy)। वर्तमान में यह खुद फिज़ियोलोजी की ब्रांच मानी गयी है। इस ब्रांच का इस्तेमाल 18 वीं सदी के बाद काफी बढ़ गया। कंपनियां नौकरी पर रखने से पहले आवेदनकर्ता की ज़हनी काबलियत का पता इससे लगाने लगीं। 1930 के आसपास पर्सनालिटी स्टडीज़ का इस्तेमाल सामाजिक सन्दर्भों में भी होने लगा था। पर्सनालिटी के ऊपर समाज का क्या असर होता है इसपर भी काफी अध्ययन किया गया। अमेरिकी एन्थ्रोपोलोजी विशेषज्ञ मारग्रेट मीडिन ने अपनी किताब ‘सेक्स एण्ड टेम्प्रामेन्ट इन थ्री प्रीमिटिव सोसायटीज़’ में बताया कि लोगों के बीच अपने को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना ज़रूरी नहीं मर्दानगी की निशानी हो, और न ही हमेशा दब कर रहना व ज्यादा सक्रिय न रहना औरतपन का मिजाज़ है। 

कोई व्यक्ति मुजरिमाना ज़हन तो नहीं रखता, या किसी ने जुर्म तो नहीं किया है, इसका पता भी इस साइंस की मदद से लग सकता है अत: क्रिमनोलोजी में भी इसका इस्तेमाल काफी होता है। कुछ लोगों ने तो यहां तक दावा किया है कि मुजरिमों का बॉडी स्ट्रक्चर ही आम आदमी से अलग होता है। फिज़ियोगनॉमी से यह भी पता चलता है कि एक ही शख्स की पर्सनालिटी अलग अलग सिचुएशन्स में बिलकुल अलग हो जाती है। हो सकता है शांति समय में वह झगड़ालू स्वभाव का न हो लेकिन किसी आपदा के समय वह लोगों की जान ले भी सकता है और अपनी जान दे भी सकता है। 

अब सवाल उठता है कि फिज़ियोगनॉमी पर क्या इस्लाम ने भी कुछ रोशनी डाली है? तो हकीकत ये है कि साइंस की इस शाखा के विकास में इस्लाम और मुस्लिम साइंसदानों ने अपना पूरा योगदान दिया है।  फिज़ियोगनॉमी पर कई मुस्लिम साइंसदानों ने उल्लेखनीय कार्य किया है जिनमें अल रज़ी और अवीसिन्ना के नाम क़ाबिले जिक्र हैं। इन साइंसदानों ने फिज़ियोगनॉमी को नयी ऊंचाईयों तक पहुंचाया। 

साथ ही ये भी हकीकत है कि जितनी परफेक्ट फेस रीडिंग हमारे इमामों ने पेश की उतनी दुनिया का बड़े से बड़ा आलिम भी पेश नहीं कर पाया। ये बात मालूम होती है छठे इमाम हज़रत जाफर बिन मोहम्मद अलैहिस्सलाम की एक हदीस से। जो कि दर्ज है मुमताज़ आलिम शेख सुदूक (अ.र.) की किताब एल्लशशराय में।

एक मरतबा रावी ने हज़रत जाफर बिन मोहम्मद (इमाम जाफर अल सादिक़) अलैहिस्सलाम से सवाल किया और कहा फरजन्दे रसूल मेरे ज़हन में एक सवाल है, चाहता हूं कि आप से पूछूं। आपने फरमाया अगर तुम कहो तो वह सवाल जो तुम्हारे ज़हन में है तुम्हारे सवाल करने से पहले ही बता दूं और अगर तुम्हारी मंशा सवाल करने की है तो कर लो। मैंने अर्ज किया फरज़न्दे रसूल, आप मेरे सवाल करने से पहले कैसे मालूम कर लेंगे कि मेरे ज़हन में क्या सवाल है? फरमाया तोसम और नफरस (ज़ाहरी अलामात और निशानियों) से। क्या तुमने अल्लाह तआला का ये क़ौल नहीं सुना - यकीनन इस में पहचान वालों के लिये निशानियां हैं (सूरे हिज्र, आयत 75) नैज़ रसूल अल्लाह (स.) का क़ौल है कि मोमिन की फरासत से खुद को बचाओ इसलिए कि वह अल्लाह तआला के दिये हुए नूर से देखता है। इस तरह इमाम साफ फरमा रहे हैं कि चेहरे और जिस्म की बाहरी निशानियों और हाव भाव को देखकर किसी के दिल की बात बतायी जा सकती है।

इसी तरह की कई हदीसें किताबों में मौजूद हैं जिनमें सवाल करने वाला रसूल (स.) या हमारे किसी इमाम (अ.) के पास आया और इससे पहले कि वह अपना सवाल पूछता रसूल (स.) या इमाम (अ.) ने उसका चेहरा देखकर ही उसका सवाल बता दिया और फिर उसका जवाब भी दे दिया और सवाल पूछने वाला हैरत में मुब्तिला हो गया और फिर उसने इस्लाम की सच्चाई की गवाही दी।

फेस रीडिंग और ज़ाहरी अलामतों से किसी के बारे में यह बता देना कि कौन सा सवाल उसके ज़हन में है यकीनन इस इल्म के कमाल को बताता है। और इस कमाल के लिये हमारे इमामों (अ.) या रसूल (स.) के सिवा और किसी ने दावा किया हो और उस दावे पर खरा भी उतरा हो, पूरे आलमे इंसानियत के इतिहास में ऐसा कोई जिक्र नहीं मिलता।
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