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आओ उस बात की तरफ़ जो हममे और तुममे एक जैसी है और वो ये कि हम सिर्फ़ एक रब की इबादत करें- क़ुरआन
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पानी को इस्तेमाल करो मगर इस्लामी तरीके से

Written By zeashan haider zaidi on सोमवार, 22 मार्च 2010 | सोमवार, मार्च 22, 2010


विश्व जल दिवस (22 मार्च) पर विशेष 
पानी की अहमियत बच्चे बच्चे को मालूम है। तपती दोपहर में पसीने से तरबतर जब कोई शख्स घर पहुंचता है तो उसकी सबसे पहली ख्वाहिश होती है कि थोड़ा सा ठंडा पानी मिल जाये जो उसकी प्यास को फौरन बुझा दे। पानी अल्लाह की बेमिसाल रहमत है। पानी के बिना ज़िंदगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता। अभी तक साइंस कोई ऐसी जिंदगी दरियाफ्त नहीं कर पायी है जो पानी के बगैर हो। 
प्यास बुझाने के अलावा पानी में कुछ और भी ऐसी साइंसी खुसूसियात पायी जाती हैं जिससे साबित होता है कि अल्लाह ने इसे ज़मीन पर जिंदगी पैदा करने के लिए ही खल्क किया है। और इसकी तरफ कुरआन हकीम की 21 वीं सूरे अंबिया की 30 वीं आयत में इरशाद हुआ है, ‘‘क्या वह लोग जो मुनकिर हैं गौर नहीं करते कि ये सब आसमान व जमीन आपस में मिले हुए थे। फिर हम ने उन्हें जुदा किया और पानी के जरिये हर जिन्दा चीज़ पैदा की। क्या वह अब भी यकीन नहीं करते?’
पानी की एक अहम क्वालिटी इसका लिक्विड फार्म में होना है। लिक्विड होने की वजह से यह जानदारों के पूरे जिस्म में आसानी से फैल जाता है और जिस्म के लिए जरूरी चीज़ों को अंदर फैला देता है। जानदारों के लिए जरूरी ज्यादातर चीज़ें पानी में आसानी से घुल जाती हैं। जैसे कि नमक, ग्लूकोज और चीनी। पानी महीन से महीन चीज़ों के भीतर पहुंच सकता है। इसीलिए वह हाथी से लेकर निहायत बारीक बैक्टीरिया तक तमाम जानदारों के जिस्म में जरूरियात पहुंचाने का जरिया है।
पानी में एक ऐसी क्वालिटी होती है जो और किसी लिक्विड में नहीं होती। कोई भी लिक्विड ठंड बढ़ने पर सिकुड़ता है। लेकिन पानी चार डिग्री सेण्डीग्रेड टेम्प्रेचर होने तक सिकुड़ता है, उससे कम टेम्प्रेचर पर फिर फैलने लगता है। इसलिए जाड़ों में ठन्डे मुल्कों में तालाब का पानी जब बर्फ में बदलता है तो वह हलका होकर पूरे तालाब को ढंक लेता है और नीचे फ्रेश वाटर में मछलियां आराम से तैरती रहती हैं। बर्फ में गर्मी रोकने की भी खासियत होती है। जो पानी को हद से ज्यादा ठण्डा होने से रोक देती हैं। और इसमें रहने वाले जानदार एक आरामदेय माहौल में अपना गुज़र बसर करते रहते हैं।
पानी हाईड्रोजन और आक्सीजन के बीच जोड़ से बनता है। केमिस्ट्री के नजरिये से यह जोड़ सबसे मजबूत बांड होता है। बांड मजबूत होने की वजह से उसका ब्वायलिंग प्वाइंट बढ़ जाता है। उसका माल्क्यूल ज्य़ादातर केमिकल रिएक्शन में ब्रेक नहीं होता और वह पानी की ही हालत में चीज़ों का हिस्सा बन जाता है। इंसानी जिस्म का लगभग साठ-सत्तर फीसद हिस्सा पानी होता है। ज़मीन का इकहत्तर फीसद हिस्सा पानी है। कुछ पौधों में नब्बे फीसद तक पानी होता है।
पानी अगर लाखों साल तक भी किसी बरतन में रख दिया जाये तो भी उसकी बनावट पर कोई असर नहीं होता। जो कुछ भी उसकी जाहिरी हालत में तब्दीली आती है वह दरअसल उसमें दूसरे मैटीरियल के मिक्स होने से आती है। और अगर उस मैटीरियल को अलग कर दिया जाये तो पानी वापस अपनी असली हालत में आ जाता है।
