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चीटियों के बारे में हैरतअंगेज़ इन्किशाफ

Written By zeashan haider zaidi on मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011 | मंगलवार, फ़रवरी 08, 2011


चींटियां अल्लाह की हैरतअंगेज़ मखलूक हैं। ये ज़मीन के लगभग हर हिस्से में पायी जाती हैं। ज्यादातर चीटियां लाल या काले रंग की होती हैं, लेकिन कुछ प्रजातियां हरे या धात्विक चमकीले रंग की भी होती हैं। इनकी बहुत सी आदतें इंसानों से मिलती जुलती हैं। ये इंसान की ही तरह सामाजिक होती हैं। यानि आपस में मिल जुलकर काम करती हैं। इनकी बड़ी बड़ी कालोनियां होती हैं। जिनमें इनके बड़े बड़े ग्रुप रहते हैं। इन ग्रुप्स में अपने अपने काम के अनुसार हर तरह की चींटियां होती हैं। जिनमें मज़दूर, सिपाही व अण्डे देने वाली क्वीन चीटियां शामिल होती हैं। कालोनियों की ज्यादातर चीटियां मादा होती हैं। साथ में कुछ नर चीटियां ‘ड्रोन’ पायी जाती हैं। ये सभी चीटियां अपने अपने काम एक दूसरे के सहयोग से अंजाम देती हैं। यहाँ तक कि दूर तक खाने को ले जाने के लिये ये आपस में वज़न की अदला बदली करती हैं। सिपाही चीटियां अपनी कालोनी को बचाने के लिये आक्रमणकारी से पूरी लड़ाई लड़ती हैं। 

चींटियों में कठिन परिस्थितियों से लड़ने की ताकत होती है और आपस में बातचीत के लिये इनके पास काफी अच्छे तरीके होते हैं। जो काफी कुछ इंसानी तरीकों से मिलते जुलते हैं। चीटियों की आँखों में कई छोटे छोटे लेन्स जुड़े हुए होते हैं जिनके ज़रिये ये कई दिशाओं में एक साथ देख सकती हैं। हालांकि इनकी आँखें चीजों को साफ साफ देख पाने में असमर्थ होती हैं। इसके अलावा इनके सर पर दो एंटीना मौजूद होते हैं जिनके ज़रिये ये चीज़ों को छूकर महसूस कर सकती हैं। साथ ही अल्लाह ने इन्हें चीज़ों को पकड़ने के लिये मज़बूत जबड़े दिये हैं। अपने वज़न से पचास गुना भारी सामान ये उठा सकती हैं। चीटियों में सिर्फ क्वीन और नर के जिस्म में ही पंख होते हैं।

चीटियां एक खास महक के ज़रिये एक दूसरे से कम्यूनिकेट करती हैं। यह महक होती है खास केमिकल फेरोमोन्स की। खाने की तलाश में आगे जाने वाली चीटियां खाना मिलते ही वापसी में अपनी कालोनी तक फेरोमोन्स की एक लकीर छोड़ती हुई वापस आती हैं। इसकी महक के सहारे वर्कर्स चीटियां वहां तक पहुंच जाती हैं, और उस खाने को टुकड़ों में तोड़कर धीरे धीरे लाने लगती हैं। साथ ही हर चींटी अगली चीटियां के लिये फेरोमोन्स भी छोड़ती जाती है। जब खाना खत्म हो जाता है तो ये फेरोमोन छोड़ना बन्द कर देती हैं और चीटियों का सफर रुक जाता है। जब किसी चींटी को कहीं पर खतरा महसूस होता है या किसी वजह से वह किसी रास्ते पर घायल हो जाती है तो वह खास तरह का केमिकल अलार्म की तरह छोड़ती है जिसे सूंघकर बाकी चीटियां उस तरफ जाना छोड़ देती हैं। 

चीटियों के रहने की जगह अँधेरी व सीलन से भरी होती है। जहाँ पर बैक्टीरियल व फंगल इंफेक्शन होने के पूरे मौके होते हैं। अल्लाह ने चीटियों को इनसे बचाने के लिये इनके जिस्म पर खास मेटाप्ल्यूरल  ग्लैंड बनायी है जिसके अन्दर एण्टीबैक्टीरियल और एण्टीफंगल केमिकल्स मौजूद होते हैं और चीटियां बैक्टीरिया व फंगस के हमलों से सुरक्षित रहती हैं।

चीटियों की कुछ किस्में खेती भी करती हैं। जैसे कि लीफकटर चींटी एक खास किस्म की फफूंदी खाकर जिन्दा रहती है। इस फफूंदी को उगाने के लिये वह पत्तियों को काटकर छोटे छोटे टुकड़े करती है और उन्हें अपनी कालोनी में पौधों की तरह रोप देती है। इन ही पत्तियों पर वह खास किस्म की फफूंदी उगती है।     

इस तरह हम देखते हैं कि चींटियां अल्लाह की हैरतअंगेज़ मख्लूक हैं। चीटियों के बारे में तमामतर रिसर्च का निचोड़ बारह सौ साल पहले के इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम के कुछ जुमलों में सिमटा हुआ है, जो किताब तौहीदुल अईम्मा में इस तरह दर्ज है, ‘चींटी दाने हासिल करने के बाद उन को दरमियान से दो टुकड़े कर देती है कि कहीं ऐसा न हो कि ये दाने उनके सुराखों में पानी पाकर उग आयें और उनके काम के न रहें। और जब उन दानों को तरी पहुंच जाती है तो उनको निकाल कर फैला देती है ताकि खुश्क हो जायें। फिर ये भी है कि चींटियां ऐसे मुकाम पर अपना सूराख बनाती हैं जो बुलन्द हो ताकि पानी की रौ वहां तक पहुच कर उन्हें गर्क न कर दे। मगर ये सब बातें बगैर अक्ल व फिक्र के हैं और एक फितरी व कुदरती बातें हैं जो उन की मसलहत के वास्ते खुदाए अज्जोज़ल की मेहरबानी से उन की खिलकत में दाखिल कर दी गयी हैं।’

इमाम के ये जुमले चीटियों के बारे में न सिर्फ तमाम रिसर्च के शुरूआती प्वाइंट हैं बल्कि आखिरी निष्कर्ष भी हैं। तमामतर रिसर्च के बावजूद यह कहीं नहीं मिलता कि चींटी दाने को दरमियान से दो टुकड़े क्यों करती है, सिवाय इमाम के उपरोक्त जुमले के। और ये भी कहीं नहीं मिलता कि जब उन दानों को तरी पहुंच जाती है तो चीटियां उनको निकाल कर फैला देती है ताकि खुश्क हो जायें। इससे ज़ाहिर होता है कि तमामतर रिसर्च इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम के इल्म तक नहीं पहुंच पायी। वह इल्म जिसे इमाम ने बारह सौ साल पहले दुनिया के सामने पेश कर दिया था।
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