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कहाँ कन्फ्यूज़ हुए चचा डार्विन?

Written By zeashan haider zaidi on सोमवार, 10 जनवरी 2011 | सोमवार, जनवरी 10, 2011

डार्विन की इवोल्यूशन थ्योरी के अनुसार इंसान का विकास बन्दर जैसी किसी प्रजाति से हुआ। जो जानवरों की तरह अक्ल से दूर थी। डार्विन ने एक थ्योरी की बुनियाद रखी जिसे विकासवाद (evolution) कहा जाता है। विकासवाद या इवोल्यूशन की खास बातें इस तरह हैं :

दुनिया में जानदार प्रजनन के द्वारा अनगिनत संख्या में जन्म लेते हैं लेकिन उनके खाने पीने की चीज़ें सीमित (limited) होती है इसलिए जीवन की रक्षा के लिये सभी में अपना वजूद बचाने की लड़ाई होती है। इस लड़ाई में जो अपने वातावरण के ज्यादा अनुकूल होते हैं या अपने को अनुकूल बना लेते हैं वो बचे रहते हैं और बाकी मारे जाते हैं। इसे डार्विन ने नाम दिया नेचुरल सेलेक्शन (natural selection)। बदलते पर्यावरण के अनुकूल जानदारों में लगातार विकास होता रहता है जिससे नयी नयी ज्यादा विकसित जातियां पैदा होती हैं। यानि डार्विन के अनुसार उच्च प्रजाति के जीवों के पूर्वज एक ही निम्न प्रजाति के जीव थे। जैसे कि इंसान और बन्दर के पूर्वज एक ही थे। और इसी तरह उन पूर्वजों के पूर्वज भी एक ही थे। यह सिलसिला पीछे की तरफ खिसकते हुए एक कोशिका पर जाकर खत्म होता है जिससे कि जीवन की उत्पत्ति हुई। 

आधुनिक विकासवाद के अनुसार जातियों में बदलाव बहुत धीरे धीरे होता है और इसके पीछे छोटे छोटे जेनेटिक बदलावों का रोल होता है, जीन्स का रीकाम्बीनेशन नेचुरल सेलेक्शन द्वारा कण्ट्रोल होता है। साथ ही अलग अलग जगहों में जातियों के बीच बदलाव भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। नेचुरल सेलेक्शन जीन्स में बदलाव के मुख्य ज़रिया होता है। यहाँ तक कि बहुत सूक्ष्म लाभ भी आने वाली पीढ़ियों के लिये निहायत अहम होता है। यह बदलाव प्रभावी गुणों में होता है। और वंशानुगत होता है। हालांकि इसमें पर्यावरण का भी प्रभाव शामिल होता है। इवोल्यूशन में अहम किरदार होता है जीन डाईवर्सिटी के कैरी ओवर होने का। 

आधुनिक जीनोम थ्योरी के अनुसार इंसान और दूसरे जानदारों में अधिकतर जीन एक जैसे होते हैं। जीन समानता का जो प्रतिशत निकलकर सामने आता है वह इस तरह है,
इंसान और बंदर : 96 प्रतिशत 
इंसान और इंसान 95 प्रतिशत
बिल्ली और इंसान 90 प्रतिशत
गाय और इंसान 80 प्रतिशत
चिकन और इंसान 60 प्रतिशत
इसके अलावा जानवरों के बीच जीन समानता का प्रतिशत इस तरह है,
बिल्ली कुत्ता 82 प्रतिशत, बिल्ली गाय 80 प्रतिशत, बिल्ली चिंपेंजी  79 प्रतिशत, बिल्ली चूहा 69 प्रतिशत।

तो ज़ाहिराना तौर पर जीन की ये समानता इवोल्यूशन थ्योरी को समर्थन देती मालूम होती है। लेकिन अगर कुछ और साइंटिफिक तथ्यों को इकट्‌ठा किया जाये तो इवोल्यूशन थ्योरी गलत मालूम होने लगती है।

स्कॉटलैण्ड में टैडपोल की मिलने वाली एक प्रजाति ट्रायोप्स कैन्सरीफार्मिस (triops cancriformis)के बारे में अनुमान है कि ये तीन सौ मिलियन साल पुरानी है और तब से इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। यानि इसमें कोई इवोल्यूशन नहीं हुआ है।
आस्ट्रेलिया में ब्लू माउंटेन पर्वतों के बीच पाये जाने वाले वोलेमी पाइन ट्री लगभग 200 मिलियन साल पुराने हैं और तब से उनमें कोई भी जेनेटिक बदलाव नहीं आया है।
पेड़ों की ऐसी सैंकड़ों प्रजातियां दुनिया में मिलती हैं जो हज़ारों सालों से अपने मूल रूप में मौजूद हैं और उनमें कोई भी बदलाव, कोई इवोल्यूशन नहीं हुआ है।

किस तरह निर्जीव तत्वों के मिलने से जीवित कोशिका की पैदाइश हुई इस बारे में भी इवोल्यूशन थ्योरी मौन है।
सब मिलाकर डार्विन की थ्योरी में बहुत से छेद हैं, बहुत से ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब इस थ्योरी के हामियों के पास नहीं है।

तो फिर सवाल पैदा होता है कि अलग अलग जानवरों में 95 प्रतिशत या नब्बे प्रतिशत जीन एक समान होने का क्या मतलब हुआ? और ये इवोल्यूशन को क्यों नहीं इंगित करते? इसका जवाब ढूंढने के लिये हमें मदद लेनी होगी इस्लाम की रोशनी की।

