रैण्डमाईज़ेशन (Randomization) का मतलब होता है कि अगर आपको कई चीज़ों में से कुछ को चुनना है और उन सब को चुनने में कोई पूर्वाग्रह नहीं दिखाना है तो चुनने का यह तरीका रैण्डमाईज़ेशन कहलाता है। मिसाल के तौर पर लाटरी सिस्टम में अगर एक लाख लोगों में पाँच को चुनना होता है तो एक लाख नम्बरों में से पाँच बिना यह देखे कि वे नम्बर किन लोगों के हैं निकाल लिये जाते हैं और फिर उन्हें लाटरी का इनाम दे दिया जाता है। जुए जैसे खेलों में रैण्डमाईज़ेशन हमेशा शामिल होता है। टीवी पर चलने वाले बहुत से गेम शोज़ में रैण्डमाईज़ेशन का इस्तेमाल होता है। लेकिन अगर रैण्डमाईज़ेशन का नाम लाटरी और जुए के साथ जुड़ा है तो इसका ये मतलब नहीं कि रैण्डमाईज़ेशन कोई बुरी चीज़ है। दरअसल चीज़ बुरी नहीं होती बल्कि उसका इस्तेमाल बुरा होता है। अगर रैण्डमाईज़ेशन का इस्तेमाल जुए में हो रहा है तो हम इस इस्तेमाल को तो बुरा कह सकते हैं लेकिन रैण्डमाईज़ेशन तरीके को नहीं। आज के ज़माने में इस तरीके की अहमियत जग जाहिर है।
आज की क्वांटम मैकेनिक्स जो भौतिक विज्ञान की सर्वोच्च शाखा है पूरी की पूरी रैण्डमाईज़ेशन थ्योरी पर आधारित है। क्वांटम मैकेनिक्स के अनुसार पार्टिकिल फिज़ा में किसी भी जगह एक खास प्रोबेबिलिटी या चांस के साथ मौजूद हो सकता है। यानि उसका फिजा में कहीं पर होना रैण्डमाइज्ड़ होता है।
दवाओं के बारे में जो भी क्लीनिकल ट्रायल होते हैं उनमें रैण्डमाईज़ेशन ज़रूर किया जाता है। वरना उस ट्रायल की कोई अहमियत नहीं होती। रैण्डमाईज्ड़ कण्ट्रोल ट्रायल दवाओं का असर टेस्ट करने की एक अच्छी टेक्नीक मानी जाती है।
सांख्यिकी (statistics) में सैम्पिल सर्वे जितने भी होते हैं सब में रैण्डमाईज़ेशन का इस्तेमाल होता है वरना सर्वे के नतीजे शक के दायरे में आ जाते हैं। एग्रीकल्चर में बीजों, मिट्टी और खाद की क्वालिटी का टेस्ट रैण्डमाईज़ेशन टेक्नीक के ज़रिये होता है। साथ ही इसका इस्तेमाल इकोनोमिक्स, जियोलोजी, बिजनेस रिसर्च जैसे अनेक अहम शोबों में होता है।
अब बात करते हैं रैण्डमाईज़ेशन के इतिहास की। पहली बार इसके इस्तेमाल का उल्लेख सन 1850 के आसपास अमेरिकन वैज्ञानिक चार्ल्स पायर्स द्वारा किया गया मिलता है। उसे रैण्डमाईज़ेशन पर आधारित विज्ञान की शाखा सांख्यिकी (statistics) के डेवलपर्स में से माना जाता है। क्वांटम फिजिक्स की शुरुआत बीसवीं सदी में मैक्स प्लांक नामके साइंसदां के जरिये हुई मानी जाती है। उससे पहले फिजिक्स में रैण्डमाईज़ेशन की कोई अहमियत नहीं थी। अगर हम इसमें रैण्डमाईज़ेशन से जुड़ी प्रोबेबिलिटी थ्योरी भी जोड़ दें तो भी इसका इतिहास सत्रहवीं शताब्दी से ज्यादा पुराना नहीं है क्योंकि इसकी शुरुआत करने वाला साइंसदां ब्लेज़ पास्कल उसी ज़माने में था।
ऐसे में अगर मैं ये कहूं कि रैण्डमाईज़ेशन की सोच आज से हज़ार साल पहले भी मौजूद थी तो यकीनन ये यकीन न आने वाली बात होगी। मगर ये हकीकत है।
आज से लगभग हज़ार साल पहले लिखी गयी किताब है ‘एललुश-शराये’ जिसके मुसन्निफ हैं इस्लामी आलिम शेख सुद्दूक (र.) जिनकी किताबों अल तौहीद और अय्यून अखबारुलरज़ा का इससे पहले मैं जिक्र कर चुका हूं। किताब ‘अल्लल शराये’ में शेख सुद्दूक (र.) ने इस्लाम की रीज़निंग (reasoning of islamic rules) पर बात की है यानि इस्लाम की शरीयत में कोई चीज़ है तो क्यों है? या उसकी शुरुआत कैसे हुई इसपर उन्होंने इमामों के कौल के मुताबिक रौशनी डाली है।
