World's First Islamic Blog, in Hindi विश्व का प्रथम इस्लामिक ब्लॉग, हिन्दी मेंدنیا کا سبسے پہلا اسلامک بلاگ ،ہندی مے ਦੁਨਿਆ ਨੂ ਪਹਲਾ ਇਸਲਾਮਿਕ ਬਲੋਗ, ਹਿੰਦੀ ਬਾਸ਼ਾ ਵਿਚ
आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन
Home » , , » भारत में लालच देकर धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा है

भारत में लालच देकर धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा है

Written By Saleem Khan on बुधवार, 9 फ़रवरी 2011 | बुधवार, फ़रवरी 09, 2011


‘‘भारत में पहले मुस्लिम शासनकाल में ज़ोर-ज़बरदस्ती से मुसलमान बनाया जाता रहा। अब लालच देकर धर्म-परिवर्तन कराया जा रहा है। यह साज़िश भी है कि मुस्लिम नवयुवक हिन्दू लड़कियों से संबंध बढ़ाएं, धर्म परिवर्तन कराएं, ब्याह करें और अपनी जनसंख्या बढ़ाएं। यह परिस्थिति असह्य है, साम्प्रदायिक तनाव पैदा करती, हिंसा भड़काती है...।’’
●●●

विषय-वस्तु पर, यहां तीन पहलुओं से दृष्टि डाल कर उपरोक्त शिकायत या संदेह और ग़लतफ़हमी को दूर करने तथा आपत्ति व आक्षेप का निवारण करने का प्रयास किया जा रहा है।

1. धर्म परिवर्तन के बारे में इस्लाम की नीति।2. मुस्लिम शासनकाल में धर्म-परिवर्तन।3. वर्तमान में ‘धर्म-परिवर्तन’ के विषय में मुस्लिम पक्ष।

1. धर्म-परिवर्तन के बारे में इस्लाम की नीतिइस्लामी नीतियों, नियमों, शिक्षाओं तथा आदेशों-निर्देशों के मूल स्रोत दो हैं: एक—पवित्र ईशग्रंथ क़ुरआन;दो: इस्लाम के वैश्वीय आह्वाहक हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰)। 

इन दोनों मूल स्रोतों में पूरी मानव जाति को संबोधित करके विशुद्ध एकेश्वरवाद (तथा परलोकवाद व ईशदूतवाद) पर ईमान लाने का आह्वान दिया गया है। इस ईमान के अनुकूल पूरा जीवन बिताने की शिक्षा दी गई है; और कभी बौद्धिक तर्क द्वारा, कभी मानवजाति के दीर्घ इतिहास के हवाले से, इस ईमान व अमल के इहलौकिक व पारलौकिक फ़ायदे बताए गए हैं तथा इस ईमान व अमल के इन्कार, अवहेलना, तिरस्कार एवं विरोध की इहलौकिक व पारलौकिक हानियां बताई गई हैं।
इसके बाद, इस्लाम की नीति यह है कि इस आह्वान पर सकारात्मक (Affirmative) या नकारात्मक (Negative) प्रतिक्रिया (Response) एक सर्वथा व्यक्तिगत कर्म तथा ‘बन्दा और ईश्वर’ के बीच एक मामला है। ऐसी व्यक्तिगत प्रतिक्रिया को इस्लाम ने पूर्णतः व्यक्ति के ‘विवेक’ और ‘स्वतंत्र चयन-नीति’ का विषय क़रार देते हुए, इस मामले में किसी आम मुसलमान को तो क्या, अपने रसूलों (ईशदूतों) को—और अन्तिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को भी—बन्दे और ईश्वर के बीच हस्तक्षेप का अधिकार नहीं दिया है। (क़ुरआन, 88:22, 2:256)

2. मुस्लिम-शासनकाल में धर्म-परिवर्तनयदि मुस्लिम शासनकाल में ऐसी कुछ घटनाएं घटी हैं तो वे इस्लाम के विरुद्ध घटीं। मुस्लिम शासक इस्लाम के प्रतिनिधि और वर्तमान के मुसलमानाने हिन्द के आदर्श (Role Model) नहीं थे, न हैं। यदि उनमें से किसी ने सचमुच ऐसा किया तो इस्लामी शिक्षा के विरुद्ध किया, पाप किया, जिसकी सज़ा उसे परलोक में ईश्वर देगा। वर्तमान के मुसलमान इसके उत्तरदायी नहीं हैं।