पहले हम मदद लेते हैं कुरआन की कुछ आयतों की।
(बक़रा 2-65-66) और यकीनन तुम्हें उन लोगों का इल्म भी है जो तुम में से हफ्ता (शनिवार) के बारे में हद से बढ़ गये थे और हम ने भी कह दिया कि तुम ज़लील बन्दर बन जाओ। उसे हमने अगलों पिछलों के लिये इबरत का सबक बना दिया और परहेज़गारों के लिये नसीहत का।
आयत इस बारे में है कि हफ्ते के दिन बनी इस्राइल को मछली के शिकार से मना किया गया था। बल्कि किसी भी दुनियावी काम से मना किया गया था। लेकिन उन्होंने एक बहाने से अल्लाह के हुक्म के खिलाफ काम किया। वे हफ्ते के दिन गड्‌ढे खोद लेते ताकि मछलियां उसमें फंसी रहें और फिर इतवार को जाकर वे सारी मछलियां निकाल लेते थे। नतीजे में उनपर बन्दर बन जाने का अज़ाब नाज़िल हुआ।
(मायदा 5-60) (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुम्हें अल्लाह के नजदीक सज़ा में इससे कहीं बदतर ऐब बता दूं। जिसपर अल्लाह ने लानत की हो और उसपर गज़ब ढाया हो और उनमें से किसी को बन्दर और सुअर बना दिया हो जो शैतान की परस्तिश करने लगे। 
(आराफ़ 7-166) फिर जिस बात से उन्हें रोका गया था जब उन लोगों ने उसमें सरकशी की तो हमने हुक्म दिया कि तुम ज़लील और धुत्कारे हुए बन्दर बन जाओ।

लेकिन इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं कि आज के बन्दर वगैरा उन्ही इंसानों की नस्लें हैं। शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब अय्यून अखबारुलरज़ा में दर्ज इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के कौल के मुताबिक जो इंसान इन जानवरों की शक्ल में बदले थे वे तीन दिन से ज्यादा जिन्दा नहीं रहे थे। आज जो भी जानवरों की नस्लें हैं वे उन इंसानों से पहले मौजूद थे।

तो यहां पर मामला साफ हो जाता है कि ये बात खुदाई इल्म में थी कि कुछ इंसान अज़ाबे इलाही में गिरफ्तार होकर जानवरों में बदल जायेंगे। इसलिये पहले ही ऐसे जानवर अल्लाह ने खल्क कर दिये थे जिनके जीन इंसानी जीन से मिलते जुलते हों और देखने वाला उन्हें देखकर इबरत हासिल कर सके कि अगर उसमें अक्ल न हो तो उसमें और उन जानवरों में कोई फर्क नहीं।

इस बात को और साफ तरीके से बयान करता है किताब तौहीदुल अइम्मा में इमाम जाफर अल सादिक (अ.स.) का कौल। जो इस तरह दर्ज है, ‘बन्दर की पैदाइश और उस के अआज़ा अक्सर व बेश्तर आदमी के अआज़ा से मुशाबिह (समान) होने पर गौर करो। यानि सर, दोनों कंधे और सीना और इसी तरह उस के भीतरी हिस्से भी इन्सान के भीतरी हिस्सों से मुशाबिह (समान) हैं। इसके अलावा उसे इतना ज़हन भी दिया गया है जिसकी वजह से अपने पालने वाले की उन बातों को समझता है जिसका वह इशारा करता है और अक्सर इंसान को जो काम करते हुए देखता है उसकी नक़ल उतारता है यहां तक कि मिजाज़ और खासियतों में इंसान के बहुत करीब है और आदमी के लिये बायसे इबरत है कि वह इस बात को समझे कि मैं भी उसी के जैसे माद्दे से बना हूं। क्योंकि इन्ही बहायम में से वह भी यानि बन्दर भी है जो इंसान से इस कदर करीब है और ये कि अगर मुझ को अक्ल व बोलने की ताकत में उसपर फजीलत न दी जाती तो मैं भी किसी जानवर ही की मानिन्द होता।

अलावा इसके बन्दर के जिस्म में कुछ इज़ाफे भी हैं जिनकी वजह से इसमें और इंसान में फर्क हो जाता है। मसलन दहाना, दुम और बाल जो उसके जिस्म का लिबास हैं। और ये बातें इंसान से उसके मलहक़ और मुशाबिह हो जाने से मानआ न होतीं अगर उसको इंसान ही की मानिन्द अक्ल ज़हन और गोयायी की ताकत दी गयी होती। पस सही हददे फासिल उस में और इंसान में सिर्फ अक्ल, ज़हन और ताकत गोयायी में कमी है।

इस तरह इमाम जाफर अल सादिक (अ.स.) इंसान और बन्दर और दूसरे जानवरों में एकरूपता होने की सही वजह बता रहे हैं, जिसका डार्विन की थ्योरी से दूर दूर का नाता नहीं है। साथ ही इमाम ये भी साफ साफ फरमा रहे हैं कि बन्दर और इंसान में फर्क है तो सिर्फ अक्ल और बोलने की ताकत का। ये आज की जेनेटिक थ्योरी साबित कर रही है कि इंसान और बन्दर में 96 प्रतिशत जीन एक तरह के होते हैं। और दोनों में अक्ल और बोलने की ताकत के अलावा और कोई फर्क नहीं होता।
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