इस किताब में ‘काफिर की नस्ल से मोमिन और मोमिन की नस्ल में काफिर क्यों पैदा होते है?’ या ‘काफिर नेकी क्यों करता है और मोमिन गुनाह क्यों करता है?’ इन सवालों का जवाब देते हुए शेख सुद्दूक इमामों की कुछ हदीसें पेश करते हैं। जो इस तरह हैं।
इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने एक मीठा पानी खल्क किया और उससे अपने इताअत गुज़ार बन्दों को पैदा किया और एक कड़वा पानी खल्क किया और उससे अपने नाफरमान बन्दों को खल्क किया फिर उन दोनों पानियों को हुक्म दिया वह आपस में पूरी तरह मिल गये और अगर ये न होता और दोनों अलग होते तो फिर मोमिन से मोमिन और काफिर से सिर्फ काफिर ही पैदा होता।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया अल्लाह तआला ने आदम को ज़मीन की बालाई सतह की मिट्टी से पैदा किया तो उसमें कुछ मिट्टी शोर थी कुछ नमकीन थी और कुछ मिट्टी पाक व शीरीं थी इसी बिना पर उन की जुर्रियत में से कुछ नेक बन्दे पैदा हुए और कुछ बद और नाहलफ पैदा हुए।
इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फरमाया कि अल्लाह तआला ने एक पानी जारी किया और उससे कहा तू शीरीं समुन्द्र बन जा, मैं तुझ से अपनी जन्नत और अपने इताअत गुजारों को पैदा करूंगा। और अल्लाह तआला ने फिर एक और पानी को पैदा किया उससे कहा कि तू नमकीन समुन्द्र बन जा, मैं तुझ से अपनी जहन्नुम और नाफरमानों को पैदा करूंगा। फिर अल्लाह तआला ने उन दोनों को आपस में मिला दिया यही वजह है कि मोमिन की नस्ल से काफिर पैदा होते हैं और काफिर की नस्ल से मोमिन पैदा होते हैं।
इन सब जुमलों में हम रैण्डमाईज़ेशन की हकीकत देख रहे हैं। और ये भी देख रहे हैं कि रैण्डमाईज़ेशन का इस्तेमाल सबसे पहले अल्लाह ने इंसान की खिलक़त में किया। इस रैण्डमाईज़ेशन की वजह से दुनिया का कोई शख्स नहीं बता सकता कि पैदा होने वाला बच्चा आगे चलकर अच्छाई का रास्ता चुनेगा या बुराई का।
आज क्वांटम फिजिक्स में काफी तरक्की हो चुकी है जो बताती है कि दुनिया की खिलक़त में रैण्डमाईज़ेशन का इस्तेमाल हुआ है। हालांकि इस रैण्डमाईज़ेशन को देखकर ही क्वांटम फिजिक्स के साइंसदां दुनिया के बनने में किसी खुदाई कण्ट्रोल का इंकार करते हैं। जबकि बारह सौ साल पहले के दौर के इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम और इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम बता चुके थे कि अल्लाह ने दुनिया की खिलक़त में रैण्डमाईज़ेशन किया है। फर्क सिर्फ इतना है कि इंसान जब रैण्डमाईज़ेशन करता है तो उसे इसका नतीजा नहीं मालूम होता। लेकिन जब अल्लाह रैण्डमाईज़ेशन करता है तो उसे मालूम होता है कि आगे का नतीजा क्या होगा।
जब रैण्डमाईज़ेशन पर पूरी तरह आधारित क्वांटम फिजिक्स की शुरुआत हो रही थी तो आइंस्टीन ने कहा था कि गॉड पासे नहीं फेंकता लेकिन आइंस्टीन गलत था और इमाम हज़रत अली अलैहिस्सलाम व इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम सही थे। अन्यथा क्वांटम फिजिक्स का कोई वजूद न होता।