ऊपर, ‘यदि’ और ‘सचमुच’ के शब्द इसलिए प्रयोग किए गए हैं कि इतिहास ऐसी घटनाओं की न केवल पुष्टि नहीं करता बल्कि इनका खंडन करता है। नगण्य मात्र में कुछ अपवाद (Exceptions) तो हो सकते हैं। यहां ‘इतिहास’ से अभिप्राय वह इतिहास नहीं है जो (‘‘फूट डालो, नफ़रत पैदा करो, लड़ाओ और शासन करो’’ की सोची-समझी नीति और गहरी तथा व्यापक साज़िश से) अंग्रेज़ों ने लिखी; या जिसे कुछ विशेष मानसिकता और नीति का एक ‘विशेष वर्ग’ साठ-सत्तर वर्ष से अब तक लिखता आ रहा है। अनेकानेक निष्ठावान व सत्य-भाषी ग़ैर-मुस्लिम (=हिन्दू) विद्वानों, प्रबुद्धजनों, शोधकर्ताओं, विचारकों तथा इतिहासकारों ने उपरोक्त आरोप का भरपूर व सशक्त खंडन किया है; हां यह बात अवश्य है कि ऐसे साहित्य व शोधकार्य तक आम देशवासियों की पहुंच नहीं है। (इस संक्षिप्त आलेख में, उपरोक्त खंडन को उद्धृत करने का अवसर नहीं है। संक्षेप में बस इतना लिख देना पर्याप्त है कि) उन विद्वानों के अनुसार, उस काल में हुए धर्म-परिवर्तन के पांच मूल कारक थे:

एक: वर्ण-व्यवस्था द्वारा सताए, दबाए, कुचले जाने वाले असंख्य लोगों ने इस्लाम में बराबरी, सम्मान व बंधुत्व पाकर धर्म-परिवर्तन किया।दो: इस्लाम की मूल-धारणाओं को अपनी मूल प्रकृति के ठीक अनुवू$ल पाकर इस्लाम ग्रहण किया। तीन: इस्लामी इबादतों (जैसे ‘नमाज़’) की सहजता व सुन्दरता तथा गरिमा के आकर्षण ने लोगों को इस्लाम के समीप पहुंचाया। चार: इस्लामी सभ्यता की उत्कृष्ठता, हुस्न, गरिमा तथा महात्म्य और उसकी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक प्रशंसनीय ख़ूबियों ने लोगों को इस्लाम के साये में पहुंचाया, और पांच: इस्लामी राज्य-व्यवस्था में इन्साफ़ व अद्ल (न्याय) तथा शान्ति-स्थापना ने लोगों को इस्लाम की ओर आकर्षित किया।

मुंशी प्रेमचन्द, एम॰एन॰ राय, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, स्वामी विवेकानंद, विशम्भरनाथ पाण्डेय, प्रोफ़ेसर के॰ एस॰ रामाराव, राजेन्द्र नारायण लाल, काशीराम चावला, बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर, वेनगताचलम अडियार, पेरियार ई॰वी॰ रामास्वामी, कोडिक्कल चेलप्पा और स्वामी लक्ष्मीशंकराचार्य...सिर्फ़ कुछ नाम हैं (बेशुमार नामों में से) जिन्होंने या तो इस्लाम की उत्कृष्ट ख़ूबियां बताई हैं, या मुस्लिम शासनकाल में धर्म परिवर्तन के वास्तविक (Factual) कारकों को लिखा है।

3. वर्तमान में ‘धर्म-परिवर्तन’—मुस्लिम-पक्षआज (और वर्षों-वर्षों से) लगभग पूरी दुनिया की तरह भारतवासी भी धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। कुछ अन्य धर्मों के धर्म-प्रचारक यदि धर्म-परिवर्तन कराते हों तो कराते हों, जो भी तरीक़ा अख़्तियार करते हों, और उद्देश्य जो कुछ भी हो, उस सबसे भारतीय मुसलमानों का मामला बिल्कुल भिन्न है। वे अच्छी तरह जानते हैं किलालच देकर या ज़ोर-ज़बरदस्ती से धर्म परिवर्तन कराना पाप है; इस्लाम उन्हें इसकी अनुमति नहीं देता। (सन अस्सी के दहे में दक्षिण-भारत में कई गांवों के सैकड़ों लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया था तब ‘पेट्रोडॉलर’ के इस्तेमाल की बात ख़ूब उछाली गई थी। देश के कोने-कोने से ‘उच्च वर्ग’ खिंच-खिंचकर वहां पहुंच गया था। पत्रिका ‘सरिता’ के अन्वेषक भी वहां पहुंचे थे और फिर विस्तार से लिखा था कि पेट्रोडॉलर की लालच ने नहीं, सदियों से अछूत, दलित, शोषित तथा व्यापक रूप से तिरस्कृत रहने वाले लोगों के लिए इस्लाम द्वारा प्रदत्त ‘मानव-समानता’ व ‘मानव-सम्मान’ ने उन्हें धर्म परिवर्तित कराके इस्लाम की गोद में पहुंचाया)। दलितपन, शोषण, अछूतपन, अपमान तथा अत्याचार की स्थिति अभी भी विद्यमान है जो धर्म-परिवर्तन का कारक बन रही है। शायद वर्ण-व्यवस्था इस स्थिति को सदा क़ायम रखेगी।