पानी को वापस अपनी असली हालत में लाने के लिए अल्लाह ने इंतिजाम भी कर रखा है। इंसान और दूसरे जानदार जब पानी का इस्तेमाल करते हैं तो वह गंदी चीज़ों के मिक्स हो जाने से पीने लायक नहीं रहता। यह पानी नदियों के जरिये समुन्द्र में जाता है। सूरज की गर्मी समुन्द्र के इस गंदगी मिले पानी को भाप में बदल कर बादलों की शक्ल दे देती है। इस दौरान पानी की गंदगी समुन्द्र में ही छूट जाती है और बारिश के जरिये साफ पानी वापस ज़मीन पर आ जाता है।
पानी अल्लाह की बेमिसाल रहमत है। ‘रहमान’ अल्लाह के उन नामों में से है जिसको खुद अल्लाह ने पसंद फरमाया है। हालांकि अल्लाह की रहमतों को गिनने वाले गिन नहीं सकते। अगर सिर्फ पानी की क्वालिटीज़ को ही देखा जाये तो उसमें खालिके कायनात की रहमतों के बेशुमार पहलू निकलकर सामने आ जाते हैं।
कुरआन ने पानी की अहमियत बार बार बतायी है।
तो क्या तुमने पानी पर भी नज़र डाली जिसे तुम पीते हो?’’ (56-68)
‘‘और अल्लाह ही ने जमीन पर चलने वाले तमाम जानवरों को पानी से पैदा किया।-----’’ (24-45)
‘‘और उसी की निशानियों में से एक ये भी है कि वह तुमको डराने व उम्मीद लाने के वास्ते बिजली दिखाता है और आसमान से पानी बरसाता है और उसके जरिये से मुर्दा ज़मीन को आबाद करता है।---’’ (30-24)
कुरआन में जब भी जन्नत का जिक्र आया है तो पानी और नहरों का जिक्र जरूर आया है।
‘उन दोनों बागों में दो चश्मे (तालाब या झीलें) जोश मारते होंगे।’’ (55-66)
लेकिन अफसोस आज के दौर में हम अल्लाह की इस बेमिसाल रहमत को बरबाद कर रहे हैं। नदियों को गंदा कर रहे हैं। एक तरफ पाश कालोनियों में रोजाना पानी से सड़के धुली जाती हैं तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी हिस्से हैं जहां लोग बूंद बूंद को तरसते हैं। जबकि रसूल (स-अ-) ने फरमाया है कि अगर तुम्हारे पास सिर्फ वुजू करने के लिए पानी है और तुम सामने एक कुत्ते को प्यासा देखते हो तो वह पानी उसे पिला दो।
अगर नहाने के लिए हमारा एक बाल्टी पानी से काम चल सकता है तो वहां चार बाल्टी खर्च कर देते हैं। जबकि रसूल (स-अ-) की एक और हदीस है कि अगर तुम नदी के किनारे बैठे हो और तुम्हें प्यास लगी है तो नदी से सिर्फ इतना पानी लो कि तुम्हारी प्यास बुझ जाये।
किसी व्यक्ति को पानी जरूरत से ज्यादा इकट्‌ठा करने और दूसरों को उससे वंचित करने से सख्ती से मना किया गया है। एक हदीस कहती है, ‘‘अल्लाह कयामत के दिन उन लोगों से सख्ती से पेश आयेगा जो पानी को सड़कों पर बहा देते हैं और मुसाफिरों (जरूरतमन्दों) को तरसाते हैं।’’ (बुखारी 3-838)
पानी पीने से जानवरों को भी रोकना इस्लाम में सख्ती से मना है, हदीस के अनुसार ‘‘अगर कोई व्यक्ति रेगिस्तान में कुआँ खोदता है तो उसे इसका अधिकार हरगिज नहीं कि वह उस कुएं से किसी जानवर को पानी पीने से रोक दे।’’ (बुखारी -5550)
रसूल (स-अ-) ने नदियों या साफ पानी के ज़खीरों में गंदगी बहाने से सख्ती से मना किया है। (मुस्लिम-553)
रसूल (स-अ-) ने पानी को बेचने के लिए भी सख्ती से मना किया है। (मुस्लिम - 3798)
गर्ज ये कि इस तरंह की बेशुमार कुरानी आयतें व रसूल की हदीसें इस्लाम में मौजूद हैं जो न सिर्फ हमें पानी की अहमियत बताती हैं बल्कि उसका सही इस्तेमाल कैसे किया जाये इसके तरीके भी बताती हैं। अगर इन पर सही तरंह से अमल किया जाये तो पानी के लिए न तो किसी को तरसना पड़ेगा और न ही जल संरक्षण दिवस मनाने की ज़रूरत होगी। 
वरना फिर यही पानी अज़ाब बनकर दुनिया को खत्म भी कर सकता है। जैसा कि तूफाने नूह में हुआ था.

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