होंठ इंसान और जानवर के जिस्म का निहायत अहम हिस्सा हैं। खास तौर से इंसान के जिस्म में होंठ बहुत से कामों के हामिल होते हैं। मौजूदा साइंसी तहकीकात के मुताबिक होंठों के इंसानी जिस्म में निहायत अहम फंक्शन्स हैं जो इस तरह हैं,
होंठ हमारे खाने पीने को आसान बनाते हैं। होंठों की अपनी अलग माँसपेशियाँ होती हैं जिनकी मदद से होंठ किसी भी शेप में आसानी से आ जाते हैं। ये खाने को पकड़ कर मुंह के अन्दर डाल सकते हैं। साथ ही ये मुंह को एयरटाइट तरीके से बन्द कर सकते हैं। ताकि खाना और पानी मुंह के अन्दर ही रहे, बाहर न निकल जाये। और साथ ही अवांछित चीज़ें जैसे धूल और मिट्टी जो जिस्म को नुकसान पहुंचा सकती हैं, मुंह के अन्दर न जाने पायें। होंठों के ज़रिये पतली सुरंग बनाकर इंसान अपने चूसने की पावर बढ़ा लेता है जिससे पानी, कोल्ड ड्रिंक और दूसरी बहुत सी चीजें इंसान आसानी से चूस लेता है। चूसने की ये ताकत नौनिहालों में माँ का दूध् हासिल करने के लिये निहायत अहम होती है।
होंठों पर बहुत सी नर्व सेल्स का खात्मा होता है। जिसकी यह वजह से ये हर तरह की फीलिंग्स के लिये निहायत सेंसिटिव होते हैं। गर्मी, सर्दी और स्पर्श का एहसास इन्हें फौरन हो जाता है। इसलिए छोटे बच्चों में ये अनजान चीजों की पहचान का बहुत अच्छा ज़रिया होते हैं। अपने नर्व सेल्स की वजह से औरत मर्द के बीच करीबी रिश्ते बनाने में भी होंठ अहम रोल निभाते हैं। साथ ही इंसान सेहतमंद है या बीमार, भूखा है या उसे प्यास लगी है इसका अंदाज़ा उसके होंठों को देखकर लगाया जा सकता है।
इंसान की स्पीच और बोली में होंठ अहम किरदार निभाते हैं। उसकी स्पीच में कुछ हुरूफ ऐसे होते हैं जिनका अदा करना होंठों के ज़रिये ही मुमकिन हो पाता है। इन हुरूफ को लेबियल (labial) कहा जाता है। इनमें बाईलेबियल (bilabial) ऐसे हुरूफ होते हैं जिनमें दोनों होंठों का इस्तेमाल होता है। जैसे म, प, ब वगैरा और लैबियोडेन्टल कन्ज़ोनेन्ट (labiodental consonant) ऐसे हुरूफ होते हैं जिनमें निचले होंठ और ऊपरी दाँत का इस्तेमाल होता है। इनमें शामिल हैं फ, व वगैरा। होंठों को गोलाई में सिकोड़कर इंसान बहुत सी आवाजें निकाल सकता है और बहुत से म्यूज़िकल इन्स्ट्रूमेन्टस जैसे बांसुरी, माउथआर्गन, सेक्सोफोन वगैरा बजा लेता है।
होंठों के बारे में जो भी तहकीक़ात मिलती हैं, उनमें हमारे इमामों का अहम रोल नज़र आता है। और इस बात के पूरे सुबूत मौजूद हैं कि होंठों के बारे में जितने अहम इन्किशाफ हमारे इमामों ने किये हैं, उनसे पहले और किसी ने नहीं किये। किताब तौहीदुल अईम्मा में इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम की एक निहायत अहम हदीस दर्ज है, जिसमें होंठों के बारे में कुछ इस तरह बयान किया गया है।
‘‘होंठों के ज़रिये से इंसान पानी को चूस सकता है ताकि जो पानी पेट के अन्दर जाये वह बाअन्दाजा मुअय्यन (एक खास अन्दाज़े के साथ) और बिल क़स्द (जितनी ज़रूरत है) जाये न कि ग़रग़राता हुआ बह जाये, जिससे पीने वाले के गले में फंदा न लगे और जोर से बह कर जाने के सबब से किसी अन्दरूनी हिस्से में खराश न पड़ जाये। फिर अलावा इसके ये दोनों होंठ दरवाज़े के मुशाबिह हैं जो मुंह को ढांके रहते हैं जब आदमी चाहे बन्द करे।’’
यकीनन यह जानकारी साइंस के नज़रिये से पूरी तरह सही है। इमाम साफ साफ फरमा रहे हैं कि होंठ खाने पीने को मुनासिब मेक़दार में मुंह के अन्दर ले जाने में निहायत अहम रोल निभाते हैं। इमाम फरमा रहे हैं कि होंठों के चूसने की खासियत निहायत अहम है, जैसा कि मौजूदा साइंस का भी नज़रिया है कि पानी पीना और छोटे बच्चों का दूध् पीना इसी खासियत की वजह से मुमकिन हो पाता है। इमाम ये भी बता रहे हैं कि होंठों का दरवाजे जैसा काम आना भी जिस्म के लिये निहायत ज़रूरी है। जैसा कि मौजूदा साइंस कहती है कि ये मुंह को एयरटाइट तरीके से बन्द कर सकते हैं। ताकि खाना और पानी मुंह के अन्दर ही रहे, बाहर न निकल जाये। और साथ ही अवांछित चीज़ें जैसे धूल और मिट्टी जो जिस्म को नुकसान पहुंचा सकती हैं, मुंह के अन्दर न जाने पायें।
तो आज साइंस होंठों के बारे में जो भी रिसर्च करके बता रही है, इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम उसे बारह सौ साल पहले निहायत बारीकी के साथ और निहायत आसान अलफाज़ में बता चुके थे। यही है करिश्मा इस्लाम का और उसकी सच्चाई का।