इस्लाम ने दुनिया के हर मुसलमान को, क़ुरआन में यह बताकर कि ‘‘तुम उत्तम समुदाय हो जो मानवजाति की भलाई के लिए उत्पन्न किए गए हो...(3:110)’’ और ‘‘(लोगों को) अपने रब के रास्ते (सत्य मार्ग) की ओर सूझ-बूझ, अच्छे वचन तथा उत्तम वाद-संवाद द्वारा बुलाओ (16:125)’’; यह आदेश दिया है कि मानवजाति के हित व उपकार में, लोगों के शुभाकांक्षी (Well-wisher) बनकर इस्लाम का प्रचार, प्रसार, आह्वान करो। भारतीय मुस्लिमों में से कुछ लोग यह पुण्य, पवित्रा काम निस्वार्थ भाव से अंजाम दे रहे हैं, इस्लाम का संदेश देश बंधुओं तक पहुंचा रहे हैं। उन तक उनकी मातृभाषा में ईशग्रंथ क़ुरआन, अपने सामर्थ्य भर पहुंचा रहे हैं; उनका काम यहीं तक—मात्रा यहीं तक—है; पूरा देश इसका साक्षी है। इसके बाद कुछ लोग अगर अपना धर्म परिवर्तित करके सत्य मार्ग पर आ जाना, सत्य धर्म स्वीकार कर लेना पसन्द कर लेते हैं तो यह ‘उनके’ और ‘ईश्वर के’ बीच व्यक्तिगत मामला है।

जहां तक ग़ैर-मुस्लिम लड़कियों के विवाह हेतु धर्म परिवर्तन की बात है, इसमें प्रमुख भूमिका आधुनिक कल्चर की है। सहशिक्षा (Co-education) के दौरान विद्यालयों में तथा नौकरी के दौरान कार्य स्थलों पर नवयुवकों-नवयुवतियों का स्वतंत्रापूर्वक मेल-जोल,एकांत-भेंट स्वाभाविक रूप से दोनों को कुछ अधिक घनिष्ठ संबंध बनाने का अवसर देता है। नवजवान लड़कों-लड़कियों को ‘ब्वॉयफ्रेंड’ और ‘गर्लफ्रेंड’ कल्चर का तोहफ़ाजिस पर हमारे समाज का आधुनिकतावादी वर्ग बहुत गर्व करता हैइस्लाम या मुसलमानों ने बनाकर नहीं परोसा है। ये ‘घनिष्ठ’ संबंध अन्दर-अन्दर वैसे-वैसे अनैतिक रूप धारण करते या कर सकते हैं, इससे बेपरवाह और संवेदनहीन समाज के पास शायद इस आपत्ति का औचित्य नहीं रह जाता है कि किसी युवक-युवती ने परस्पर विवाह करके स्वयं को अनैतिक कार्य और दुष्कर्म से बचा लिया।बदलते-बिगड़ते सामाजिक वातावरण की ऐसी (नगण्य) व छुट-पुट व्यक्तिगत घटनाओं को मुसलमानों की ‘साज़िश’ क़रार देना एक स्पष्ट मिथ्यारोपण है
Share this article :
"हमारी अन्जुमन" को ज़यादा से ज़यादा लाइक करें !

Read All Articles, Monthwise

Blogroll

Interview PART 1/PART 2

Popular Posts

Followers

Blogger templates

Labels

 
Support : Creating Website | Johny Template | Mas Template
Proudly powered by Blogger
Copyright © 2011. हमारी अन्‍जुमन - All Rights Reserved
Template Design by Creating Website Published by Mas Template