जियोलोजी यानि भूगर्भ विज्ञान की मदद से हम मालूम करते हैं कि ज़मीन के जो अलग अलग हिस्से अलग अलग शक्ल में मौजूद हैं वह उस शक्ल में क्यों हैं। मसलन कहीं पर ऊंचे ऊंचे पहाड़ हैं, कहीं पर समुन्द्र तो कहीं फैला हुआ रेगिस्तान जहाँ रेत के टीलों के सिवा और कुछ नहीं। इंसान हमेशा से ही इस जुस्तजू में रहा है कि पहाड़ कैसे बने, या ज़मीन के कुछ हिस्से पूरी तरह खुश्क क्यों हैं। ज़मीन के बारे में जियोलाजिकल सर्वेज में कुछ बातें ऐसी निकल कर आती हैं जो काफी इण्टरेस्टिंग होती हैं। मिसाल के तौर पर पहाड़ों के बारे में यह अंदाज़ा लगाया गया है कि ज़मीन के भीतरी हिस्से में मौजूद प्लेटें जब एक दूसरे की तरफ खिसकीं तो उनके टकराने की वजह से पहाड़ों का निर्माण हुआ।
अब बात करते हैं रेगिस्तान की। हम जानते हैं कि हमारी ज़मीन पर रेत के ऐसे विशाल मैदान मौजूद हैं जहाँ न कोई आदमज़ात रहती है और न कोई दरख्त उगता है। अफ्रीका का सहारा व कालाहारी, एशिया का गोबी, आस्ट्रेलिया का ग्रेट विक्टोरियन डेज़र्ट और चिली का आटाकामा इसी तरह के इलाके हैं। अब सवाल उठता है कि रेगिस्तान कैसे बने? और यह कितने पुराने हैं? इस बारे में भूगर्भ विज्ञान के अनुसार जहाँ कुछ रेगिस्तान लाखों साल पहले से मौजूद हैं वहीं कुछ की उम्र 8000-10000 साल से ज्यादा पुरानी नहीं है।
ज्यादातर रेगिस्तान इक्वेटर के पास दोनों तरफ 25 डिग्री की बेल्ट में मिलते हैं। इस क्षेत्र का ऊंचा वायुमंडलीय दाब ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद ठंडी खुश्क हवा को ज़मीन तक लाता है। इस दौरान सूरज की सीधी किरणें इस हवा को तेज़ गर्म करती हैं नतीजे में वहाँ की ज़मीन निहायत खुश्क और गर्म हो जाती है। अफ्रीका के सहारा व कालाहारी इसी तरह के रेगिस्तान हैं। रेगिस्तान के बनने की एक और वजह उसके किनारों पर ऊंचे पहाड़ों का होना है। जिसकी वजह से समुन्द्र से आने वाली नम हवा रुक जाती है और बादल पहाड़ों के एक ही तरफ बरस कर रुक जाते हैं। नतीजे में दूसरी तरफ खुश्की का मैदान बाकी रह जाता है। चीन का गोबी रेगिस्तान जो हिमालय के दूसरी तरफ है, इसी तरह का रेगिस्तान है।
रेगिस्तान के बारे में एक सवाल ये है कि सहारा जैसे कुछ रेगिस्तानों में रेत के पहाड़ क्यों पाये जाते हैं और हज़ारों साल पहले जब वहाँ रेगिस्तान नहीं था तो वहाँ की ज़मीन कैसी थी? साइंस इस बारे में ज्यादा नहीं बताती। लेकिन हमारी पुरानी किताबें इस पर खामोश नहीं हैं। शेख सुद्दूक (अ.र.) की किताब एललुश्शराये में मौजूद इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम का कौल इस बारे में काफी कुछ रोशनी डालता है।
हज़रत इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने नजफ का नाम नजफ पड़ने का सबब बताते हुए फरमाया कि नजफ पहले एक पहाड़ था। और ये वही पहाड़ था जिसके लिये हज़रत नूह के बेटे ने कहा था कि मैं पहाड़ पर चढ़ जाऊंगा वह मुझे पानी में डूबने से बचा लेगा और इस ज़मीन पर उससे बड़ा कोई पहाड़ न था। अल्लाह ने पहाड़ की तरफ वही की कि ऐ पहाड़ क्या तेरे ज़रिये ये मेरे अज़ाब से बचेगा? ये सुन कर पहाड़ रेज़ा रेज़ा होकर करबला व शाम की तरफ रेत बनकर फैल गया। उसके बाद वह एक बड़ा समुन्द्र बन गया और उसका नाम बहरनी (यानि चरबी का समुन्द्र) पड़ गया। उसके बाद वह जफ यानि खुश्क हो गया और वह नीजफ कहा जाने लगा और फिर उसे लोग नीजफ कहने लगे और कुछ दिनों बाद नजफ कहलाने लगा।
इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम के जुमलों से यह साफ हो जाता है कि नजफ और उस जैसे दूसरे रेगिस्तान जहाँ मौजूद हैं वहाँ पहले ऊंचे पहाड़ मौजूद थे। फिर मौसम ने करवट ली और वह इलाके पानी से भर गये इस पानी ने पहाड़ों को रेत की शक्ल में बिखेर दिया और फिर सूरज से आने वाली तेज़ गर्म किरणों ने पानी को भाप बनाकर उड़ा दिया, नतीजे में वहाँ बाकी रह गयी बिखरी हुई रेत जो खुश्क हवा के ज़ोर में कभी समतल हो जाती है तो कभी ऊंचे टीलों की शक्ल में आ जाती है। ये ठीक उसी तरह हुआ जैसे पहाड़ों से आने वाली बहती हुई नदियों के किनारे दूर दूर तक रेत पैदा हो जाती है। ये रेत वास्तव में उन पहाड़ों के रेज़े होते हैं जिनसे गुज़रकर वह नदी बहती है। यही असली वजह है रेगिस्तान में रेत के टीलों का मौजूदगी की।
ये डिस्कवरी जिसकी हकीकत तक अभी साइंस नहीं पहुंच पायी है, हमारी बारह सौ साल पुरानी किताबों में मौजूद है। और यकीनन हमें इसपर हैरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि हमारे इमामों के इल्म से आगे दुनिया की कोई साइंस नहीं।